शहबाज शरीफ के पाकिस्तान की बागडोर संभालते ही, क्या पड़ेगा भारत पर असर? समझिए इन 5 प्वाइंट्स से
कितने अजीज, कितने शरीफ! शहबाज शरीफ के पाकिस्तान की बागडोर संभालते ही, क्या पड़ेगा भारत पर असर? समझिए इन 5 प्वाइंट्स से
- शहबाज शरीफ ही सत्ता की कुर्सी पर बैठेंगे
- पाकिस्तान के पंजाब सूबे के शहबाज 3 बार मुख्यमंत्री बन चुके
डिजिटल डेस्क, इस्लामाबाद। पाकिस्तान में अविश्वास प्रस्ताव को लेकर हुए वोटिंग में हारने के बाद इमरान खान सत्ता से बेदखल हो चुके हैं। पाकिस्तान मुस्लिम लीग नवाज के नेता शहबाज शरीफ पाकिस्तान के पीएम बन चुके हैं। शरीफ को पाकिस्तानी संसद में 174 सदस्यों का साथ मिला। इमरान खान की पार्टी का कोई भी सदस्य वोटिंग में शामिल नहीं हुआ। इस बीच राष्ट्रपति आरिफ अल्वी की तबियत खराब होने की खबर भी आई। जिसके चलते नए पीएम को पाकिस्तानी संसद के अध्यक्ष साजिक संजरानी ने शपथ दिलवाई।
अब पाकिस्तान के नए प्रधानमंत्री को लेकर सवाल उठने लगे हैं कि इनके साथ भारत के रिश्तों पर क्या असर पड़ेगा? शहबाज कितने शरीफ साबित होंगे भारत के साथ? इन सभी सवालों के जवाब को समझते हैं इन पांच बिंदुओं के साथ।
पीएम बने नहीं, कश्मीर राग अलापना शुरू
पाकिस्तान के नए पीएम बनने का रास्ता साफ हो गया है और शहबाज शरीफ ही सत्ता की कुर्सी पर बैठेंगे। लेकिन ऐसा नहीं लगता है कि इनके पीएम बनने पर भारत के साथ मधुर संबंध बन पाएंगे। उन्होंने रविवार को मीडिया के प्रतिनिधियों से बातचीत के दौरान कहा कि हम भारत के साथ शांति चाहते हैं। लेकिन कश्मीर मुद्दे के समाधान तक यह संभव नहीं। इससे स्पष्ट है कि शहबाज शरीफ कश्मीर मुद्दे को आगे रख कर इस विवाद को जीवंत रखना चाहते हैं। पाक मीडिया के अनुसार, कश्मीर मुद्दा पाक की सेना के मनमुताबिक है। क्योंकि पाक सेना इस मुद्दे को जिंदा रखना चाहती है। भले ही पाकिस्तान में कोई प्रधानमंत्री बने लेकिन उसे सेना के हिसाब से ही चलना पड़ता है।
कश्मीर मुद्दा बना वोट बैंक का हब
पाकिस्तान के पंजाब सूबे के शहबाज 3 बार मुख्यमंत्री बन चुके हैं। यहां शहबाज को सख्त शासक व सुधारवादी नीतियों के लिए जाना जाता है। हालांकि उनके आलोचक बताते हैं कि शहबाज जब भी कोई नीति बनाते हैं तो उसके पीछे सबसे ज्यादा वोट बैंक छिपा रहता है। यानी जनता के बीच सरकार की छवि गढ़ने में जिनसे मदद मिले। जैसे- मुफ्त लैपटॉप बांटना, बेरोजगार युवाओं के लिए कम किराए में टैक्सी सर्विस उपलब्ध कराना ताकि उनको ज्यादा से ज्यादा वोट मिल सके। पाक जानकारों के मुताबिक कश्मीर मुद्दा राष्ट्रीय मुद्दा है। तथा पाकिस्तान में इस मुद्दे पर राजनीतिक पार्टियों को अच्छा वोट मिलता है। इसलिए शहबाज इस मुद्दे को ज्वलंत रखना चाहेंगे बजाय समाधान के।
चीन के ज्यादा करीब शहबाज
खबरों के मुताबिक शहबाज जब पंजाब प्रांत के मुख्यमंत्री थे, तो उन्होंने चीन की आर्थिक मदद से संचालित परियोजनाओं को तेजी से लागू किया था। इसमें पाकिस्तान की पहली मेट्रो सेवा भी शामिल थी। इसीलिए चीन ने शहबाज के पीएम बनने पर खुशी भी जाहिर की है। चीन के अखबार ग्लोबल टाइम्स में लेख लिखा गया है कि इमरान खान का संभावित उत्तराधिकारी शरीफ परिवार से है, जो लंबे समय से चीन-पाकिस्तान संबंधों को बढ़ावा दे रहा है। उनके कार्यकाल में दोनों देशों के बीच आपसी सहयोग इमरान खान से बेहतर हो सकता है। इससे यही कयास लगाए जा रहे हैं कि शहबाज चीन पाकिस्तान आर्थिक गलियारे जैसी परियोजनाओं में तेजी लाएंगे। जबकि यह योजना भारत के लिहाज से उल्टा है क्योंकि यह पाक कब्जे वाले कश्मीर से होकर गुजरता है।
जरदारी भी मानते कश्मीर मुद्दा जल्द न हल होने वाला मसला
शहबाज ही अकेले पाकिस्तान के नेता नहीं है, जो कश्मीर मुद्दे पर अपनी अलग राय रखते है। इनके साथ दूसरा बड़ा दल पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी है जो भले ही शहबाज की पार्टी पीएमएल-एन की विरोधी है। लेकिन राजनीतिक हितों के मुद्देनजर साथ है। हालांकि पीपीपी की नीतियां पीएमएल-एन से अलग रही हैं। जब पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी थे, तो वे कश्मीर को जल्दी हल न होने वाला मसला बता चुके हैं।
वे कश्मीर छोड़कर अन्य मसलों पर भारत से बातचीत के पेशकश कर चुके हैं। लेकिन भारत के पीएम नरेंद्र मोदी का रूख स्पष्ट है कि पहले कश्मीर मुद्दे पर बात होगी फिर अन्य किसी मुद्दे पर होगी। खबर है कि शहबाज सरकार में जरदारी के बेटे बिलावल को विदेश मंत्री बनाया जा सकता है। जो अपने ही नीतियों के हिसाब से चलेंगे।
शहबाज इन वजह से नहीं ले सकते सख्त फैसले
गौरतलब है कि नेशनल असेंबली का कार्यकाल केवल एक साल बचा हुआ है। पाकिस्तान में 2023 में आम चुनाव होंगे। उधर पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था भी पूरी तरह से ध्वस्त है। अमेरिकी डॉलर की तुलना में वहां के रुपये की कीमत 190 के करीब हो चुकी है। शहबाज के पास अपने दम पर सदन में पूरा बहुमत भी नहीं है। इस प्रकार अगर देखा जाए तो शहबाज आर्थिक, राजनीतिक दृष्टिकोण से पूरी तरह से फंसे हुए हैं। जिसके चलते बड़े फैसले लेना उनके लिए मुसीबत बन सकती है।
फिर वह चाहे भारत से संबंध हो या फिर कश्मीर मुद्दा। इससे हटकर शहबाज अपनी राजनीतिक नींव मजबूत करने लिए देश के लिए लोकलुभावन फैसले ही करेंगे ताकि उनको उसका लाभ आगामी 2023 लोकसभा चुनाव में मिल सके। इस वक्त शहबाज के साथ कोई उम्मीद नहीं रखा जा सकता है। कश्मीर मसले पर केवल वह बयानबाजी ही दे सकते हैं, न कि समाधान पर भारत से बात करेंगे।