चीन और भारत के बीच 'पर्ल' और 'डायमंड' की जंग! डिएगो गार्सिया द्वीप बढ़ा रहा 'पर्ल' की चमक, बढ़ रही भारत-अमेरिका की चिंता!

  • भारत की घेराबंदी के लिए चीन की स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स रणनीति
  • चीनी घेराबंदी के जवाब में भारत ने तैयार की नेकलेस ऑफ डायमंड रणनीति

Bhaskar Hindi
Update: 2023-06-14 11:34 GMT

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। हिंद महासागर में स्थित डिएगो गार्सिया द्वीप इन दिनों चर्चा में है। जानकारी के मुताबिक, करीब 200 सालों से अपने अधीन इस द्वीप को ब्रिटेन वापस मॉरीशस को लौटाना चाहता है। ब्रिटेन के इस फैसले पर अमेरिका ने कड़ी आपत्ति जताई है। दरअसल यह द्वीप अमेरिका के लिए बेहद महत्वपूर्ण है क्योंकि यह उसके लिए एंग्लो-अमेरिकी सैन्य अड्डे की तरह काम करता है। ब्रिटेन के इसे दोबारा मॉरीशस को लौटाने के निर्णय पर अमेरिका ने गंभीर चिंता जाहिर की है। अमेरिका का मानना है कि चीन कर्ज मे डूबे मॉरीशस से यह द्वीप लीज पर ले सकता है और यहां अपना सैन्य अड्डा बना सकता है। जिससे उसकी पैठ हिंद महासागर में बन सके। अगर चीन डिएगो गार्सिया द्वीप को हासिल करने में सफल हो जाता है तो यह अमेरिका के साथ भारत के लिए भी चिंताजनक होगा, क्योंकि चीन अपनी विस्तारवादी नीति के तहत हिंद महासागर में अपना दबदबा बनाने की जुगत में लगा हुआ है।

क्या है डिएगो गर्सिया का मामला?

हिंद महासागर में चागोस नाम का एक द्वीपसमूह स्थित है, इसी समूह का हिस्सा है डिएगो गार्सिया द्वीप। लगभग 60 द्वीपों के इस समूह पर सबसे पहले ब्रिटेन ने साल 1814 में दावा किया था। 1960 और 70 के दशक में ब्रिटेन ने डिएगो गार्सिया द्वीप पर रहने वाले लगभग 2 हजार लोगों को निकाल दिया था ताकि अमेरिका वहां अपना सैन्य अड्डा बना सके। दरअसल, ब्रिटेन ने इस द्वीप को सैन्य अड्डा बनाने के लिए अमेरिका को 50 साल की लीज पर दे दिया था। जिसके बाद यहां से बेदखल किए गए लोगों को मॉरीशस और सेशेल्स में जाकर रहना पड़ा।

लेकिन इंटरनेशनल कोर्ट में इस मुद्दे को लेकर लगातार मिल रही हार के बाद अब ब्रिटेन चागौस द्वीप समूह को ब्रिटिश हिंद महासागर क्षेत्र के संप्रभुता हस्तांतरण के तहत मॉरीशस को सौंप सकता है। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक ब्रिटेन इसे लेकर जल्द ही मॉरीशस से बात भी कर सकता है।

अमेरिका ने जताई चिंता

ब्रिटेन के इस फैसले पर अमेरिका गंभीर चिंता जता चुका है। दरअसल डिएगो गार्सिया हिंद महासागर में अमेरिका के लिए सामरिक दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण स्थान रहा है। यह उसके लिए कभी न डूबने वाले एयरक्राफ्ट कैरियर की तरह काम करता है। यहां बने उसके सैन्य अड्डे में करीब 1700 मिलिट्री व 1500 सिविलियन कॉन्ट्रेक्टर रहते हैं। इसके अलावा यहां अमेरिका के स्पेस ऑपरेशंस कमांड के साथ-साथ बड़े एयरक्राफ्ट को संभालने में सक्षम एयरस्ट्रिप, पनडुब्बी बेड़े के लिए सपोर्ट स्ट्रक्चर और रडार सिस्टम भी मौजूद हैं।

अमेरिका को आशंका है कि इस द्वीप को हासिल करने के लिए चीन मॉरीशस से संपर्क बनाए हुए है और वह इसे हासिल करने के बाद यहां अपना सैन्य अड्डा बना सकता है। अमेरिका की इस मुद्दे पर चिंता जाहिर करने की एक बड़ी वजह चीन और मॉरीशस का पिछले कुछ समय से करीब आना है। दोनों देश चीन की महत्वकांक्षी योजना में से एक बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव के अंतर्गत मुक्त व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर भी कर चुके हैं।

भारत के लिए खड़ी होगी चुनौती

अगर चीन मॉरीशस से डिएगो गार्सिया द्वीप हासिल करने में कामयाब हो जाता है तो यह अमेरिका के साथ भारत के लिए भी परेशानी बढ़ाने वाला होगा क्योंकि इससे उसकी उस विस्तारवादी नीति को बल मिलेगा, जिसके जरिए वह हिंद महासागर में अपना दबदबा बनाना चाहता है।

दरअसल, चीन ने भारत को घेरने के लिए अपनी विस्तारवादी नीति के तहत स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स पॉलिसी बनाई है। डिएगो गार्सिया द्वीप पर कब्जे के बाद उसकी इस नीति को और मजबूती मिलेगी, वहीं भारत के लिए यह किसी बड़े झटके से कम नहीं होगा।

क्या है चीन की स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स पॉलिसी?

चीन ने इस नीति का निर्माण भारत को चारों ओर से घेरने के लिए किया है। इसके जरिए चीन भारत के चारों ओर अपनी मजबूत स्थिति दर्ज कराना चाहता है। यह प्रोजेक्ट चीन से लेकर सूडान पोर्ट तक हिंद महासागर में पड़ने वाले सभी देशों में चीन अपनी सैन्य व व्यापारिक पहुंच बनाना चाहता है ताकि भारत के प्रभाव को कम किया जा सके। इस प्रोजेक्ट के अंतर्गत भारत के पड़ोसी मुल्क बांग्लादेश, म्यांमार, श्रीलंका पाकिस्तान और जिबूती के बंदरगाहों में चीन के लिए कंटेनर समेत अन्य सुविधाएं मौजूद हैं। चीन यहां कई बुनियादी ढांचों का निर्माण भी कर रहा है।

दरअसल, यह प्रोजेक्ट चीन की बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव का हिस्सा है। जिसके बारे में उसका कहना है कि इस इनिशिएटिव का निर्माण उसने अपने व्यावसायिक उपयोग के लिए किया है। लेकिन कई रक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि अभी भले ही चीन इसका उपयोग अपने व्यवसाय के लिए कर रहा है लेकिन आने वाले समय में वह इसका इस्तेमाल अपने सैन्य अड्डे को तैयार करने में भी कर सकता है।

 

भारत को घेरने की चीनी रणनीति

म्यांमार - भारत के पूर्वोत्तर में स्थित म्यांमार देश के Kyaukpyu बंदरगाह में चीन की मौजूदगी है। बंगाल की खाड़ी में मौजूद इस बंदरगाह का यूज चीन अपने कमर्शियल समुद्री सुविधा के लिए करता है। लेकिन आगे चलकर चीन इसका उपयोग सैन्य अड्डे के तौर पर भी कर सकता है। चीन ने यहां बुनियादी ढांचे के निर्माण में भी निवेश किया है, जिसका उदाहरण Kyaukyu और कुनमिंग को जोड़ने वाली 2400 किमी गैस पाइपलाइन है।

इसके अलावा भारत के अंडमान-निकोबार द्वीप समूह के नजदीक स्थित कोको द्वीप समूह में भी चीन अपना सैन्य बेस तैयार कर लिया है।

मलक्का जलडमरूमध्य - इस क्षेत्र से हिंद महासागर में होने वाले कुल व्यापार का 60 फीसदी व्यापार होता है। जिनमें मध्य-पूर्व के देशों के साथ होना वाला कच्चे तेल का व्यापार शामिल है। चीन भी अपनी जरूरत का 80 फीसदी तेल यहीं से आयात करता है। इस क्षेत्र पर चीन के मुकाबले भारत का रणनीतिक रुप से प्रभाव ज्यादा है। 1971 में भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान चीन पाकिस्तान को सहायता करना चाहता था। तब भारत ने चीन को चेतावनी देते हुए कहा था कि अगर वह पाकिस्तान की सहायता करता है तो वह चीन के लिए मलक्का जलडमरूमध्य बंद कर देगा। जिसके बाद चीन ने पाकिस्तान को मदद करने का अपना फैसला वापस ले लिया था। अब चीन इस क्षेत्र से भारत का प्रभाव कम करने के लिए चीन सिंगापुर और मलेशिया जैसे देशों के साथ दोस्ताना संबंध बनाने की कोशिश में जुटा है। खुफिया रिपोर्ट्स के मुताबिक चीन ने इस क्षेत्र के नजदीक कोकोस फीलिंग द्वीप पर अपना एक नौसेनिक अड्डा भी विकसित किया है।

बांग्लादेश - चीन भारत के एक और पड़ोसी देश बांग्लादेश में भी निवेश कर रहा है। उसने यहां के चटगांव में एक बंदरगाह डेवलप किया है। बंगाल की खाड़ी में बनाए गए इस बंदरगाह का उपयोग ड्रेगन एक स्टेशन के रूप में करता है।

श्रीलंका - चीन ने भारत के एक और पड़ोसी मुल्क श्रीलंका में भारी भरकम निवेश किया है। उसके द्वारा यहां के दक्षिणी-पूर्वी हिस्से में स्थित हंबनटोटा बंदरगाह को विकसित किया गया है। इस बंदरगाह का संचालन भी एक चीनी कंपनी द्वारा ही किया जाता है। कर्ज में दबी राजपक्षे सरकार ने इस बंदरगाह को बनाने की अनुमति चीन को दी थी। यहां चीन का एक सैन्य बेस भी बना हुआ है।

पाकिस्तान - चीन पाकिस्तान की धरती का इस्तेमाल भारत के खिलाफ करता रहा है। उसने यहां ग्वादर पोर्ट का निर्माण किया है। जिसका इस्तेमाल वह संघर्ष के समय कर सकता है। इसके अलावा चीन हिंद महासागर से लगे सूडान और केन्या जैसे अफ्रीकी देशों और मिडिल ईस्ट के कई देशों में भारी निवेश कर रहा है। ये देश भारत के लिए व्यापार की दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण माने जाते हैं।

भारत की जवाबी रणनीति

चीन की स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स रणनीति के जवाब में भारत अपनी नेकलेस ऑफ डायमंड रणनीति पर काम कर रहा है। भारत की इस रणनीति का उद्देश्य चीन को जवाबी तौर पर घेरना है। अपनी इस बहुआयामी रणनीति के तहत भारत अपने नौसैनिक अड्डों का विस्तार कर रहा है। साथ ही युद्धपोतों और पनडुब्बियों की निगरानी करने के लिए रडार प्रणाली विकसित कर रहा है। इसके जरिए भारत चीनी युद्धपोत और पनडुब्बियों को खोजने के साथ-साथ पड़ोसी मुल्कों में बने चीनी सैन्य अड्डों पर नजर रख सकता है। इसके अलावा भारत अन्य देशों के साथ अपने रक्षा संबंधों मजबूत कर रहा है, साथ ही साथ दक्षिण एशियाई देशों के साथ अपने द्विपक्षीय रिश्तों को बढ़ाने पर फोकस कर रहा है।

चीन की स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स रणनीति का मुकाबला करने के लिए भारत की नेकलेस ऑफ डायमंड रणनीति

एक्ट ईस्ट पॉलिसी - दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों की सहायता से भारतीय अर्थव्यवस्था को एक करने के उद्देश्य से इस पॉलिसी का निर्माण किया गया है। इस पॉलिसी का इस्तेमाल करके भारत वियतनाम, जापान, फिलीपींस, दक्षिण कोरिया, इंडोनेशिया, सिंगापुर और थाईलैंड जैसे दक्षिण-पूर्व एशिया के देशों के साथ महत्वपूर्ण सैन्य और रणनीतिक समझौते करना चाहता है।

मजबूत रक्षा संबंधों का निर्माण - भारत ने चीन, ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका जैसे ताकतवर देशों से कई महत्वपूर्ण रक्षा समझौते किए हैं ताकि अपनी सैन्य ताकत को बढ़ाया जा सके। इसके अलावा भारत अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और जापान के साथ हिंद महासागर में सैन्य अभ्यास भी करता है, जिससे संघर्ष के समय में चीन का मुकाबला किया जा सके। भारत के इन तीन देशों के साथ बने ग्रुप को क्वाड नाम से भी जाना जाता है।

ईरान में बंदरगाह का निर्माण

भारत द्वारा ईरान में चाबहार बंदरगाह बनाया जा रहा है। भारत का यह कदम रणनीतिक रूप से काफी महत्वपूर्ण है क्योंकि इस बंदरगाह के जरिए मध्य एशियाई देशों के साथ व्यापार के लिए भारत का नया समुद्री रास्ता खुल जाएगा। पाकिस्तान के चीनी बंदरगाह ग्वादर और होमुर्ज जलडमरूमध्य के पास स्थित यह चाबहार बंदरगाह भारत के लिए इसलिए भी अहम है क्योंकि इसकी सहायता से भारत की पहुंच ओमान की खाड़ी तक हो जाएगी, जो कि तेल की सप्लाई का सबसे महत्वपूर्ण मार्ग है।

रक्षा विशेषज्ञों का इस पूरे मामले पर कहना है कि, 'चीन अपनी स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स रणनीति के तहत भारत की घेराबंदी करने की जिस योजना पर दशकों से काम कर रहा था वह उसने लगभग पूरी कर ली है। क्योंकि उसने अपनी पहुंच पाकिस्तान, बांग्लादेश और श्रीलंका तक बना ली है। दरअसल, ड्रैगन की यह काफी पुरानी इच्छा थी कि उसका दबदबा हिंद-प्रशांत महासागर क्षेत्र पर बने, जिससे सुरक्षा और व्यापारिक दृष्टि से उसे मजबूती मिल सके। अगर चीन डिएगो गार्सिया द्वीप को मॉरिशस से लेकर यहां अपना सैन्य बेस बना लेता है तो वह काफी मजबूत हो जाएगा। ऐसे में चीन की चुनौती का सामना करने के लिए जरूरी है कि भारत अपनी नौसेना को मजबूत करने पर फोकस करें। उसका आधुनिकीकरण करे, उच्च क्षमता वाले एयरक्राफ्ट को अपने बेड़े में शामिल करे। क्योंकि आने वाले 10 साल भारत के लिए काफी चुनौतीपूर्ण रहने वाले हैं।'

Tags:    

Similar News