ज्ञानवापी मामले पर काशी कोर्ट में पूरी हुई सुनवाई , अदालत ने फैसला रखा सुरक्षित

ज्ञानवापी केस ज्ञानवापी मामले पर काशी कोर्ट में पूरी हुई सुनवाई , अदालत ने फैसला रखा सुरक्षित

Bhaskar Hindi
Update: 2022-05-23 11:12 GMT
ज्ञानवापी मामले पर काशी कोर्ट में पूरी हुई सुनवाई , अदालत ने फैसला रखा सुरक्षित
हाईलाइट
  • मामले को लेकर एक और याचिका कोर्ट में दाखिल

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। ज्ञानवापी मस्जिद विवाद मामले में वाराणसी कोर्ट में चल रही सुनवाई पूरी हो गई है। करीब 45 मिनट चली इस सुनवाई में दोनों पक्षों की दलीलें सुनी गई। सुनवाई के बाद अदालत ने कल तक के लिए फैसला सुरक्षित रख लिया है। मिली जानकारी के मुताबिक कोर्ट में जब सुनवाई चल रही थी तब दोनों पक्षों के वकीलों को मिलाकर कुल 23 लोग कोर्ट रूम में उपस्थित रहे। 

इससे पहले इस मामले की सुनवाई को लेकर दोनों पक्ष सुप्रीम कोर्ट पहुंचे थे, शीर्ष कोर्ट ने दलीलें सुनने के बाद मामले को स्थानीय अदालत में ही सुनवाई करने के दिशा निर्देश दिए थे। सर्वोच्च अदालत ने मामले को वाराणसी कोर्ट में ही ट्रांसफर कर दिया था। शीर्ष अदालत ने केस को लोकल जिला अदालत में पूरी सुनवाई को 8 हफ्ते में कम्पलीट करने को कहा है।

अजय मिश्रा को नही मिली कोर्ट में एंट्री

मामले की सुनवाई से पहले पूर्व कोर्ट कमिश्नर अजय मिश्रा को कोर्ट में जाने की इजाजत नहीं मिली। दरअसल, कोर्ट में उन्हीं लोगों को अंदर जाने दिया जा रहा था, जिनका नाम वकालतनामे में था। अजय मिश्रा का नाम इसमें शामिल नहीं था। बता दें कि वाराणसी कोर्ट द्वारा ज्ञानवापी के पहले सर्वेक्षण के लिए जिस टीम का गठन किया गया था, अजय मिश्रा उसका नेतृत्व कर रहे थे। उन्होंने 19 मई को अपनी सर्वे रिपोर्ट वाराणसी सिविल कोर्ट में जमा कर दी थी।    

 मामले को लेकर एक और याचिका कोर्ट में दाखिल 

ज्ञानवापी मस्जिद-काशी विश्वनाथ मंदिर विवाद मामले में एक और याचिका सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की गई है। याचिका दाखिल करने वाले अश्विन उपाध्याय ने कोर्ट से मांग की है कि इस मामले पर उनका भी पक्ष सुना जाए। उन्होंने कहा है कि यह मामला सीधे तौर पर उनकी धार्मिक स्वातंत्रता के अधिकार से जुड़ा हुआ है। उन्होंने कहा कि, यहां सदियों भगवान विश्वेश्वर की पूजा होती रही है। ये संपत्ति हमेशा से उनकी रही है। और किसी भी परिस्थिति में संपत्ति से उनका अधिकार नहीं छीना जा सकता। एक बार प्राण प्रतिष्ठा हो जाने के बाद  मंदिर के कुछ भाग को तोड़ने या फिर नमाज पढ़ने से मंदिर के धार्मिक स्वरुप में कोई बदलाव नहीं आता।

अश्विन ने अपनी याचिका दलील देते हुए कहा कि इस्लाम के अनुसार भी मंदिर को ध्वस्त कर बनाई गई मस्जिद को इस्लाम धर्म के मुताबिक वैध मस्जिद नहीं माना जा सकता  है। याचिकाकर्ता के अनुसार 1991 का उपासना स्थल अधिनियम किसी धार्मिक स्थल के स्वरुप का निर्धारण करने से नहीं रोकता। अपनी याचिका में उन्होंने मस्जिद कमेटी की याचिका खारिज करने की मांग की।   


 

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