परिवर्तिनी एकादशी: इस व्रत से मिलता है अश्वमेध यज्ञ के बराबर फल, जानें पूजा विधि

इस व्रत को करने से आत्मा शुद्ध हो जाती है

Bhaskar Hindi
Update: 2023-09-25 10:37 GMT

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। हिंदू धर्म में एकादशी व्रत का अत्यधिक महत्व है। वहीं सनातन धर्म में भाद्रमास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को परिवर्तिनी या पद्म एकादशी, पार्श्व एकादशी, वामन एकादशी, जयझूलनी एकादशी, डोल ग्‍यारस और जयंती एकादशी जैसे कई नामों से जाना जाता है। इस बार यह एकादशी आज यानि​ कि 25 सितंबर, सोमवार को है। यह दिन भगवान विष्णु जी को समर्पित है।

ऐसा माना जाता है कि, यह व्रत करने से सभी तरह​ के कष्टों से मुक्ति मिलती है और आत्मा शुद्ध हो जाती है। ज्योतिषाचार्य के अनुसार, इस दिन भगवान विष्‍णु के वामन अवतार की पूजा का विधान है। कहा जाता है, कि परिवर्तिनी एकादशी की कथा पढ़ने या सुनने से हजार अश्वमेध यज्ञ के बराबर फल मिलता है। आइए जानते हैं इस ​दिन कैसे करें पूजा और क्या है शुभ मुहूर्त...

मुहूर्त

एकादशी तिथि आरंभ: 25 सितंबर सुबह 07 बजकर 55 मिनट से

एकादशी तिथि समापन: 26 सितंबर सुबह 05 बजकर 12 मिनट तक

पूजा विधि

परिवर्तिनी एकादशी के दिन सुबह उठकर स्‍नान करें और स्‍वच्‍छ वस्‍त्र धारण करें। इसके बाद घर के मंदिर में भगवान विष्‍णु की प्रतिमा, फोटो या कैलेंडर के सामने दीपक जलाएं। भगवान विष्‍णु की प्रतिमा को स्‍नान कराएं और वस्‍त्र पहनाएं और फिर प्रतिमा को अक्षत, फूल, मौसमी फल, नारियल और मेवे चढ़ाएं। ध्यान रहे भगवान विष्‍णु की पूजा करते वक्‍त तुलसी के पत्ते अवश्‍य रखें।

इसके बाद धूप दिखाकर श्री हरि विष्‍णु की आरती उतारें। परिवर्तिनी एकादशी की कथा सुनें या सुनाएं। इस दिन दान करना परम कल्‍याणकारी माना जाता है। नियमानुसार इस तिथि को रात के समय सोना नहीं चाहिए, बल्कि भगवान का भजन-कीर्तन करना चाहिए। वहीं अगले दिन पारण के समय किसी ब्राह्मण या गरीब को यथाशक्ति भोजन कराए और दक्षिणा देकर विदा करें। इसके बाद अन्‍न और जल ग्रहण कर व्रत का पारण करें।

डिसक्लेमरः इस आलेख में दी गई जानकारी अलग अलग किताब और अध्ययन के आधार पर दी गई है। bhaskarhindi.com यह दावा नहीं करता कि ये जानकारी पूरी तरह सही है। पूरी और सही जानकारी के लिए संबंधित क्षेत्र के विशेषज्ञ (ज्योतिष/वास्तुशास्त्री/ अन्य एक्सपर्ट) की सलाह जरूर लें।

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