कांग्रेस सांसद मनीष तिवारी ने कहा मैंने किताब में 26/11 पर यूपीए का आकलन नहीं किया
संयम का संकेत कांग्रेस सांसद मनीष तिवारी ने कहा मैंने किताब में 26/11 पर यूपीए का आकलन नहीं किया
- सरकार ने अपने विवेक से उचित कदम उठाए
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। कांग्रेस सांसद मनीष तिवारी अपनी किताब 10 फ्लैशप्वाइंट्स : 20 इयर्स-नेशनल सिक्योरिटी सिचुएशंस दैट इम्पैक्टेड इंडिया में यह कहकर विवाद खड़ा कर दिया है कि तत्कालीन यूपीए सरकार को 26/11 हमले के मद्देनजर कार्रवाई तेज करनी चाहिए थी। किताब का लोकार्पण पूर्व पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) शिव शंकर मेनन ने गुरुवार को किया।
लोकार्पण के बाद एक पैनल चर्चा के दौरान तिवारी ने उनकी राय को ज्यादा तरजीह न देने की मांग करते हुए कहा यह मेरी व्यक्तिगत राय है कि कार्रवाई तेज गति से की जानी चाहिए थी लेकिन मैं तत्कालीन यूपीए सरकार द्वारा की गई कार्रवाई को आंक नहीं रहा हूं। उन्होंने कहा सरकार ने अपने विवेक से उचित कदम उठाए होंगे लेकिन नॉन-स्टेट एक्टर्स पर उठाए गए कदमों की प्रभावकारिता को ध्यान में रखना चाहिए था।
उन्होंने यह भी कहा कि यूपीए धारणा की लड़ाई हार गई क्योंकि कार्रवाई में कमी को पाकिस्तान द्वारा कमजोरी माना जाता है। तिवारी का यह भी मत था कि अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार के समय ऑपरेशन पराक्रम एक ऐसा कदम था जहां सरकार सभी तार्किक प्रयासों के बावजूद स्ट्राइक नहीं कर सकी और बाद में स्ट्राइक कॉर्प्स कमांडर को हटा दिया गया था जिसे पाकिस्तान ने भी एक कमजोरी माना था।
उन्होंने कहा कि हालांकि बालाकोट पहले राजनीतिक नेतृत्व के स्वामित्व में था लेकिन इसने वांछित परिणाम नहीं दिया क्योंकि पाकिस्तान भारत के खिलाफ अपनी भयावह साजिश में वापस चला गया है। तिवारी ने किताब में मुंबई हमलों के बाद यूपीए-1 सरकार की निष्क्रियता पर सवाल उठाया है।
उन्होंने किताब में कहा है एक ऐसे राज्य के लिए जहां सैकड़ों निर्दोष लोगों को बेरहमी से कत्ल करने में कोई बाध्यता नहीं है। संयम ताकत का संकेत नहीं है, इसे कमजोरी का प्रतीक माना जाता है। एक समय आता है जब कार्यो को शब्दों से अधिक जोर से बोलना चाहिए। इसलिए, मेरी राय है कि भारत को 9/11 के बाद के दिनों में गतिज प्रतिक्रिया देनी चाहिए थी।
(आईएएनएस)