हिमाचल में स्थित है 51शक्तिपीठों में से एक विश्वप्रसिद्ध ज्वालादेवी मंदिर, मंदिर के चमत्कार के सामने अकबर ने भी झुकाया था सिर
हिमाचल प्रदेश हिमाचल में स्थित है 51शक्तिपीठों में से एक विश्वप्रसिद्ध ज्वालादेवी मंदिर, मंदिर के चमत्कार के सामने अकबर ने भी झुकाया था सिर
डिजिटल डेस्क, शिमला। विश्वप्रसिद्ध ज्वालादेवी मंदिर हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा में स्थित है। इस मंदिर की अपनी एक अलग विशेषता है इसी वजह से यहां पर दूर-दूर से श्रद्धालु दर्शन करने आते हैं। यहां पर मां ज्वाली देवी का मंदिर। इस मंदिर को जोता वाली मां और नगरकोट मंदिर के नाम से भी जाना जाता हैं। ज्वाला देवी का यह मंदिर सबसे अलग है, क्योंकि यहां पर अन्य मंदिरो की तरह मूर्ति पूजा न होकर धरती से निकलने वाली 9 ज्वालाओं की पूजा होती हैं । जिन 51 शक्ति पीठों का वर्णन पुराणों में किया गया है उनमें से एक में से एक पीठ ज्वाला माता का मंदिर भी हैं । यह मंदिर हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले से 30 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। नवरात्रि के दिनों यहां भक्तों की खूब भीड़ उमड़ती हैं, मंदिर में ज्वाला जलते रहने के पीछे क्या कारण है, इसका पता अभी तक साइंटिस्ट भी नहीं लगा पाए हैं ।
जानिए ज्वालामुखी देवी से जुड़ी प्रमुख बातें-
- देवी ज्वाला का मंदिर पांडवों द्वारा खोजा हुआ मंदिर है। धार्मिक ग्रन्थों के मुताबिक यहां माता सती की जीभ गिरी थी ।
- अंग्रजों के शासन काल के दौरान अंग्रेजों ने धरती से निकलने वाली ज्वाला का प्रयोग अपने निजी स्वार्थ के लिए करने का प्रयास किया लेकिन वह सफल नहीं हो पाए ।
- मुगल शासनकाल में भी इस ज्वाला को बुझाने का प्रयास अकबर ने किया था, परन्तु वह भी असफल रहा। जिसके बाद उसने स्वयं ही सवा मन (पचास किलो) सोने का छत्र देवी मां के दरबार में चढ़ाया लेकिन उसके द्वारा चढ़ाया गया छत्र को माता ने स्वीकार नहीं किया और वह गिर गया। जो आज भी इसी मंदिर परिसर पर रखा हुआ है।
- कई वैज्ञानिकों ने भी इस रहस्य को सुलझाने का प्रयास किया, परन्तु वह भी इसका पता नहीं लगा सके।
- यह सारी बातें इस ओर इशारा करती हैं, कि यह ज्वाला प्राकृतिक घटना न होकर चमत्कारिक घटना है। इस मंदिर में जमीन के भिन्न -भिन्न हिस्सों से 9 जगह से ज्वालाएं निकलती हैं। इन नौ ज्वालाएं को अलग - अलग नामों से जाना जाता है, जैसे महाकाली , अन्नपूर्णा , महालक्ष्मी , चंडी , हिंगलाज , विंध्यवासिनी , अंबिका , अंजीदेवी ।
- इस मंदिर का पहली बार निर्माण राजा भूमि चंद के द्वारा कराया गया था, लेकिन तब यह पूर्ण रूप से नहीं बन सका। इसलिए फिर से पंजाब के महाराजा रणजीत सिंह, और हिमाचल के राजा संसारचंद ने पुनः इसका पूरा निमार्ण कार्य करवाया। इसलिए सिखों और हिन्दुओं दोनों ही समुदायों की आस्था इस मंदिर से जुड़ी है।
आप कैसे पहुंच सकते है ज्वालामुखी मंदिर तक ?
वायु मार्ग से - ज्वालामुखी मंदिर पहुंच के लिए नजदीकी हवाई अड्डा 46 किमी. की दूरी पर है जो कांगड़ा जिले पर स्थित है इसे गगल हवाई अड्डा के नाम से जाना जाता है।
रेल मार्ग से - अगर आप ट्रेन से इस मंदिर तक पहुंचना चाहते है। तो पालमपुर रेल्वे स्टेशन तक आ सकते है। जहां से आपको मंदिर तक पहुंचने के लिए बस का सहारा लेना होगा।
रोड मार्ग के द्वारा - अगर आप रोड मार्ग से ज्वालादेवी के मंदिर आना चाहते है तो आप शिमला , पठानकोट , दिल्ली से सीधे ज्वालामुखी मंदिर पंहुच सकते हैं।