किसान आंदोलन के बीच दिल्ली बॉर्डर पर पाठशाला, कूड़ा बिनने वाले बच्चों को मिल रही प्रारंभिक शिक्षा

किसान आंदोलन के बीच दिल्ली बॉर्डर पर पाठशाला, कूड़ा बिनने वाले बच्चों को मिल रही प्रारंभिक शिक्षा

Bhaskar Hindi
Update: 2021-02-08 18:54 GMT
किसान आंदोलन के बीच दिल्ली बॉर्डर पर पाठशाला, कूड़ा बिनने वाले बच्चों को मिल रही प्रारंभिक शिक्षा
हाईलाइट
  • दो शिफ्ट में चलती है क्लास
  • पाठशाला को एक समाजिक कार्यकर्ता की तरफ से खोला गया
  • बच्चों का ध्यान कूड़ा बीनने से हटाकर उन्हें किताब देना कठिन

डिजिटल डेस्क, गाजीपुर बॉर्डर। कृषि कानून के खिलाफ दिल्ली की सीमाओं पर छोटे बच्चे से लेकर बुजुर्ग व्यक्ति तक किसानों के समर्थन में खड़े हुए हैं। ऐसे में बॉर्डर पर एक पाठशाला खोली गई है जो इस आंदोलन में आए बच्चों के लिए है, लेकिन अब ये पाठशाला स्थानीय बच्चों के लिए हो गई है, जो कि कूड़ा बीनने का काम करते हैं।

दरअसल इस आंदोलन में महिलाएं भी अपने छोटे बच्चों के साथ आकर प्रदर्शन में शामिल हो रही थीं, हालांकि ऐसा करने से उनके बच्चों की पढ़ाई बाधित हुई, जिसकी भरपाई करने के लिए इस पाठशाला को खोला गया। सावित्री बाई फुले पाठशाला के नाम से इसे बॉर्डर पर बच्चों के लिए सुचारू रूप से चलाया जा रहा है। करीब 70 से 80 बच्चे रोजाना इस पाठशाला में पढ़ाई करने के लिए आ रहे हैं। बॉर्डर के पास स्थानीय बस्तियों से बच्चे आकर यहां कूड़ा बिनते, प्लास्टिक की बोतलें इकट्ठा करते और यहीं खाना भी खाया करते थे, लेकिन अब ये बच्चे प्रारंभिक शिक्षा भी प्राप्त कर सकते हैं।

पाठशाला को एक समाजिक कार्यकर्ता की तरफ से खोला गया
दरअसल, इस पाठशाला को एक समाजिक कार्यकर्ता की तरफ से खोला गया है, जो की बच्चों की पढ़ाई पर काम कर रही है। समाजिक कार्यकर्ता निर्देश सिंह ने बताया कि हम लोग यहां बहुत वक्त से पढ़ा रहे हैं, पहले हमने आंदोलन में आए बच्चों के लिए ये पाठशाला खोली थी। आंदोलन में महिलाएं अपने बच्चों के साथ आया करती थीं, जिनकी संख्या अब कम हो गई है, तो बच्चे भी कम हो गए। इसलिए अब ये पाठशाला स्थानीय बच्चों के लिए सुचारू रूप से चल रही है। उन्होंने बताया कि यहां आने से उन बच्चों की पढ़ाई प्रभावित हो रही थी। वहीं देश भर में जब स्कूल बंद है, ऐसे में भी किसान आंदोलन पाठशाला चला रहा है, बच्चों को शिक्षा के लिए प्रेरित भी कर रहा है।

बच्चों का ध्यान कूड़ा बीनने से हटाकर उन्हें किताब देना कठिन
इस पाठशाला में बच्चों को स्टेशनरी का सामान दिया जाता है, दरअसल निर्देश सिंह का मानना है कि, इन बच्चों को कूड़ा हटा कर किताब देना बहुत कठिन काम है, क्योंकि इनका दिमाग बस यही सोचता है कि हमें कूड़ा बीनना है। इसलिए थोड़ा मुश्किल है समझाना, लेकिन हमारा प्रयास जारी है। उन्होंने आगे कहा कि बच्चे अब साफ सुथरे होकर पाठशाला में आने लगे हैं।

दो शिफ्ट में चलती है क्लास
इस पाठशाला में दो शिफ्ट में क्लास चलती हैं। सुबह 11 बजे से 12 बजे तक इसमें व्यवहारिक और अक्षरों का ज्ञान दिया जाता है। शाम को सुचारू रूप से क्लास चलती है, इस पाठशाला में करीब 70 से 80 बच्चे आते हैं। पाठशाला में बच्चों को बताया जाता है कि एक दूसरे की मदद करनी है, साफ सुथरा होकर क्लास में आना है।

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