संतान की लंबी आयु के लिए महिलाएं रखती हैं ये व्रत, जानें पूजा विधि
अहोई अष्टमी संतान की लंबी आयु के लिए महिलाएं रखती हैं ये व्रत, जानें पूजा विधि
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। वैसे तो हिंदू धर्म में महिलाएं अपनी संतान की सुख-समृद्धि के लिए कई व्रत रखती हैं। जैसे संतान सातें, जीवित्पुत्रिका व्रत आदि। अहोई अष्टमी व्रत भी एक ऐसा ही व्रत है। हिंदू कैलेंडर के अनुसार कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी यानी 28 अक्टूबर, गुरुवार को अहोई अष्टमी व्रत है। इस दिन महिलायें अपनी संतान की लंबी उम्र, अच्छे स्वास्थ्य और उज्जवल भविष्य की कामना के साथ निर्जला व्रत रखकर भगवान शिव और मां पार्वती की पूजा करती हैं। रात में अहोई मां की पूजा-अर्चना के बाद यह व्रत खोला जाता है। इस व्रत को करने से अहोई माता प्रसन्न होकर संतान की सुख-समृद्धि और संतान प्राप्ति का आशीर्वाद देती हैं।
अहोई अष्टमी व्रत का शुभ मुहूर्त
तिथि शुरू: गुरुवार को दोपहर 12 बजकर 51 मिनट से शुरू
तिथि समाप्त: शुक्रवार 29 अक्टूबर सुबह 02 बजकर 10 मिनट तक
उदया तिथि के अनुसार यह व्रत 29 अक्टूबर को प्रारंभ होगा. चूंकि अहोई माता की सायंकाल में पूजा की जाती है और 29 तारीख को 02 बजकर 10 मिनट के बाद नवमी तिथि शुरू हो जाएगी। अतः यह व्रत 28 अक्टूबर, गुरूवार को रखा जाएगा। 28 अक्टूबर को पूजा का शुभ मुहूर्त शाम 6 बजकर 40 मिनट से रात 8 बजकर 35 मिनट तक है।
ये है व्रत व पूजन विधि
अहोई माता का स्वरूप स्थानीय परंपरा के अनुसार अलग-अलग होता है। व्रती महिलाएं इस दिन चांदी की अहोई बनवाती हैं। महिलाएं जमीन को गोबर से लीपकर कलश की स्थापना करती हैं। इस दिन गेरू से आठ कोष्ठक की एक पुतली का चित्रांकन किया जाता है जो कि मां पार्वती का ही स्वरूप होता है। उसी के पास साही तथा उसके बच्चों की आकृतियां भी उकेरी जाती हैं।
अहोई माता की पूजा में रोली, फूल, दीपक आदि सामग्री की जरूरत होती है। चांदी के दानों वाली माला, जल से भरा हुआ कलश (इस दिन करवा चौथ का कलश भी) रखा जाता है , दूध और भात, हलवा, आदि पूजा स्थल पर रखा जाता है। इसके बाद व्रती महिलायें हाथ में गेंहू के सात दाने और दक्षिणा लेकर व्रत कथा पढ़ती और सुनती हैं।
कथा के बाद माला को गले में पहना जाता है और गेंहू के दाने व दक्षिणा अपनी सास या आसपास की बुजुर्ग महिला को देकर उनका आशीर्वाद लिया जाता है। सायंकाल में तारों को अर्ध्य देकर व्रत खोला जाता है। दीपावली के दिन करवे के जल को पूरे घर में छिड़का जाता है और इसी दिन ही स्याहु की माला को पहना जाता है।