ईयर एंडर 2023: कांग्रेस के लिए कैसा रहा साल? बीजेपी की तर्ज पर चलते हुए परिवारवाद से आजादी, लेकिन नतीजों ने फिर तोड़ी उम्मीदें

  • साल 2023 कांग्रेस के लिए रहा चुनौतीपूर्ण
  • दो राज्य में जीत तो दो में खोई सत्ता

Bhaskar Hindi
Update: 2023-12-22 14:16 GMT

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली/भोपाल। साल 2023 कांग्रेस पार्टी के लिए कुछ खास नहीं रहा। पार्टी को दो राज्यों में नुकसान तो दो में सत्ता की वापसी हुई। इस साल मई के महीने में कांग्रेस पार्टी ने दक्षिण राज्य कर्नाटक में भारतीय जनता पार्टी को करारी शिकस्त देते हुए सत्ता पर विराजमान हुई थी लेकिन साल के अंत में पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव हुए जिनमें से हिंदी बेल्ट के तीन राज्यों (मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान) में करारी शिकस्त मिली। इन तीनों राज्यों में से दो छत्तीसगढ़ और राजस्थान में पहले से ही कांग्रेस की सरकार थी। पार्टी इसे भी बरकरार नहीं रख पाई। जबकि इस चुनाव में कांग्रेस को केवल तेलंगाना की सत्ता हाथ लगी। कांग्रेस की इस करारी हार पर सियासी गलियारों में कई चर्चाएं शुरू हो गई हैं। इस साल के शुरुआत में कांग्रेस ने जब कर्नाटक में बीजेपी को मात देकर सत्ता में आई तो राजनीतिक गलियारों में ये चर्चाएं उठने लगी की शायद पार्टी का नेतृत्व मल्लिकार्जुन खड़गे के हाथों में गया है जिसकी वजह से कांग्रेस ने बेहतर प्रदर्शन किया है। हालांकि, साल के अंत में आते-आते पूरा समीकरण ही बदल गया।

राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक, जब कांग्रेस अध्यक्ष का पद खड़गे के हाथों में गया तो ऐसा लगा कि शायद जो कांग्रेस ने अपनी जमीन खोई है उसे धीरे-धीरे हासिल करने में खड़गे मददगार साबित होंगे लेकिन हाल फिलहाल के चुनावी नतीजों को देखकर लगता है कि कांग्रेस के हालात आसानी से बदलने वाले नहीं हैं। सियासत के जानकारों का कहना है कि, भले ही कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष खड़गे हो लेकिन अहम फैसले आज भी गांधी परिवार ही लेता है, जैसे मनमोहन सरकार में सोनिया गांधी लेती थीं।

नाथ-सिंह के बीच घूमती रही है एमपी कांग्रेस

कांग्रेस की केंद्र की राजनीति देखी जाए तो हमेशा से गांधी परिवार के इर्द गिर्द ही घूमती रही है जिस पर भारतीय जनता पार्टी हमेशा से सवाल उठाती रही है। ठीक वैसा एमपी एवं अन्य राज्यों में होता रहा है। मध्य प्रदेश की बात हम इसलिए कर रहे हैं क्योंकि हाल ही में यहां चुनाव सम्पन्न हुए हैं जिसमें कांग्रेस को बेहतर करने की अपेक्षा थी लेकिन उम्मीद से एकदम विपरीत नतीजे आए। चुनाव से पहले कांग्रेस ने दावा किया था कि एमपी की सत्ता कांग्रेस के हाथ में आएगी लेकिन पार्टी 18 साल के बीजेपी के साम्राज्य को भेद नहीं पाई और उसे करारी शिकस्त मिली।

हार के बाद कांग्रेस ने एमपी में बड़ा बदलाव करते हुए प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष की कमान कमलनाथ से लेकर इंदौर की राऊ विधानसभा सीट से विधायक रहे जीतू पटवारी को सौंप दी। साथ ही हेमंत सिंघार को विधानसभा का नेता प्रतिपक्ष घोषित कर दिया जबकि हेमंत कटारे को उपनेता प्रतिपक्ष के लिए चुना। कांग्रेस का यह बड़ा बदलाव एमपी के इतिहास में करीब दो दशक के बाद हुआ है। जिसके बाद से ये कयास लगाए जा रहे हैं कि शायद कांग्रेस अब युवा चेहरे को राजनीति में आगे लाना चाहती है।

एमपी कांग्रेस को परिवारवाद से मिला छुटकारा?

दरअसल, एमपी कांग्रेस की सत्ता परिवारों के अधीन ही रही है। सबसे पहले मध्य प्रदेश कांग्रेस की कमान दो बार के सीएम रहे दिग्विजय सिंह के हाथों में रही। उसके बाद कमलनाथ के हाथों में गई। इन दोनों नेताओं के बीच एमपी कांग्रेस घूमती रही है। हाल में हुए एमपी चुनाव में कांग्रेस आलाकमान ने इन्हीं दो नेताओं को चुनाव की जिम्मेदारी सौंपी थी। चुनाव प्रचार के दौरान कांग्रेस पार्टी के अंदर ही खूब तल्खी भी देखी गई थी। सियासत के जानकारों का कहना है कि कांग्रेस पार्टी में अंदरूनी घमासान और कमलनाथ एवं सिंह के बीच सही से समन्वय न बन पाने की वजह से उसे नुकसान उठना पड़ा है। बीजेपी के शासनकाल में कांग्रेस की कमान अरूण यादव के हाथ भी रही। जो पूर्व उपमुख्यमंत्री सुभाष यादव के बेटे हैं, इशके अलावा अजय सिंह को नेताप्रतिपक्ष का दर्जा मिल चुका है, वो अर्जुन सिंह के बेटे हैं।

अब इन परिवारों की राजनीति से परे जीतू पटवारी को प्रदेश की कमान मिली है। पटवारी को प्रदेश अध्यक्ष की कमान सौंपने के पीछे राहुल गांधी को बताया जा रहा है। कहा जाता है कि पटवारी राहुल के बेहद ही करीबी हैं और इसी की वजह से उन्हें ये जिम्मेदारी मिली है। कांग्रेस को लेकर ये भी कहा जाता है कि चाहे वो केंद्र में हों या राज्य में, पद तभी किसी को मिलता है जब वो गांधी परिवार का चहेता या नजदीकी होता है। हालांकि, एमपी के केस में मामला थोड़ा अलग है। यहां कांग्रेस को पता लग चुका है कि अगर बीजेपी को प्रदेश में टक्कर देनी है तो उसकी ही रणनीति से देनी होगी। क्योंकि चार बार के सीएम रहे शिवराज को हटाकर पार्टी ने मोहन यादव को कमान सौंप दी। विश्लेषकों के मुताबिक, कांग्रेस अब इसी रास्ते पर चल रही है। 

साल 2023 थोड़ा मीठा तो ज्यादा कड़वाहट भरा रहा

एमपी के अलावा राजस्थान और छत्तीसगढ़ में भी कांग्रेस ने निराशाजनक प्रदर्शन किया है। राजस्थान को लेकर कहा जाता रहा है कि हर पांच साल में नई सरकार का गठन होता है, इस बार भी वही हुआ लेकिन कांग्रेस को विश्वास था कि वो छत्तीसगढ़ की सत्ता बचा लेगी पर ऐसा कुछ नहीं हुआ। अब इन दोनों राज्यों को भी लेकर चर्चाएं तेज हैं। कहा जा रहा है कि कांग्रेस, राजस्थान में अशोक गहलोत से किनारा कर किसी अन्य नेता को प्रदेश की कमान सौंप सकती है। जबकि छत्तीसगढ़ में बघेल से नाराज चल रही पार्टी उनकी जगह किसी और को दे सकती है। इन तमाम राजनीतिक घटनाओं को देंखे तो कांग्रेस का यह साल थोड़ा मीठा तो बहुत ज्यादा कड़वाहट भरा रहा है क्योंकि दो राज्यों में जीत तो तीन में बड़ी हार का मुंह देखना पड़ा है।

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