जीवन की सीख देते हैं देवी-देवताओं के वाहन
धर्म जीवन की सीख देते हैं देवी-देवताओं के वाहन
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। सनातन परंपरा के अनुसार सभी देवी-देवताओं का किसी न किसी रूप में चाहे वो पक्षी हो या फिर पशु को अपना वाहन बनाया है। प्रत्येक देवी-देवताओं के ये वाहन उनके गुण और आचरण के अनुरूप ही होते हैं। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि देवी-देवताओं के यह वाहन हमारे जीवन से जुड़ी कई बड़ी सीख या सबक देते हैं। जानते हैं देवी-देवदातों के पशु-पक्षी रूपी वाहनों के धार्मिक एवं आध्यात्मिक महत्व को।
देवी लक्ष्मी का वाहन उल्लू
मां लक्ष्मी का वाहन उल्लू है। उल्लू रात में विचारण करता है और यह क्रियाशिल प्रवृत्ति का पक्षी होता है जिसके कारण रात को यह हमेंशा भोजन की खोज में लगा रहता है। लक्ष्मी जी के इस वाहन से हमें अपने कार्य को निरंतर और पूरी लगन एवं निष्ठा से करने की शिक्षा मिलती है। माना जाता है कि जो भी व्यक्ति इस शिक्षा का पालन करता है, उसके यहां मां लक्ष्मी की कृपा सदैव बनी रहती है।
विद्या की देवी सरस्वती का वाहन हंस
विद्या और बुद्धि-विवेक की देवी मां सरस्वती को माना जाता है। उनका वाहन हंस है। हंस बहुत ही बुद्धिमान और निष्ठावान पक्षी होता है। हंस को प्रेम का प्रतीक माना जाता है, क्योंकि हंस जीवनपर्यंत हंसिनी के साथ ही रहता है। हंसिनी की मृत्यु होने पर भी वह दूसरे जीवनसाथी की तलाश नहीं करता है। मान्यता है कि हंस को किसी बर्तन में दूध और पानी को मिलाकर रख दिया जाए तो वह दूध को ग्रहण करता है और पानी को छोड़ देता है। हंस के इस कार्य से यह शिक्षा मिलती है कि हमेंशा दूसरों के अवगुण को छोड़कर सद्गण को ग्रहण करना चाहिए।
मां दुर्गा का वाहन है शेर
अपने अनन्य भक्तों पर हमेंशा कृपादृष्टि रखने वाली मां दुर्गा का वाहन शेर है। शेर की यह विशेषता होती है कि वह हमेंशा संयुक्त परिवार में रहना पसंद करता है। शेर बहुत ही शक्तिशाली प्राणी होता है। शेर की एक खस्यित यह भी है कि वह अपनी शक्ति का व्यर्थ उपयोग नहीं करता है। देवी दुर्गा के इस वाहन से हमें यह सीख मिलती है कि सुख-दुख में अपने परिवार के साथ ही मिलकर रहना चाहिए और अपनी शक्ति का सदुपयोग करना चाहिए न कि दुरुपयोग।
भगवान शंकर का वाहन बैल
भगवान शिवजी की सवारी नंदी हैं। बैल हमेंशा समर्पित भाव से अपने स्वामी के लिए कार्य करता है। विशेषकर बैल हमेंशा शांत प्रवृत्ति का होता है किंतु यह यह गुस्सा हो जाए तो इसे काबू करना बहुत ही मुश्किल होता है। बैल हमेशा शक्ति का सदुपयोग करते हुए सही रास्ते पर एवं शांत मन से मेहनत करने की शिक्षा देता है।
भगवान श्रीहरि विष्णु का वाहन है गरुड़
जगत के पालनहार भगवान श्रीहरि विष्णु का वाहन गरुण है। गरुण की विशेषता यह होती है कि वह ऊंचाई पर उड़ते हुए धरती के छोटे-छोटे जीव-जंतुओं पर दृष्टि बनाए रख सकता है। भगवान श्रीहरि के इस वाहन से हमें छोटी से छोटी वस्तुओं पर पैनी नजर बनाए रखते हुए हमेंशा जागरूक बने रहने का सबक मिलता है।
भगवान गणेश का मूषक
देवताओं में प्रथम पूज्नीय भगवान श्रीगणेश का वाहन मूषक यानी चूहा है। चूहे की प्रवृत्ति हमेंशा कुतरने की होती है। वह अक्सर अच्छी-बुरी सभी चीजों को कुतरकर नुकसान ही करता है। इसी तरह संसार में कुतर्क करने वाले लोगों का भी यही कार्य होता है। किंतु बुद्धि और सिद्धि के देवता श्रीगणेश ने चूहे को अपनी सवारी बनाकर कुतरने वाले जीव को नीचे दबा दिया है। इससे हमें यह शिक्षा मिलती है कि हमें बुद्धि का सदुपयोग करते हुए लोगों की बातों को एक तरफ करते हुए अपने लक्ष्य को साधना चाहिए।
सात अश्वों वाला भगवान सूर्य का वाहन रथ
सूर्य देवता सात घोड़ों की सवारी करते हैं। यह सभी सातों घोड़े शक्ति और स्फूर्ति के प्रतीक माने गये हैं। सूर्य देवता के यह सातों अश्व जीवन में हमेंशा कार्य करते हुए प्रगति पथ पर आगे बढ़ने की सीख देते हैं।