UBI: हर एक नागरिक को मिलेगा फ्री कैश, जानिए क्या है यूनिवर्सल बेसिक इनकम प्रोग्राम?
UBI: हर एक नागरिक को मिलेगा फ्री कैश, जानिए क्या है यूनिवर्सल बेसिक इनकम प्रोग्राम?
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। कोरोनावायरस महामारी ने पूरी दुनिया को बदल कर रख दिया है। करोड़ों लोगों की नौकरियां चली गई है और आने वाले समय में भी रोजगार का संकट गहराता दिख रहा है। इसकी वजह तेजी से आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस जैसी टेक्नोलॉजी का डेवलपमेंट है। ऐसे में यूनिवर्सल बेसिक इनकम प्रोग्राम (UBI) की चर्चा तेज हो गई है। यूनिवर्सल बेसिक इनकम प्रोग्राम का मतलब है कि सरकार अपने नागरिकों को हर महीने एक मिनिमम राशि देने की गारंटी देगी।
इसका मकसद अपने नागरिकों की फाइनेंशियल सिक्योरिटी सुनिश्चित करना है ताकि वो रोजगार न होने की स्थिति में भी अपनी बुनियादी जरुरतों को आसानी से पूरा कर सकें। कई देशों में इसे इम्प्लीमेंट भी किया जा रहा है। स्पेन ऐसा नया देश है जिसने कोरोनावायरस लॉकडाउन में इस प्रोग्राम को अपनाया है। ऐसे में आज हम आपको बताने जा रहे हैं कि यूनिवर्सल बेसिक इनकम किस तरह से काम करता है। इसके फायदे और नुकसान क्या है? क्या इसे भारत जैसे देशों में भी लागू किया जा सकता है। आइए जानते हैं:
यूनिवर्सिल इनकम प्रोग्राम की क्या जरुरत?
एक्सपर्ट्स मानते हैं कि ऑटोमेशन और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की वजह से लोगों की नौकरियां जा रही है। आने वाले समय में ये और भी तेजी से होगा। नौकरी न मिलने की वजह से लोग अपनी बुनियादी जरुरते तक पूरी नहीं कर पाएंगे। ऐसे में जरूरी है कि सरकार अपने नागरिकों को एक मिनिमम इनकम की गारंटी दें। लोगों की किस तरह से नौकरियां जा रही है इसे हम कुछ उदाहरणों से समझ सकते हैं। जैसे कई विकसित देशों में शॉपिंग मॉल में सेल्क चेक अप काउंटर आ गए हैं। इस वजह से काउंटर पर बैठने वालों की नौकरी चली गई है। इसके अलावा कई देशों में मैकडोनाल्ड ने सेल्फ ऑर्डरिंग कियोस्क लगा दिए हैं।आज कल रोबोट वैक्यूम मॉप भी आ गए हैं। सेल्फ ड्राइविंग कार का भी चलन तेजी से बढ़ रहा है।
वहीं कोरोनावायरस के संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए किए गए लॉकडाउन की असर दुनियाभर की इकोनॉमी पर पड़ा है। करोड़ों लोगों की जॉब चली गई है। इस तरह के संकट से अपने नागरिकों को उबारने के लिए कई देशों ने UBI का रास्ता अपनाया है। इनमें से एक देश स्पेन है जो अपने नागरिकों को हर महीने 450 यूरो देगा। हालांकि सरकार के तय किए क्राइटेरिया को पूरा करने वालों को ही यह रकम मिलेगी।
कई एंटरप्रेन्योर यूनिवर्सल बेसिक इनकम के पक्ष में
1967 में मार्टिन लूथर किंग जूनियर ने कहा था कि एक गारंटीड इनकम गरीबी को खत्म कर देगी। वहीं अमेरिकन इकोनॉमिस्ट मिल्टन फ्रीडमैन ने निगेटव इनकम टैक्स का प्रस्ताव रखा था। यानी जिसकी भी इनकम मिनिमम लेवल से कम होगी उसे टैक्स क्रेडिट दिया जाएगा। यह टैक्स क्रेडिट मिनिमम लेवल से ऊपर कमाने वाले परिवारों के टैक्स पेमेंट के बराबर होगा। वर्जिन ग्रुप के फाउंडर रिचर्ड ब्रेनसन ने एक इंटरव्यू में कहा था कि इनकम इनइक्वलिटी को दूर करने का समाधान बेसिक इनकम प्रोग्राम है। टेस्ला के सीईओ एलन मस्क ने भी दुबई में वर्ल्ड गवर्नमेंट समिट में कहा था कि आने वाले समय में यूनिवर्सिल बेसिक इनकम जरूरी हो जाएगी।
मस्क ने कहा था कि भविष्य में बेहद कम नौकरियां होंगी जो रोबट नहीं कर पाएगा। उन्होंने कहा था कि मैं स्पष्ट कर देना चाहता हूं कि ये ऐसी चीजें है जो मैं नहीं चाहता की हो लेकिन मुझे लगता है कि ये होंगी। अमेरिकी चुनाव के फॉर्मर डेमोक्रेटिक प्रेसिडेंशियल कैंडिडेट एंड्र्यू येंग ने यूनिवर्सिल बेसिक इनकम को चुनाव का मुद्दा बनाते हुए लोगों को वादा किया था कि अगर वह प्रेसिडेंट बनते हैं तो वह 18 साल से बड़े हर एक नागरिक को बिना किसी सवाल के 1000 डॉलर देंगे। इसे उन्होंने फ्रिडम डिविडेंड कहा। उन्होंने दो लोगों के साथ साउथ कैरोलिना में इस आइडिया का ट्रायल रन कर टेस्ट भी किया।
यूनिवर्सल बेसिक इनकम के क्या है फायदे?
-लोग बेहतर जॉब और सैलरी का इंतजार कर सकेंगे। इससे लोगों की प्रोडक्टिविटी, इनोवेशन और हैप्पीनेस में बढ़ोतरी हो सकती है।
-जिन लोगों ने मजबूरी में अपनी पढ़ाई छोड़ दी है वो वापस स्कूल-कॉलेज लौट सकेंगे।
-किसी रिश्तेदार की देखभाल के लिए घर पर रहने की स्वतंत्रता होगी।
-गरीबी खत्म हो जाएगी क्योंकि हर किसी के पास अपनी बुनियादी जुरुरतों को पूरा करने के लिए कैश होगा।
-यूनिवर्सल प्रोग्राम होने की वजह से ये हर एक नागरिक के लिए होगा, जिससे ब्यूरोक्रेसी कम हो जाएगी। सरकार के कम पैसे खर्च होंगे।
-मंदी के दौर में ये पेमेंट इकोनॉमी को स्थिर करने में मदद कर सकती है।
यूनिवर्सल बेसिक इनकम के क्या है नुकसान?
-यूनिवर्सिल बेसिक इनकम के बाद गुड्स और सर्विसेज की डिमांड बढ़ जाएगी जिससे महंगाई बढ़ सकती है।
-अगर महंगाई बढ़ेगी तो बेसिक इनकम से बुनियादी जरुरते पूरी कर पाना मुश्किल हो जाएगा।
-फ्री इनकम लोगों को आलसी बना देगी जिससे इकोनॉमी को आगे बढ़ाने में मुश्किल होगी।
-फ्री इनकम से लोग ओवरडिपेंडेंट बन जाएंगे।
-सरकार को स्कूल और अस्पतालों पर खर्च होने वाली राशि को फ्री इनकम के तौर पर बांटना होगा।
-फ्री इनकम की वजह से लेबर फोर्स में कमी आ सकती है।
-अपर क्लास के लिए बेसिक इनकम किसी काम की नहीं होगी। ऐसे में सरकार के लिए उन्हें ये राशि बांटना एक तरह का वेस्टेज होगा।
कई देशों में किए गए यूनिवर्सल बेसिक इनकम के ट्रायल
ऐसे कई शहर, राज्य और देश हैं जो यूनिवर्सिल बेसिक इनकम पर एक्सपेरिमेंट कर रहे हैं। हालांकि यह बताना अभी जल्दबाजी होगा कि ये पायलट प्रोग्राम काम करेंगे या नहीं। सबसे पहले फिनलैंड में इसे नेशनल लेवल पर टेस्ट किया गया था। जनवरी 2017 से दिसंबर 2018 के बीच इसे टेस्ट किया गया। फिनलैंड की सरकार ने 22 साल से 58 साल के बीच के 2000 बेरोजगारों को चुना और हर महीने 560 यूरो फ्री में दिए। इस स्टडी के अभी फाइनल रिजल्ट नहीं आए है। लेकिन शुरुआती नतीजों में इन लोगों के स्वास्थ में सुधार देखा गया। इनका स्ट्रैस लेवल कम हुआ और हैप्पीनेस लेवल बढ़ गया। हालांकि इम्पलॉयमेंट लेवल में किसी तरह का कोई बदलाव नहीं आया।
कैनेडा के ओंटारियो में भी 2017 में इसी तरह का एक एक्सपेरिमेंट किया गया था। इसमें 18-64 साल के बीच के गरीबी में रह रहे 4000 लोगों को चुना गया था। हर एक को सालाना 17000 कैनेडियन डॉलर दिए गए। ये एक्सपेरिमेंट 3 साल तक चलना था लेकिन जुलाई 2018 में सरकार के बदलने के बाद इसे रोक दिया गया। इस एक्सपेरिमेंट के शुरुआती नतीजों में सामने आया था कि लोगों की हेल्थ में पॉजिटिव बदलाव आया और सरकार के हेल्थ केयर कोस्ट में भी काफी राशि बची।
क्या भारत जैसे देश इसे इम्प्लीमेंट कर सकते हैं?
साल 2010 में जब देश में यूपीए की सरकार थी तब मध्य प्रदेश में बेसिक इनकम का ट्रायल करने के लिए 20 गांवों को चुना गया था। इनमें से 8 गांवों को बेसिक इनकम दिया गया जबकि 12 गांवों के साथ इसका कंपेरिजन किया गया। ये गांव दो तरह के थे एक ट्राइबल और दूसरे नॉर्मल। नार्मल गांव में 6000 से ज्यादा लोगों को UBI दिया गया। वयस्क को 200 रुपए और बच्चों को 100 रुपए दिए गए। एक साल बाद इस राशि को बढ़ाकर 300 और 150 रुपए कर दिया गया। जबकि ट्राइबल गांव में 12 महीने की अवधि में इसे 300 और 150 रुपए रखा गया। इस एक्सपेरिमेंट के रिजल्ट काफी चौंकाने वाले थे। रिजल्ट में सामने आया कि गांव वालों ने अपने खाने पर हेल्थ पर ज्यादा पैसे खर्च किए।
बच्चों की स्कूल में परफॉर्मेंस 68 परसेंट ज्यादा बढ़ गई। परिवारों की सेविंग तीन गुना बढ़ गई। गांव में नए बिजनेस दोगुना हो गए। गांव की गरीबी कम हो गई। सैनिटेशन और न्यूट्रिशन में बदलाव देखने को मिला। कुकिंग और लाइटिंग के एनर्जी सोर्स में भी बदलाव देखने को मिला। हालांकि एक्सपेरिमेंट के पॉजिटिव रिजल्ट के बावजूद पूरे भारत में इसे लागू कर पाना आसान नहीं है। सवाल उठता है कि इतने सारे पैसे सरकार कहा से लाएगी? कुछ एक्सपर्ट कहते हैं कि अपर क्लास पर वेल्थ टैक्स लगाकर और कुछ योजनाओं को बंद कर सरकार कुछ पैसे जुटा सकती है।
UBI के वादे के साथ चुनाव में उतरी थी सिक्किम डेमोक्रेटिक फ्रंट
2019 के विधानसभा चुनाव में राज्य की सत्ताधारी पार्टी सिक्किम डेमोक्रेटिक फ्रंट (SDF) यूनिवर्सल बेसिक इनकम के वादे के साथ चुनावी मैदान में उतरी थी। अंग्रेजी अखबार इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए एसडीएफ सांसद प्रेम दास राय ने कहा था कि हमारी पार्टी और मुख्यमंत्री पवन चामलिंग यूनिवर्सल बेसिक इनकम को लागू करने के लिए प्रतिबद्ध हैं। उन्होंने कहा था कि साल 2019 में सत्ता में आने के तीन साल के अंदर हम यह करके दिखाएंगे। उन्होंने कहा था विकासशील देशों में यह बढ़िया काम कर रहा है। भारत में भी इसका टेस्ट हुआ है और वित्तमंत्रालय ने साल 2017 की शुरुआत में इसपर चर्चा की है। इसे गुजरात, मध्यप्रदेश और दूसरे आदिवासी बेल्ट में बड़े पैमाने पर लागू करने की कोशिश की गई है। हालांकि चुनावों में ये पार्टी हार गई और SDF को इस योजना को लागू करने का मौका नहीं मिला।