करोड़ों में हो रहा है किसानों को घाटा, यूं ही नहीं कड़कड़ती ठंड में धरने पर डटे हैं
करोड़ों में हो रहा है किसानों को घाटा, यूं ही नहीं कड़कड़ती ठंड में धरने पर डटे हैं
- निजी कंपनियों को बढ़ावा मिलेगा
- जिससे फसल का उचित मूल्य मिलना बंद हो जाएगा।
- किसानों का मानना है कि यह विधेयक मंडियों को खत्म कर देगा
- किसानों को एमएसपी से कम कीमत पर उपजों की बिक्री से हुआ करोड़ों रुपए का घाटा
डिजिटल डेस्क, भोपाल। देशभर के किसान नए कृषि कानूनों के ख़िलाफ प्रदर्शन कई महीनों से कर रहे हैं, लेकिन पिछले 15 दिनों से उन्होंने दिल्ली को घेरा हुआ है। इस कोरोना काल में और दिल्ली की कड़कड़ती ठंड के बीच सिंधु बॉर्डर पर किसानों ने अपना डेरा जमा रखा है। तीन दिन पहले ही एक 32 वर्षीय किसान अजय की ठंड लगने से मौत हो गई थी। किसानों का साफ कहना है कि जब तक सरकार पूरा बिल वापस नहीं लेगी तब तक वे यहां से नहीं हटेंगे। किसान नेता राकेश टिकैत ने आज मीडिया से बातचीत में कहा कि " सरकार की तरफ से जो प्रस्ताव आया है उसमें बिल वापसी की बात नहीं है। सरकार संशोधन चाहती है। संशोधन के लिए किसान तैयार नहीं है। हम चाहते है पूरा बिल वापस हो। बिल वापसी के अलावा कोई रास्ता निकलता नज़र नहीं आ रहा है। सरकार तीन कृषि बिल लाई है उसी तरह से न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) को लेकर भी बिल लाए"।
कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ प्रदर्शन कर रहे किसानों की प्रमुख मांग एमएसपी को क़ानूनी अधिकार बनाने की है। क्योंकि न्यूनतम समर्थन मूल्य नहीं मिलने से उन्हें करोड़ों का नुकसान हो रहा है। वहीं, बड़े-बड़े उद्योगपति इसका फायदा उठा रहे हैं। वेबसाइट द वायर की एक रिपोर्ट के मुताबिक, किसानों को पिछले दो महीने (अक्टूबर और नवंबर) में एमएसपी से कम कीमत पर कृषि उपजों की बिक्री होने पर कम से कम 1,881 करोड़ रुपए का घाटा हुआ है। इस रिपोर्ट में बताया गया है कि मक्का किसानों को सबसे ज्यादा नुकसान हुआ है, जहां बाजार मूल्य सिर्फ 1,100 और 1,550 के बीच रहा, जबकि इसकी एमएसपी 1,850 रुपए प्रति क्विंटल है। इसके चलते अक्टूबर और नवंबर महीने में इन किसानों को सीधे 485 करोड़ रुपए का घाटा हुआ है। वहीं, देश भर के मूंगफली किसानों को एमएसपी से नीचे बिक्री होने पर 333 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ है।
उल्लेखनीय है कि केंद्र सरकार की ओर से कृषि सुधार बिल राज्यसभा में पारित हो गए, अब इस पर राष्ट्रपति की अंतिम मुहर लगनी बाकी है, जिसके बाद यह क़ानून बन जाएगा। इसलिए 9 दिसंबर को कई नेताओं ने राष्ट्रपति से मुलाकात कर तीनों कृषि कानूनों को निरस्त करने का अनुरोध किया है। जो बिल संसद से पास हो चुके हैं उनमें कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सरलीकरण) विधेयक, 2020 और कृषक (सशक्तिकरण व संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर करार विधेयक है।
अब देश भर के किसान इन बिलों का विरोध कर रहे हैं, क्योंकि किसानों को उनकी फसल का उचित मूल्य मिलना कम होता जा रहा है और किसानों का मानना है कि यह विधेयक एपीएमसी (एग्रीकल्चर प्रोड्यूस मार्केट कमिटी) यानी मंडियों को खत्म कर देगा और फिर निजी कंपनियों को बढ़ावा देगा, जिससे किसानों को उनकी फसल का उचित मूल्य मिलना बंद हो जाएगा।