अफगानिस्तान में तालिबान ने राजनैतिक पार्टियों पर लगाया प्रतिबंध, राजनैतिक दलों को सपोर्ट करने पर लोगों को मिलेगी सख्त सजा

तालिबान ने राजनैतिक पार्टियों पर लगाया प्रतिबंध

Bhaskar Hindi
Update: 2023-08-17 16:55 GMT

डिजिटल डेस्क, भोपाल। अफगानिस्तान में राजनीति के संदर्भ में एक बड़ा फैसला लिया गया है। दरअसल, अफगानिस्तान की आंतरिक तालिबान सरकार ने लोगों पर राजनीतिक गतिविधियों में शामिल होने और उनसे जुड़ने पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया है। ऐसे में यदि किसी व्यक्ति को राजनैतिक पार्टी और उनसे जुड़ी गतिविधियों में  सम्मिलित होते पाया जाता है तो उस पर सख्त कार्रवाई की जाएगी। साथ ही, उन्हें सलाखों के पीछे भेज दिया जाएगा। अंतरिम तालिबान सरकार का कहना है कि यह फैसला उन्होंने शरिया कानून के जरिए लिया गया है। 

इस फैसले की जानकारी 'द खोरसाना डायरी' के आधिकारिक ट्विटर पोस्ट से मिली है। इस पोस्ट में बताया गया है कि अफगानिस्तान की अंतरिम तालिबान सरकार ने राजनैतिक पार्टियों में शामिल होने पर पाबंदी लगा दी गई है। इस निर्णायक फैसले को आंतरिक तालिबान सरकार के न्याय मंत्री मौलवी अब्दुल हकीम शेराई द्वारा लिया गया है। जिसमें उन्होंने कहा कि यदि कोई भी व्यक्ति राजनैतिक दलों की गतिविधियों में पाया गया तो उसे सख्त सजा दी जाएगी और जेल भी भेज दिया जाएगा। उन्होंने आगे कहा कि इस्लाम शरिया में राजनैतिक पार्टियों का कोई सिद्धांत नहीं है।

तालिबान के काबिज में अफगानिस्तान

अफगानिस्तान की सत्ता में तालिबान की वापसी को दो साल पूरे हो चुके हैं। साल 2021 में 15 अगस्त के दिन तालिबान ने अफगानिस्तान में अपना डेरा जमा लिया था। सत्ता में आने के बाद तालिबान ने फिर से इस्लामिक शासन को लागू कर देश पर अपना सिक्का जमाना लिया। अपने दो साल के शासन में तालिबान ने देश की स्थिति में उलटफेर कर दिया। जिसमें तालिबान सरकार ने महिलाओं पर कई तरह की पाबंदी लगाई है। साथ ही, उनसे पढ़ने लिखने और काम करने के अधिकार भी छीन लिए गए हैं।

बदतर हुई देश की अर्थव्यवस्था

अर्थव्यवस्था के दृष्टिकोण से देखा जाए तो अफगानिस्तान पिछड़े देशों की गिनती में आता है। तालिबान के शासन से पहले अफगानिस्तान की अर्थव्यवस्था कुछ खास नहीं थी। ऐसे में तालिबान के कब्जे के बाद देश के हालात सुधरने के बजाय और बिगड़ गए हैं। बता दें कि, अन्य देशों की तुलना में यहां की अर्थव्यवस्था और गरीबी का स्तर नीचे गिरता चला रहा है। खराब अर्थव्यवस्था के चलते आफगानिस्तान को विदेशों से जो बाहरी मदद मिल रही थी, तालिबान आने के बाद वह मदद भी मिलना बंद हो गई है। 

अफगानिस्तान के सामने संकट का पहाड़

दो साल से शासन में होने के बावजूद तालिबान को अन्य मुल्कों ने मान्यता नहीं दी है। हालांकि, पाकिस्तान, चीन और रूस जैसै देश अन्य तरीकों से तालिबान के संपर्क में हैं। वहीं, दूसरे मुल्कों द्वारा तालिबान को मान्यता न देने का प्रमुख कारण यह है कि उन्होनें महिलाओं से उनके मौलिक अधिकारों को छीना और उन पर कई तरह की पाबंदी लगाई। जिसके लिए अंतराष्ट्रीय समुदाय महिलाओं के अधिकार को वापस करने की जिद्द में जुटा है।

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