शारदीय नवरात्रि का छठवां दिन: मां कात्यायनी की पूजा में इस मंत्र का करें जाप, शहद का लगाएं भोग
- मां की पूजा करने से रोग-दोषों से मुक्ति मिलती है
- देवी कात्यानी भक्तों को सुख-समृद्धि प्रदान करती हैं
- मां कात्यानी विवाह में आने वाली रुकावटें दूर करती हैं
डिजिटल डेस्क, भोपाल। शारदीय नवरात्रि के पांच दिन बीत चुके हैं और छठवां दिन 08 अक्टूबर, मंगलवार को है। इस दिन मां दुर्गा के छठवें स्वरूप मां कात्यानी (Maa Katyayani) की पूजा की जाती है। इस दिन भक्त व्रत रखते हैं और जगराता करते हैं। मान्यता है कि, माता के इस स्वरूप की पूजा करने से रोग-दोषों से मुक्ति मिलती है। माता अपने भक्तों के लिए उदार भाव रखती हैं और भक्तों को सुख-समृद्धि प्रदान करती हैं।
देवी कात्यायनी की उपासना करने से साधक को अर्थ, धर्म, काम और मोक्ष चारों फलों का लाभ मिलता है। कहा जाता है कि, मां कात्यायनी प्रसन्न होकर सुयोग्य वर का आशीर्वाद देती हैं और विवाह में आने वाली रुकावटें दूर करती हैं। आइए जानते हैं मां का स्वरूप, पूजा विधि, मंत्र और प्रिय भोग के बारे में...
कैसा है मां कात्यानी का स्वरूप
मां दुर्गा अपने छठवें स्वरूप में सिंह पर विराजमान हैं। उनका ये स्वरूप अत्यंत चमकीला और भास्वर है। इनकी चार भुजाएं हैं, इनमें से दाहिनी तरफ का ऊपर वाला हाथ अभयमुद्रा में है। वहीं नीचे वाला हाथ वरमुद्रा में है। जबकि, बाईं तरफ के ऊपर वाले हाथ में तलवार और नीचे वाले हाथ में कमल-पुष्प है।
पूजा विधि
- चौकी पर साफ लाल रंग का कपड़ा बिछाकर उस पर मां कात्यायनी की मूर्ति रखें।
- अब गंगाजल से पूजा घर और घर के बाकी स्थानों को पवित्र करें।
- अपने हाथ में एक फूल लेकर मां कात्यायनी का ध्यान करें
- इसके बाद पूजा में गंगाजल, कलावा, नारियल, कलश, चावल, रोली, चुन्नी, अगरबत्ती, शहद, धूप, दीप और घी का प्रयोग करें।
- मां को लाल फूल, अक्षत, कुमकुम और सिंदूर अर्पित करें।
- माता को उनका प्रिय भोग जरूर लगाएं।
- देवी कात्यायनी की पूजा करते समय मंत्र का जप करें।
- इसके बाद उनके समक्ष घी अथवा कपूर जलाकर आरती करें
मां को लगाएं प्रिय चीज का भोग
- मां कात्यायनी को शहद अति प्रिय है। इसलिए पूजा में देवी को शुद्ध शहद अर्पित करें। माता को मालपुआ का भोग भी प्रिय है। इसके अलावा माता को मीठे पान का भोग लगाना बेहद शुभ माना गया है।
इस मंत्र का करें जाप
या देवी सर्वभूतेषु शक्ति रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥
कंचनाभा वराभयं पद्मधरां मुकटोज्जवलां।
स्मेरमुखीं शिवपत्नी कात्यायनी नमोस्तुते॥
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