शारदीय नवरात्रि का सातवां दिन: यंत्र, मंत्र और तंत्र की देवी हैं माता कालरात्रि, इस विधि से करें पूजा
- पूजा-अर्चना करने से नकारात्मक प्रभाव बेअसर होते हैं
- माता कालरात्रि की पूजा से भय का भी नाश होता है
- मां कालरात्रि की पूजा से दुष्प्रभावों से छुटकारा मिलता है
डिजिटल डेस्क, भोपाल। मां दुर्गा की आराधना में इन दिनों पूरा देश डूबा हुआ है। जगदम्बा के विभिन्न रूपों के दर्शन पंडालों में हो रहे हैं। मंदिरों में जगराता हो रहे हैं और सड़कें जयकारों से गूंज रही हैं। इस तरह 6 दिन नवरात्रि के निकल चुके हैं और अब बारी है सातवें दिन की, जो कि मां कालरात्रि (Maa Kalratri) को समर्पित है। यह मां दुर्गा का सातवां स्वरूप है। मां कालरात्रि को यंत्र, मंत्र और तंत्र की देवी कहा जाता है।
मान्यता है कि, माता कालरात्रि की विधिवत पूजा-अर्चना करने से नकारात्मक प्रभाव बेअसर होते हैं, यही नहीं इनकी पूजा से भय का भी नाश होता है। साथ ही व्यक्ति को शुभ परिणाम मिलते हैं। साथ ही सभी दुष्प्रभावों से छुटकारा मिल जाता है। मां कालरात्रि की पूजा इस वर्ष 09 अक्टूबर, बुधवार को की जा रही है। आइए जानते हैं मां कालरात्रि का स्वरूप, पूजा विधि और मंत्र के बारे में...
ऐसा है मां का स्वरूप
माँ कालरात्रि का स्वरूप देखने में अत्यंत भयानक है, इनका रंग काला है और ये अपने विशाल बालों को फैलाए हुए हैं। लेकिन माता अपने भक्तों को शुभफल प्रदान करती हैं। माता कालरात्रि के तीन नेत्र हैं और इनकी चार भुजाएं हैं। सिंह के कंधे पर सवार मां कालरात्रि का विकराल रूप अद्भुत हैं। उनके गले में मुंड माला रहती है। देवी कालरात्रि दाहिने हाथ की वरमुद्रा से वर देती हैं। उनके नीचे वाला हाथ अभय मुद्रा में है, बायीं तरफ के ऊपर वाले हाथ में लोहे का कांटा और नीचे वाले हाथ में लोहे की कटार है। माता माथे पर चन्द्रमा का मुकुट धारण किए हुए हैं।
पूजा विधि
- सुबह सूर्योदय से पूर्व उठें स्नान आदि से निवृत्त होकर साफ सुथरे वस्त्र धारण करें।
- इसके बाद घर के मंदिर की सफाई करें और गंगा जल का छिड़काव करें।
- मां कालरात्रि का चित्र या तस्वीर स्थापित करें।
- मां को रातरानी के पुष्प, रोली, फूल माला, अक्षत अर्पित करें।
- धूप और दीपक प्रज्जवलित करें।
- मां कालरात्रि को गुड़ और गुड़ से बनी चीजों का भोग लगाएं।
- मां कालरात्रि की आरती करें।
- दुर्गा सप्तशती, दुर्गा चालीसा का पाठ करें।
इस मंत्र का करें जाप
एकवेणी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता, लम्बोष्टी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्तशरीरिणी।
वामपादोल्लसल्लोहलताकण्टकभूषणा, वर्धनमूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयङ्करी॥
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