मोदी सरकार के लिए अहम होंगे उपचुनाव, पता चलेगा मूड ऑफ द नेशन !
उपचुनाव 2021 मोदी सरकार के लिए अहम होंगे उपचुनाव, पता चलेगा मूड ऑफ द नेशन !
डिजिटल डेस्क। नई दिल्ली। 3 लोकसभा और 30 विधानसभा सीटों पर आगामी 30 अक्टूबर को उपचुनाव है। चुनाव परिणाम 2 नवंबर को आएंगे। कोरोना महामारी, बाढ़, त्योहारों औऱ कुछ क्षेत्रों में ठंड के बीच उपचुनाव हो रहा है।
जिन तीन लोकसभा सीटों पर उपचुनाव हैं। उनमें केंद्रशासित प्रदेश के दादर और नगर हवेली, हिमाचल प्रदेश और मध्य प्रदेश की खंडवा सीट है। इसके अलावा 13 राज्यों के 30 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव है। मोदी सरकार के लिए 30 अक्टूबर और 2 नवंबर बेहद अहम दिन साबित होने वाले हैं। उप चुनावों के परिणामों को एक तरह से मूड ऑफ द नेशन भी कहा जा रहा है। क्योंकि यह चुनाव भारत के उत्तर से लेकर दक्षिण, पूरब से पश्चिम के साथ मध्य और पूर्वोत्तर भारत के राज्यों में हो रहे हैं।
यानी उपचुनाव में पूरा भारत शामिल हो रहा है। ऐसे में साफ है कि 2 नवंबर के आने वाले उपचुनावों के परिणामों को कोरोना की दूसरी लहर, महंगाई, मौजूदा लखीमपुर खीरी हिंसा, किसान आंदोलन, जम्मू एवं कश्मीर में बढ़ी हिंसक घटनाओं पर जनता के रुख में देखने को मिलेगा।
यहां होंगे चुनाव
उपचुनाव हिमाचल प्रदेश के मंडी, मध्य प्रदेश के खंडवा और केंद्र शासिस प्रदेश दादर नगर हवेली में लोक सभा सीट पर उपचुनाव है। इन 3 सीटों में से 2 सीटों पर भाजपा का कब्जा था। ऐसे में देखना होगा कि बीजेपी इन दोनों सीटों पर फिर से जीत हासिल कर पाती है या नहीं। इसके अलावा असम में 5 विधान सभा, पश्चिम बंगाल में 4 विधान सभा। मध्य प्रदेश, हिमाचल और मेघालय में 3 विधान सभा। बिहार, कर्नाटक, राजस्थान में दो विधान सभा। जबकि हरियाणा, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, मिजोरम, नागालैंड में एक विधान सभा सीट पर उपचुनाव है।
कोरोना की दूसरी लहर, लखीमपुर खीरी हिंसा और किसान आंदोलन का क्या होगा असर?
27 मार्च से 29 अप्रैल के बीच 5 राज्यों में चुनाव हुआ था। जिसमें पश्चिम बंगाल, असम, केरल, तमिलनाडु और पुडुचेरी में विधान सभा चुनाव कराए गए थे। यह वह वक्त था। जब देश में कोरोना तेजी से पैर पसा रहा था। और अप्रैल में ऐसी स्थिति बन गई थी कि लोग इलाज और ऑक्सीजन के अभाव में सड़कों पर तड़प-तड़प कर मर रहे थे। चुनाव आयोग। राजनीतिक दल और केंद्र सरकार पर लोगों का गुस्सा फूटने लगा था। जनता नेताओं की रैलियों पर कोरोना फैलाना का आरोप लगाने लगी थी। चुनाव प्रचार की वजह से देश में तेजी से कोरोना बढ़ा था। इसके अलावा किसान आंदोलन भी अपने चरम पर पहुंच चुका था। और अब लखीमपुर खीरी में हुई हिंसा के बाद जनता क्या सोचती है। इसका टेस्ट पहली बार इस उपचुनाव में होने जा रहा है।
महंगाई कितना डालेगी असर?
पेट्रोल। डीजल और तेल की तेजी से बढ़ती महंगाई को लेकर मोदी सरकार के बारे में जनता क्या सोचती है। होने वाले चुनाव में इसका परीक्षण होने वाले है। वाहनों को चलाने वाले तेल सैकड़ों पार तो खाने पकाने वाले सरसों के तेल के भाव करीब 200 पार पहुंच चुका है।और बिना सब्सिडी वाला सिलेंडर 884.50 रुपये तक पहुंच चुका है। ऐसे में यह देखना होगा कि इन उप चुनावों में महंगाई का क्या प्रभाव पड़ता है।
इन मुख्यमंत्रियों के लिए है अहम
बिहार में नीतीश
बिहार में हो रहे उप चुनाव ने महागठबंधन में दरार डाल दी है। कांग्रेस ने कुशेश्वरस्थान व तारापुर सीटों पर होने वाले चुनाव में राष्ट्रीय जनता दल के उम्मीदवार के खिलाफ उम्मीदवार उतारे है। जिससे बने त्रिकोणीय मुकाबले में नीतीश सरकार को फायदा मिलता दिख रहा है। जिससे जद (यू) जीत के नजदीक होती दिखाई दे रही है।
मध्यप्रदेश में शिवराज
इसी तरह मध्य प्रदेश में हो रहे उप चुनाव मुख्य मंत्री शिवराज सिंह चौहान के लिए काफी अह माना जा रहे है। खास तौर पर यह देखते हुए कि बीजेपी ने गुजरात और उत्तराखंड में अचानक मुख्यमंत्री बदल दिए । ऐसे में अगर उप चुनावों में बीजेपी पार्टी की हार का असर शिवराज की कुर्सी पर पड़ सकता है।
हरियाणा में खट्टर
हरियाणा में किसान आंदोलन के दौर में मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर का टेस्ट है। क्योंकि ऐलानाबाद की सीट पर इंडियन लोक दल के नेता अभय चौटाला चुनाव जीते थे। लेकिन किसान कानूनों के विरोध में उन्होंने यह सीट छोड़ दी थी।
राजस्थान में गहलोत VS पायलट
इसी तरह राजस्थान की दो सीटों पर होने वाले उप चुनाव कांग्रेस और बीजेपी दोनों के लिए अहम हैं। क्योंकि यह चुनाव मुख्यमंत्री अशोक गहलोत-सचिन पायलट की आपसी खींचतान और भाजपा में वसुंधरा राजे के समर्थकों के विरोध के बीच चुनाव हो रहे हैं।
बिहार में प्रतिष्ठा पर दांव
बिहार के उपचुनाव में नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है। नीतीश के लिए राजनीतिक रूप से अहम है। बिहार विधानसभा के लिए हो रहे उपचुनाव में मुंगेर की तारापुर सीट काफी हॉट सीट मानी जा रही है। किसी दल के लिए यह सीट बचाने की चुनौती है तो किसी दल के लिए हाथ से निकली हुई सीट वापस पाने की चुनौती बनी हुई है।
तारापुर विधानसभा सीट पर साल 2010 से जदयू चुनाव में जीत दर्ज करती आ रही है। इस बार के चुनाव में इस सीट को बचाना जदयू के लिए बड़ा चैलेंज है। राजद द्वारा वर्ष 2010 में सीट गंवाने के बाद यह सीट राजद के लिये कितना महत्वपूर्ण है यह इस बात से समझा जा सकता है कि विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव ने लगातार तीन दिनों तक चुनावी दौरा किया। दूसरी तरफ जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह पांच दिनों के चुनाव प्रचार करने दौरान पर तारापुर में टिके हुए हैं। जदयू ने राजीव कुमार सिंह। राजद ने अरुण कुमार। कांग्रेस ने राजेश मिश्रा को तारापुर विधानसभा क्षेत्र के ही प्रत्याशियों को चुनावी मैदान में उतारा है।
आलम यह है कि एनडीए के सभी घटक दल मिलकर प्रत्याशी को चुनाव जीतने की तैयारी में जुटे हुए हैं तो वहीं महागठबंधन के कांग्रेस और राजद ने अपने-अपने उम्मीदवार को चुनाव मैदान में उतार दिया है। पिछले तीन दशक से कांग्रेस राजद के साथ गठबंधन में है। राजद ने यहां से नए चेहरे को चुनाव मैदान में उतार कर इस सीट को अपने खाते में करने की जी जान कोशिश कर रही है।कांग्रेस ने कुशेश्वरस्थान व तारापुर सीटों पर होने वाले चुनाव में राष्ट्रीय जनता दल के उम्मीदवार के खिलाफ उम्मीदवार उतारे है
राजस्थान की 2 हॉट सीट
राजस्थान के उदयपुर संभाग की सबसे हॉट वल्लभनगर विधानसभा सीट पर होने वाले उपचुनाव चुनावी रण में अब 9 प्रत्याशी अपना दमखम दिखाएंगे। इस चुनाव को जहां भाजपा और कांग्रेस 2023 के चुनाव से पहले का सेमीफाइनल मान रही है लेकिन उपचुनाव का चुनावी रण कई नेताओं के लिए फाइनल मुकाबले के रूप में देखा जा रहा है।
उदयपुर की वल्लभनगर विधानसभा सीट पर हो रहा उपचुनाव। आम चुनावों से भी कहीं अधिक महत्वपूर्ण माना जा रहा है। इस उपचुनाव के परिणाम पर सभी राजनीतिक दलों की निगाहें जमी हुई है। उपचुनाव का चुनावी परिणाम क्षेत्र के कई दिग्गज नेताओं के साथ राजनीतिक दलों की दशा और दिशा को तय करेगा। मुख्य मुकाबला कांग्रेस की प्रीति शक्तावत, जनता सेना के रणधीरसिंह भींडर, भाजपा के हिम्मतसिंह झाला और भाजपा से बागी होने के बाद आएलपी का दामन थान चुनावी रण में उतरे उदयलाल डांगी के बीच है।
बीजेपी उदयपुर की वल्लभनगर विधानसभा सीट से हिम्मत सिंह झाला और प्रतापगढ़ की धरियावाद सीट पर खेत सिंह मीना पर दांव लगाया है।
धरियावाद (अनुसूचित जनजाति) सीट पर भारतीय ट्राइबल पार्टी (बीटीपी) के बागी थावरचंद ने निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव मैदान उतरकर कांग्रेस उम्मीदवार नगराज मीणा और भाजपा के खेत सिंह मीना के बीच मुकाबले को दिलचस्प बना दिया है।
किसान आंदोलन का एक भविष्यकर्ता
हरियाणा के ऐलनाबाद विधानसभा उप चुनाव की चर्चा दूर-दूर तक है। मौजूदा वक्त में ऐलनाबाद उपचुनाव महज एक विधानसभा चुनाव नहीं रह गया है। बल्कि इसके नतीजे उत्तर प्रदेश से लेकर पंजाब तक की राजनीति और किसान आंदोलन के भविष्य को प्रभावित करेंगे। मजेदार बात यह है कि इस चुनाव में कोई किसान नेता उम्मीदवार नहीं है। लेकिन इसके बावजूद किसानों के सभी बड़े नेता यहां प्रचार में जुटे थे। भारतीय किसान यूनियन के प्रवक्ता राकेश टिकैत खुद यहां प्रचार करने पहुंचे थे। ऐसे में यह चुनाव किसी भी पार्टी की जीत से अधिक किसान आंदोलन के मसले पर एक रायशुमारी में तब्दील हो गया है।
क्यों अहम है ऐलनाबाद उप चुनाव
ऐलनाबाद में उपचुनाव इनेलो के नेता अभय चौटाला के इस्तीफा देने का कारण करवाया जा रहा है। अभय चौटाला पिछले विधानसभा चुनाव में यहां से विजयी हुए। वह अपनी पार्टी के एक मात्र विधायक थे। लेकिन इस साल जनवरी में उन्होंने किसानों के समर्थन में विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया था। इस बार के उपचुनाव में वह एक बार फिर अपनी पार्टी के उम्मीदवार हैं।उनके इस्तीफे को किसानों का समर्थन हासिल करने के एक कदम के रूप में देखा गया। उन्होंने अब इस उपचुनाव को किसानों के मसले पर एक रायशुमारी के रूप में पेश किया है। ऐलनाबाद एक ग्रामीण इलाका है और यहां के अधिकतर वोटर खेती-किसानी पर निर्भर हैं कांग्रेस ने यहां से भाजपा से बगावत कर आए नेता पवन बेनिवाल को उम्मीदवार बनाया है जबकि भाजपा ने यहां से हरियाणा लोकहित पार्टी के विधायक गोपाल कांडा के भाई गोविंद कांडा को उम्मीदवार बनाया है। कांडा को भाजपा की सहयोगी जननायक जनता पार्टी का समर्थन प्राप्त है।
किसानों के लिए क्यों अहम है यह उपचुनाव
दरअसल। देशव्यापी किसान आंदोलन का केंद्र हरियाणा। पंजाब और पश्चिम उत्तर प्रदेश के कुछ इलाके हैं। इस चुनाव में किसान आंदोलन से जुड़े नेता खुलकर भाजपा के विरोध में वोट करने के लिए अभियान चला रहे हैं। दूसरी तरह यह चुनाव पंजाब और अगले साल के शुरू में उत्तर प्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनाव से कुछ ही माह पहले हो रहा है। ऐसे में इसके नतीजे इन दोनों राज्यों पर असर डालेंगे क्योंकि इन दोनों राज्यों में किसान आंदोलन का प्रभाव काफी व्यापक माना जाता हैयहां से भाजपा की जीत पार्टी को नई ऊर्जा देगी और किसान आंदोलन के लिए एक झटका साबित होगी।
चौटाला परिवार और ऐलनाबाद
हरियाणा में चौटाला परिवार को राज्य की राजनीति की फर्स्ट फैमिली कहा जाता है। इस परिवार का सिरसा जिले पर व्यापक प्रभाव है। इसी जिले में ऐलनाबाद आता है। यहां से कई बार परिवार का कोई सदस्य या फिर उसके पसंद का कोई व्यक्ति ही विधायक चुना जाता है। लेकिन इस बार मामला थोड़ा उलझा हुआ है। खुद चौटाला परिवार कई धड़ों और दलों में बंटा हुआ है।यहां से इलेनो के उम्मीदवार अभय चौटाला के भाई अजय चौटाला की पार्टी जेजेपी। भाजपा के साथ है और वह भाजपा उम्मीदवार को समर्थन दे रही है। अजय के बेटे दुश्यंत चौटाला राज्य के उपमुख्यमंत्री हैं। वहीं ओम प्रकाश चौटाला के छोटे भाई रंजीत सिंह पड़ोस की रानिया सीट से 2019 में निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर जीते थे और वह खट्टर सरकार में बिजली मंत्री हैं। वह भी भाजपा उम्मीदवार कुंडा के लिए वोट मांग रहे हैं।