हिंदी दिवस 2024: महात्मा गांधी के देशप्रेम का भाषण सुन लेखक ने छोड़ दी थी सरकारी नौकरी, शब्दों में हकीकत उतारते उतारते बने उपन्यास सम्राट

  • उपन्यास के सम्राट जाने जाते हैं मुंशी प्रेमचंद
  • सरकारी नौकरी छोड़कर देशसेवा और लेखन कार्य में हुए समर्पित
  • कैसा रहा मुंशी प्रेमचंद का जीवन?

Bhaskar Hindi
Update: 2024-09-13 13:11 GMT

डिजिटल डेस्क, भोपाल। हिन्दी साहित्य के महान रचनाकार महर्षि वाल्मीकि, वेदव्यास, कालिदास, तुलसीदास और कबीर जैसे श्रेष्ठ महानतम के इसी कड़ी में आते हैं “प्रेमचंद”। कलम के सिपाही मुंशी प्रेमचंद को हिंदी और उर्दू के महानतम लेखकों में शुमार किया जाता है जिनसे भारतीय साहित्य का एक नया और अविस्मरणीय दौर शुरू हुआ था। साहित्य का ये सफर 13 साल की उम्र से शुरु हुआ जिसने प्रेमचंद को उनके अंतिम समय तक उनका हमसफर बनाए रखा। कम उम्र में घर-परिवार की जिम्मेदारी उनके ऊपर होते हुए भी उन्होंने अपनी पढ़ाई जारी रखी और शिक्षा विभाग में इंस्पेक्टर के पद पर नियुक्त हुए।

गांधीजी के भाषण से हुए प्रभावित

लेकिन बाद में गांधीजी के स्वदेश प्रेम वाले भाषण से वे इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने सरकारी नौकरी से इस्तीफा देकर अपने-आप को देशसेवा और लेखन कार्य में पूरी तरह से समर्पित कर दिया। गांधी को अपना आदर्श मानने वाले प्रेमचंद अपने आत्मकथा में लिखते हैं कि महात्मा गांधी के स्वदेश प्रेम ने उनके ऊपर ऐसा प्रभाव डाला जिसने उन्हें देशप्रेम और समाजिक विकृतियों पर सोचने को मजबूर कर दिया। उनका ‘कर्मभूमि’ उपन्यास गांधी के अहिंसा और सत्याग्रहमूलक आंदोलन का लेखा-जोखा है। उनकी कहानी और उपन्यास ने साहित्य में यथार्थवाद की ऐसी नींव रखी है जिनके सृजन और साहित्य की गूंज आने वाली पीढ़ियों तक देश और दुनिया में सुनाई देती रहेगी।

उपन्यास के सम्राट मुंशी प्रेमचंद

अगर ज़िंदगी के संघर्ष और मुसीबतों को कागज़ पर उकेरा जा सकता है, तो भारतीय साहित्यकारों में प्रेमचंद इसकी मिसाल हैं। प्रेमचंद ऐसे लेखक हैं जिनकी उपन्यास और कहानियां पीढ़ी-दर-पीढ़ी के समय सीमाओं को पार कर लिया और आज तक हिंदी साहित्य में अखंड रूप से शीर्ष पर बने हुए हैं। ऐसे लेखक को ही लोग युग-विजयी लेखक कहते होंगे। प्रेमचंद ने भारतीय समाज के कड़वे सच को अपने उपन्यासों और कहानियों में इस तरह उकेरा कि दुनिया हैरान रह गई। गरीबों, पिछड़ों और दलितों के जीवन को बुलंद आवाज़ देने वाले हिंदी साहित्य के रचयिता ने आजादी के लिए आवाज, जातिवाद और छुआछूत का विरोध करने की परंपरा को खत्म करने वाले ये हिंदी के पहले उपन्यासकार हैं। प्रेमचंद हिंदी के पहले ऐसे लेखक माने जाते हैं जिनकी रचनाओं में जीवन के प्रति एक दृष्टिकोण दिखाई देता था। आइए, आज हम हिंदी और उर्दू के महानतम लेखक में शुमार प्रेमचंद के इस संघर्ष के बारे में बताते हैं।

प्रेमचंद का जीवन

प्रेमचंद का जन्म 31 जुलाई, 1880 को बनारस के पास के गांव लमही में हुआ था। बचपन में ही उनके सिर से मां का साया उठ गया और फिर कुछ समय बाद पिता का भी देहांत हो गया जिस कारण वे भयंकर गरीबी में पले-बढ़े थे। उनके बचपन का नाम धनपतराय था और वे नवाबराय के नाम से कहानियां लिखते थे। बचपन से ही उन्‍हें पढ़ने-लिखने का शौक था। 1907 में प्रेमचंद की पांच कहानियों का संग्रह ‘सोज़े-वतन’ प्रकाशित हुआ। देशप्रेम और आम जनता के दर्द से तरबतर इन कहानियों को अंग्रेज सरकार ने जब प्रतिबंधित कर दिया और उनके लिखने पर प्रतिबंध लगा दिया तब वे अपना नाम बदलकर प्रेमचंद रख इसी नाम से अपना उपनाम लिखने लगे। प्रेमचंद ने कुल 12 उपन्यास और 300 से ज्यादा कहानियां लिखीं हैं। उनकी सभी लेखन ग्रामीण की भूमिका पर आधारित है जिसमें गांव, गरीब, किसान, दलित और दबे कुचले वर्ग के लोगों का जीवन रचा गया है। जीवन के आखिरी दिनों में वे उपन्यास ‘मंगलसूत्र’ लिख रहे थे जिसे वे पूरा नहीं कर सके और लंबी बीमारी से जूझने के बाद 8 अक्टूबर 1936 में अपनी आखिरी सांसें लीं। 

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प्रेमचंद की रचनाएं

प्रेमचंद को हिंदी और उर्दू के महानतम लेखकों में शुमार दिया जाता है। उनकी ऐसी रचनाओं को देखकर बंगाल के मशहूर उपन्यासकार शरतचंद्र चट्टोपाध्याय ने उन्हें ‘उपन्यास सम्राट’ की उपाधि दी थी। कहानी और उपन्यास में एक नई परंपरा की शुरुआत करने वाले प्रेमचंद की रचनाएं हिंदी साहित्य की धरोहर हैं जिसने आने वाली पीढ़ियों के साहित्यकारों का मार्गदर्शन किया। उनकी कुछ प्रमुख रचनाएं जैसे ‘गोदान’, ‘सेवासदन’, ‘प्रेमाश्रम’, ‘रंगभूमि’, ‘निर्मला’, ‘गबन’, ‘कर्मभूमि’ जैसी तमाम रचनाएं शामिल हैं। उन्होनें लगभग डेढ़ दर्जन से ज्यादा उपन्यास और ‘कफन’, ‘पूस की रात’, ‘पंच परमेश्वर’, ‘बड़े घर की बेटी’, ‘बूढ़ी काकी’, ‘दो बैलों की कथा’ जैसे तीन सौ से अधिक कहानियां भी लिखीं हैं। इनमें से अधिकतर कहानियां हिन्दी और उर्दू दोनों भाषाओं में प्रकाशित हुईं। उनकी कहानियां और उपन्या‍स भारतीय समाज के उस लोक में ले जाते हैं जहां लोक-प्रपंच है, गांव हैं, गरीबी है और कुछ खराब चरित्रों के बावजूद कुछ अच्छे लोग दुनिया में हैं जिससे यह समाज चल रहा है। वे भारतीय उपमहाद्वीप के सबसे प्रसिद्ध लेखकों में से एक हैं, और उन्हें बीसवीं सदी की शुरुआत के हिंदी लेखकों में से एक माना जाता है।

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