वर्ल्ड स्टूडेंट्स डे 2024: अखबार बेचकर की पढ़ाई, चिड़िया को देख आया पायलट बनने का ख्याल, बन गए देश के मिसाइल मैन, बच्चों के लिए बने मिसाल
- वर्ल्ड स्टूडेंट्स डे
- काफी संघर्ष भरा रहा डॉ एपीजे अब्दुल कलाम का बचपन
- भारत के लिए बनाई मिसाइल
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। हर साल विश्वभर में 15 अक्टूबर को "विश्व छात्र दिवस"(World Students Day) मनाया जाता है। यह दिन विशेष रूप से भारत के पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम के जन्मदिन पर मनाया जाता है। डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम का भारत के साइंस और एजुकेशन के प्रति संपूर्ण योगदान रहा है। इनका लक्ष्य स्टूडेंट्स के राईटस, उनके ब्राइट फ्यूचर और एजुकेशन को इम्पोर्टेंस देना था। इन्हें "द पीपल्स प्रेसिडेंट" और "मिसाइल मैन" के रूप में भी जाना जाता है। करोड़ों युवाओं के लिए "मिसाइल मैन" डॉ एपीजे अब्दुल कलाम एक मिसाल बन गए। उनके दिए अनमोल वचन आज भी हर स्टूडेंट्स, युथ और फ्यूचर टींस के लिए इंस्पिरेशन हैं। इस साल 15 अक्टूबर, 2024 को डॉ एपीजे अब्दुल कलाम की 93वीं जयंती मनाई जाएगी। तो, ऐसे में चलिए डॉक्टर एपीजे अब्दुल कलाम के बारे में कुछ खास बातें।
कौन थे डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम?
डॉ एपीजे अब्दुल कलाम भारत के पूर्व राष्ट्रपति, इंजीनियर और साइंटिस्ट थे। इनका पूरा नाम अबुल पाकिर जैनुलाब्दीन अब्दुल कलाम था। इनका जन्म तमिलनाडु के रामेश्वरम के धनुषकोडी गांव में 15 अक्टूबर, 1931 को हुआ था। उनका बचपन काफी संघर्ष भरा रहा है। घर चलाने के लिए उन्हें अखबार तक बेचना पड़ा था। लेकिन इसके बावजूद उन्होंने कभी भी हारना नहीं सीखा। वो हमेशा सीखने की कला को महत्व देते थे। बचपन से ही उन्हें उड़ना पसंद था, जैसे खुले आसमान में चिड़ियां उड़ती हैं। उन उड़ती हुई चिड़ियाओं को देखकर ही कलाम जी ने ये तय किया था कि उनको एयरोनॉटिक्स की फील्ड में जाना है। उनकी चाहत तो पायलट बनने की थी, लेकिन शायद ईश्वर ने उनके लिए कुछ और ही सोच रखा था। अखबार बेचने से लेकर भारत के राष्ट्रपति बनने तक का सफर इन्होंने बिना हार माने किया।
"मिसाइल मैन" बनने की कहानी
अब्दुल कलाम के दिल और दिमाग में पढ़ाई करके देश के लिए कुछ कर दिखाने का जज्बा था। जिसके लिए उन्होंने अपनी मेहनत और लगन से मद्रास इंजीनियरिंग कॉलेज से एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग कि पढ़ाई की। जिसके बाद साल 1962 में वे "भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन"(ISRO) और "रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन" (DRDO) में आए। यहां उन्होंने सफलतापूर्वक कई "सैटेलाइट लॉन्च प्रोजेक्ट" में अपना योगदान दिया। ISRO में अब्दुल कलाम प्रोजेक्ट डायरेक्टर थे। इन्होंने भारत के पहले इंडिजिनियस सैटेलाइट लॉन्च यान "एसएलवी-3"(SLV-3) और पोलर सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (PSLV) के निर्माण में अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। इस यान से भारत ने रोहिणी सैटेलाइट को सफलतापूर्वक स्पेस में भेजा था। इस मिसाइल को बनाने में उन्होंने रात-दिन एक करके कड़ी मेहनत की थी। वहीं इस सैटेलाइट को सफलता मिलने के बाद, कलाम साहब ने देश को कई सारे मिसाइल दिए जिसका रिज्लट सिर्फ भारत देश ही नहीं बल्कि पूरे विश्व ने देखा था। इसी वजह से उन्हें "मिसाइल मैन" कहा गया।
"द पीपल्स प्रेसिडेंट" बनने की कहानी
भले ही कलाम का जीवन संघर्षों से भरा रहा, लेकिन उन्होंने कभी हार न मानने की ठानी। साल 2002 में वे देश के 11वें राष्ट्रपति बने। राष्ट्रपति बनने के बाद भी उनके स्वभाव में कोई बदलाव नहीं आया। उन्होंने राष्ट्रपति भवन के दरवाजे सभी जनता के लिए खोल दिए और देश के युवाओं को हमेशा बिना हार माने आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया। इसी वजह से उन्हें "जनता के राष्ट्रपति"(पीपल्स प्रेसिडेंट) की उपाधि दी गई। उनका कहना था कि अगर हम दृढ़ निश्चय के साथ कुछ करना चाहते हैं, तो हम उस काम में जरूर से जरूर सफल हो सकते हैं। राष्ट्रपति बनने के बाद उन्होंने लोगों के बीच रहना पसंद किया और कई कॉलेज-संस्थानों में भी काम किया। उनका सपना साल 2020 तक भारत को पावरफुल और इकोनॉमिकल रूप से सफल बनाना था।
क्या है "विश्व छात्र दिवस" का इतिहास?
डॉ. कलाम का जीवन स्टूडेंट्स के प्रति उनके दायित्व का प्रतीक है। उनका मानना था कि छात्रों में फ्यूचर बदलने की क्षमता होती है और शिक्षा ही वह साधन है जिससे यह चेंजेज पॉसिबल हैं। उनके इन्हीं थॉट्स को ध्यान में रखते हुए पहली बार साल 2010 में संयुक्त राष्ट्र(UN) ने उनके जन्मदिन को "विश्व छात्र दिवस" के रूप में मनाने का निर्णय लिया। इस निर्णय से उनके शिक्षा के प्रति डेडिकेशन और स्टूडेंट्स के फ्यूचर को संवारने के उनके प्रयासों को रिस्पेक्ट मिल सके। यह दिन स्टूडेंट्स को उनके राईटस, रिस्पोंसिबिलिटी और समाज में उनके रोल्स को याद दिलाने का भी दिन है। उन्होंने कई सारी पुस्तकें भी लिखी हैं जो आज लोगों के बीच काफी पॉपुलर हैं। इसके साथ ही उन्हें भारत और दुनियाभर के देशों ने कई पुरस्कारों से भी नवाजा है। डॉ. कलाम को साल 1997 में भारत रत्न, 1981 में पद्म भूषण और 1990 में पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया था। इंस्पायर कोट्स से लेकर सपनों की उड़ान तक का ज्ञान देने वाले कलाम ने 27 जुलाई, 2015 में 84 साल की उम्र में दुनिया को अलविदा कहा था।