क्या है युद्ध के बाद दिखने वाला 'रिटर्निंग सोल्जर इफेक्ट'?: जंग खत्म होते ही युद्ध पीड़ित देशों में बढ़ जाती है बेटों के जन्म लेने की संख्या! क्या है इसके पीछे का विज्ञान और वैज्ञानिकों के तर्क?
- युद्ध खत्म होने के बाद लड़कों के जन्म दर में होती है बढ़ोत्तरी
- वैज्ञानिकों ने रिटर्निंग सोल्जर इफेक्ट की अवधारणा
- शोध में सामने आया लड़कों के अधिक जन्म दर होना का कारण
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। वर्तमान में इजराइल-ईरान से लेकर रूस-यूक्रेन के बीच भीषण युद्ध जारी है। इस बीच युद्ध के इतिहास में अक्सर एक घटना ऐसी देखने को मिली है जिसने वैज्ञानिकों को हैरत में डाल रखा है। कुछ अध्ययनों के मुताबिक युद्ध के बाद लड़कों के जन्म में असमान्य बढ़ोत्तरी देखी गई है। वैज्ञानिक भाषा में इसे "लौटते सैनिक प्रभाव" के नाम से जाना जाता है। अंग्रेजी भाषा में इसे 'रिटर्निंग सोल्जर इफेक्ट' भी कहा जाता है। युद्ध के बाद होने वाली इस घटना के पीछे का कारण जानने के लिए कई तरह के शोध किए जा रहे हैं। जिससे युद्ध के बाद लड़कों के जन्म लेने की दर में आई असामान्य वृद्धि की वजह के बारे में पता चल पाए। आइए जानते हैं इस घटना के पीछे वैज्ञानिकों ने अपने अध्ययन में किन ऐतिहासिक तथ्यों के बारे में उल्लेख किया है।
क्या है रिटर्निंग सोल्जर इफेक्ट
दुनिया में विश्व युद्ध प्रथम और द्वितीय समेत कई बड़े युद्धों के बाद लड़कों के अधिक अनुपात में जन्म लेने के बाद पहली बार रिटर्निंग सोल्जर इफेक्ट नाम की अवधारणा को जन्म दिया। वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन के मुताबिक दुनिया में प्रति दिन औसतन 105 लड़के प्रति 100 लड़कियों के अनुपात से जन्म लेते हैं। रिटर्निंग सोल्जर इफेक्ट के बाद देखा गया कि लड़कों के जन्म लेने का यह अनुपात बढ़कर करीब 110 के पार चला जाता है।
क्या कहते हैं ऐतिहासिक तथ्य
विश्व युद्ध 2 के बाद की बात करें तो 1940 के दशक के आखिरी में कई पश्चिमी देशों में लड़कों की जन्मदर में काफी बढ़ोत्तरी देखने को मिली थी। इसके अलावा कोरियाई युद्ध और वियतनाम युद्ध के बाद इस रिटर्निंग सोल्जर इफेक्ट को देखा गया था। इतिहास के कई बड़े युद्ध जैसे नैपोलियन की लड़ाइयां और गृहयुद्धों के बाद भी रिटर्निंग सोल्जर इफेक्ट दर्ज किया गया। इसमें युद्ध के बाद सैनिकों की घर वापसी के बाद लड़कों की जन्म दर में असामान्य वृद्धि पाई गई थी।
रिटर्निंग सोल्जर इफेक्ट के पीछे वैज्ञानिकों ने कई तर्क दिए हैं। ये तर्क बायलॉजिकल च्वाइसेस, स्ट्रेस, हार्मोनल इफेक्ट और सोशल फेक्टर्स के बेस पर दिए गए।
बायलॉजिकल सिलेक्शन
वैज्ञानिकों के मुताबिक, इस सिद्धांत के तहत समाज में बड़े स्तर पर पुरुषों की मौत होने पर प्राकृतिक खुद को बैलेंस करने की कोशिश करती है। इस दौरान लड़कों के जन्म दर में वृद्धि होती है। जैविक स्तर पर योनि में शुक्राण के प्रकार (X और Y क्रोमोसोम) पर निर्भर करता है कि कौन सा शुक्राणु सबसे पहले अंडाणु से मिल पाता है। लड़के के जन्म के लिए Y क्रोमोसोम के शुक्राणु का होना जरूरी होता है, जो जल्दी से अंडाणु तक जाकर मिलते हैं। इसके बाद लड़के के जन्म की संभावना बढ़ जाती है।
तनाव और हार्मोनल इफेक्ट
वैज्ञानिकों का कहना है कि इस सिद्धांत के तहत युद्ध के बाद घर जा रहे सैनिकों के हार्मोनल स्तर में परिवर्तन आने की संभावना बढ़ जाती है। सैनिकों में युद्ध को लेकर तनाव और घर जाने की राहत उनके शरीर में टेस्टोस्टेरोन के स्तर को बढ़ाने का काम कर सकती है।
सोशल फेक्टर्स
इस सिद्धांत में वैज्ञानिकों का कहना है कि युद्ध के बाद सैनिकों पर सामाजिक परिस्थितियों का प्रभाव भी ज्यादा पड़ता है। युद्ध के बाद घर वापस आ रहे सैनिक अपने परिवारों को बढ़ाने के इच्छुक रहते हैं। वहीं, समाज में पुरुषों की कमी के अभाव में परिवार में लड़कों के जन्म की प्राथमिकता देने का जोर बढ़ सकता है।