श्रावण मास: जानें सावन में बेलपत्र का महत्व, ये हैं बेलपत्र को अर्पित करने के जरूर नियम
डिजिटल डेस्क, भोपाल। भोलेनाथ की भक्ति और उनकी कृपा पाने के लिए सावन माह सबसे श्रेष्ठ माना गया है। सावन यानी श्रावण जो कि 4 जुलाई से आरंभ हो गया है। सावन का महीना हिंदू कैलेण्डर का 5वां महीना होता है। शिव पुराण के अनुसार, सावन के महीने में भगवान शिव और माता पार्वती पृथ्वी में निवास करते हैं। इसलिए कहा जाता है कि सावन के महाने में शिवलिंग की पूजा करने से जीवन में सुख एवं समृद्धि की प्राप्ति होती है और सभी तरह की मनोकामनाएं जल्दी ही पूरी हो जाती है।
शिवलिंग की पूजा करते वक्त जल और बेलपत्र अर्पित की जाती है, ये तो सभी जानते हैं। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि इसके पीछे का क्या कारण हो सकता है। शिव पुराण के अनुसार, भगवान शिव को बेलपत्र चढ़ाने से एक करोड़ कन्यादान के बराबर फल मिलता है। वहीं ऐसा माना जाता है कि बेलपत्र और जल से भगवान शिव का मस्तिष्क शीतल रहता है।
भगवान शिव को बेलपत्र बेहद प्रिय है-
बेलपत्र का धार्मिक औषधीय और सांस्कृतिक महत्व पुराणों और वेदों में बताया गया है। पुराणों के अनुसार, बेलपत्र से पूरे ब्रह्मांड का निर्माण हुआ है। वहीं मान्यता है कि समुद्र मंथन में हलाहल नाम का विष निकला था। जिसका प्रभाव विश्व में ना पड़े इसलिए महादेव ने हलाहल विष का पान किया था। जिसके बाद विष का प्रभाव को कम करने के लिए देवी- देवताओं ने उन्हें बेलपत्र को खिलाना शुरू कर दिया। साथ ही जल अर्पित किया था। जिससे उन्हें राहत मिली और वे प्रसन्न हुए और तभी से शिव पर जल और बेलपत्र चढ़ाने की प्रथा चल रही है।
बेलपत्र अर्पित करते समय ध्यान रखें ये बातें -
शिवलिंग पर बेलपत्र हमेशा उल्टा करके अर्पित करना चाहिए, मतलब पत्ते का चिकना भाग शिवलिंग के ऊपर होना चाहिए।
एक बेलपत्र में तीन पत्तियां होनी चाहिए और पत्तियां कटी या टूटी न हो साथ ही उनमें कोई छेद भी न हो।
बेलपत्र को अर्पित करते समय साथ ही जल की धारा जरूर चढ़ाए, ध्यान रखें कि बिना जल के बेलपत्र अर्पित नहीं करना चाहिए।
बेलपत्र को अनामिका, अंगूठे और मध्या अंगुली की मदद से ही अर्पित करना चाहिए।
ध्यान रखें कि विशेषकर अष्टमी, नवमी, त्रयोदशी, चतुर्दशी, अमावस्या और सोमवार के दिन बेलपत्र नहीं तोड़ना चाहिए।
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