न्याय देने के मामले में 18 बड़े राज्यों में कर्नाटक शीर्ष पर: इंडिया जस्टिस रिपोर्ट

दिल्ली न्याय देने के मामले में 18 बड़े राज्यों में कर्नाटक शीर्ष पर: इंडिया जस्टिस रिपोर्ट

Bhaskar Hindi
Update: 2023-04-04 13:30 GMT
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डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। न्याय देने के मामले में देश के एक करोड़ से ज्यादा आबादी वाले 18 राज्यों में कर्नाटक शीर्ष पर है।

पुलिस, न्यायपालिका, जेल और विधिक सहायता के लिए बजट, संसाधन की उपलब्धता आदि के आधार पर तैयार इंडिया जस्टिस रिपोर्ट 2022 में यह बात कही गई है।

रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि दिसंबर 2022 के आंकड़ों के अनुसार, देश में हर 10 लाख की आबादी पर 19 जज हैं। अदालतों में कुल 4.8 करोड़ मामले लंबित हैं और जेलों में क्षमता से 30 प्रतिशत ज्यादा कैदी हैं। कैदियों में दो-तिहाई से अधिक (77.1 प्रतिशत) विचाराधीन हैं। उच्च न्यायालयों में जजों के 30 प्रतिशत पद खाली हैं।

मंगलवार को जारी रिपोर्ट के अनुसार, न्याय देने के मामले में कर्नाटक शीर्ष पर है। इसके बाद क्रमश: तमिलनाडु, तेलंगाना, गुजरात और आंध्र प्रदेश का स्थान है। उत्तर प्रदेश सबसे पीछे 18वें स्थान पर है।

एक करोड़ से कम आबादी वाले सात छोटे राज्यों की सूची में सिक्किम पहले स्थान पर है। इसके बाद अरुणाचल प्रदेश और त्रिपुरा का स्थान है। गोवा सबसे नीचे सातवें स्थान पर है।

रिपोर्ट में अनिवार्य सेवाएं देने के लिए डिलिवरी ढांचे को सक्षम बनाने के मामले में राज्यों के प्रदर्शन का आंकलन किया गया है। आधिकारिक सरकारी स्रोतों से प्राप्त आंकड़ों के आधार पर न्याय प्रदान करने वाले चार स्तंभों - पुलिस, न्यायपालिका, जेल और विधिक सहायता - के आंकड़ों को आधार बनाया गया है।

हर स्तंभ का बजट, मानव संसाधन, काम का बोझ, विविधता, इंफ्रास्ट्रक्च र और ट्रेंड (पिछले पांच साल के दौरान हुए सुधार) के पैमानों पर और राज्यों के स्वघोषित मानदंडों के मुकाबले विश्लेषण किया गया। रिपोर्ट में 25 राज्यों के मानवाधिकार आयोगों की क्षमता का भी आकलन किया गया। इसमें इस बात पर जोर दिया गया है कि पुलिस बल, जेल कर्मचारी, विधिक सहायता सेवा और न्यायपालिका, सभी में खाली पदों की समस्या है।

इसमें कहा गया है कि 140 करोड़ लोगों के लिए देश में मात्र 20,076 जज हैं जबकि 22 प्रतिशत पद खाली पड़े हैं। उच्च न्यायालयों में जजों के 30 प्रतिशत पद खाली हैं।

रिपोर्ट में कहा गया है कि देश में हर 10 लाख की आबादी पर जज के 19 पद हैं। अदालतों में 4.8 करोड़ मामले लंबित हैं जबकि विधि आयोग ने 1987 में ही कहा था कि यह अनुपात प्रति 10 लाख आबादी पर 50 जजों का होना चाहिए।

रिपोर्ट के अनुसार, जेलों में क्षमता से 30 प्रतिशत ज्यादा कैदी हैं। कैदियों में दो-तिहाई से अधिक (77.1 प्रतिशत) जांच या सुनवाई पूरी होने का इंतजार कर रहे हैं। पुलिस बल में मात्र 11.75 प्रतिशत महिलाएं हैं। यह स्थिति तब है जब पिछले एक दशक में उनकी संख्या दोगुनी हुई है। जेलों में अधिकारियों के 29 प्रतिशत पद खाली हैं। हर एक लाख की आबादी पर पुलिस का अनुपात 152.8 है जबकि अंतर्राष्ट्रीय मानक 222 का है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि अधिकतर राज्यों ने केंद्र सरकार से मिले पैसों का पूरा इस्तेमाल नहीं किया है। पुलिस, जेल और न्यायपालिका पर उनका अपना व्यय भी राज्य के कुल व्यय में हुई बढ़ोतरी की तुलना में कम तेजी से बढ़ा है।

इसमें कहा गया है कि कम बजट के कारण समग्र रूप से न्याय प्रणाली प्रभावित हुई है। नि:शुल्क विधिक सहायता सेवाओं पर देश का प्रति व्यक्ति खर्च 3.87 रुपए सालाना है जबकि कुल आबादी का 80 प्रतिशत इसका लाभ लेने के लिए पात्र है। केंद्रशासित प्रदेशों दिल्ली और चंडीगढ़ को छोड़कर कोई भी राज्य अपने सालाना बजट का एक प्रतिशत से अधिक न्यायपालिका पर खर्च नहीं करता है।

इंडिया जस्टिस रिपोर्ट की शुरुआत टाटा ट्रस्ट ने 2019 में की थी। आज तीसरी रिपोर्ट जारी हुई है। यह रिपोर्ट सेंटर फॉर सोशल जस्टिस, कॉमन कॉज, कॉमनवेल्थ ह्यूमन राइट्स इनिशिएटिव, दक्ष, टीआईएसएस-प्रयास, विधि सेंटर फॉर लीगल पॉलिसी और हाउ इंडिया लिवस जैसी संस्थाओं के सहयोग से तैयार की गई है। रिपोर्ट हर दो साल पर जारी होती है।

 

आईएएनएस

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