नेपाल सत्ता परिवर्तन: चीन समर्थक ओली बने नए पीएम, भारत-नेपाल के रिश्तों पर कैसा पड़ेगा असर?
- केपी शर्मा ओली बने नेपाल के नए प्रधानमंत्री
- पुष्प कमल दहल उर्फ प्रचंड की लेंगे जगह
- चीन के समर्थक माने जाते हैं ओली
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। केपी शर्मा ओली आज नेपाल के नए पीएम बन गए हैं। उन्हें सोमवार को राष्ट्रपति रामचंद्र पौडेल ने पीएम पद की शपथ दिलाई। सीपीएन-यूएमएल के केपी ओली ने शेर बहादुर देउबा की पार्टी के साथ मिलकर सरकार बनाई है। दोनों दलों के बीच इस गठबंधन को लेकर एक डील भी हुई है, जिसके मुताबिक बचे कार्यकाल यानी अगले चुनाव तक बारी-बारी से प्रधानमंत्री बनेंगे। पहले ओली इसके बाद देउबा पीएम का पद संभालेंगे।
दरअसल, केपी ओली की सीपीएन-यूएमएल ने पूर्व पीएम पुष्प कमल दहल उर्फ प्रचंड की कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल से गठबंधन तोड़ लिया था। जिसके बाद प्रचंड संसद में विश्वास मत हासिल करने में नाकामयाब रहे थे। उन्हें 275 सांसदों में से केवल 63 का समर्थन मिला और उनकी सरकार गिर गई थी। इस तरह वह करीब डेढ़ साल तक ही इस पद पर बने रहे।
भारत पर असर
प्रचंड का सत्ता से जाना और केपी ओली का उस पर काबिज होना भारत के लिए चिंता का सबब जरुर बन सकता है। उसकी वजह पूर्व पीएम प्रचंड को जहां भारत का समर्थक माना जाता था। वहीं, नए पीएम केपी शर्मा ओली को चीन का समर्थक माना जाता है।
वह जब पिछली बार नेपाल के पीएम बने थे तो उन्होंने चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव को सपोर्ट किया था। साथ ही इसमें शामिल होने के लिए हामी भर दी थी। हालांकि अभी इस समझौते पर नेपाल की ओर से साइन नहीं किए गए हैं। कुछ दिनों पहले चीन के विदेश मंत्री नेपाल के दौरे पर थे, तब के पीएम प्रचंड ने इस समझौते पर साइन करने से इनकार कर दिया था।
इसके अलावा ओली के पीएम रहते ही साल 2020 में नेपाल ने अपना ऑफिशियल नक्शा जारी किया था। जिसमें भारत में आने वाले लिपुलेख, कालापानी और लिंपियाधुरा को नेपाल की बॉर्डर में दिखाया गया था। नेपाल के इस कदम का भारत ने कड़ा विरोध किया था। इसी साल जब रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने लिपुलेख दर्रे से लेकर धारचूला को जोड़ने वाली 80 किलोमीटर लंबी सड़क का उद्धाटन किया था, तब भी नेपाल ने इस पर आपत्ति जताई थी। उसने कहा था कि यह सड़क नेपाल के हिस्से में बनी है। उसके इस दावे का भारत ने विरोध किया था।
इसके अलावा साल 2015 में जब भारत-नेपाल सीमा पर करीब 6 महीने नाकबंदी रही थी तो ओली ने इसके लिए भारत को जिम्मेदार ठहराया था। हालांकि ओली की पार्टी ने जिस नेपाली कांग्रेस पार्टी के साथ गठबंधन किया है उसके प्रमुख शेर बहादुर देउबा भारत के समर्थक माने जाते हैं। ऐसे में नेपाल की नई सरकार भारत के खिलाफ जाकर कोई काम करेगी या उसके साथ रिश्तों में परिवर्तन करेगी इसके चांसेज कम ही नजर आते हैं।