Mahavir Jayanti 2020: जानें भगवान महावीर को क्यों कहा गया जैन धर्म का संस्थापक

Mahavir Jayanti 2020: जानें भगवान महावीर को क्यों कहा गया जैन धर्म का संस्थापक

Bhaskar Hindi
Update: 2020-04-06 04:17 GMT
Mahavir Jayanti 2020: जानें भगवान महावीर को क्यों कहा गया जैन धर्म का संस्थापक

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। हर वर्ष चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी को महावीर जयंती मनाई जाती है। जो कि आज 06 अप्रैल दिन सोमवार को है। यह उत्सव जैन समुदाय का सबसे प्रमुख पर्व है। देशभर में इस पर्व को पूरे जैन मंदिरों में बड़े ही जोश और उत्साह के साथ मनाया जाता है। इस दिन भव्य जुलूस, शोभायात्राएं निकाली जाती हैं। ​हालांकि इस वर्ष कोरोनावायरस के चलते लॉकडाउन की स्थिति है। ऐसे में धर्मगुरू और राज्य के मुखियाओं ने आमजन से घरों में रहकर जयंती मनाने की अपील की है। 

आपको बता दें कि भगवान महावीर स्वामी, जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर थे जिनका जीवन ही उनका संदेश है। उनके सत्य, अहिंसा, के उपदेश एक खुली किताब की भांति है। बचपन में इन्हें वर्धमान के नाम से पुकारा जाता था। भगवान महावीर को वीर, वर्धमान, अतिवीर और सन्मति के नाम से भी जाना जाता है। आइए जानते हैं उनके बारे में खास बातें...

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इसलिए इन्हें कहा गया वर्धमान
महावीर स्वामी जैन धर्म के 24वें और आखिरी तीर्थंकार थे। जिन्होंने 540 ईस्वी पूर्व भारत में बिहार के एक राजसी परिवार में जन्म लिया था। यह राजा सिद्धार्थ और रानी त्रिशला के पुत्र थे। इनके जन्म के समय सभी लोग खुश और समृद्ध थे, इस वजह से इनका नाम वर्धमान रखा गया। 

युवावस्था में राज्य को छोड़ा  
माना जाता है कि, उनके जन्म के समय से ही इनकी माता को इनके बारे में अद्भुत सपने आने शुरु हो गए थे कि, ये सम्राट बनेंग या फिर तीर्थंकर। इनके जन्म के बाद इन्द्रदेव ने इन्हें स्वर्ग के दूध से तीर्थंकर के रुप में अनुष्ठान पूर्वक स्नान कराया था। एक राजपरिवार में जन्म लेने के बावजूद उन्होंने युवावस्था में कदम रखते ही संसार की मोह- माया, सुख-ऐश्वर्य और राज्य को छोड़ दिया। 

तप और साधना
भगवान महावीर ने अपने जीवन में तप और साधना से नए प्रतिमान स्थापति किए। उन्होंने जैन धर्म की खोज के साथ ही इसके प्रमुख सिद्धांतों को स्थापित किया। इन सिद्धांतों से व्यक्ति को आंतरिक शांति की प्राप्ति होती है। भगवान महावीर के वे पांच सिद्धांतों में अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह शामिल हैं।

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इसलिए कहा गया जैन धर्म का संस्थापक
स्वामी महावीर ने 30 वर्ष की उम्र में धार्मिक जागरुकता की खोज में घर त्याग दिया था और 12 साल 6 महीने के गहरे ध्यान से इन्हें ज्ञान प्राप्त करने में सफलता हासिल हुई थी। जिसके बाद इन्होंने पूरे भारत वर्ष में यात्रा करना शुरु कर दिया और लोगों को सत्य, असत्य, अहिंसा, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह की शिक्षा देते हुए 30 वर्षों तक लगातार यात्रा की। 

72 वर्ष की उम्र में इन्होंने निर्वाण को प्राप्त किया और जैन धर्म के महान तीर्थंकरों में से एक बन गए, जिसके कारण इन्हें जैन धर्म का संस्थापक माना जाता है। 

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