मध्यप्रदेश के देवास में स्थित है मां चामुंडा और मां तुलजा का मंदिर, यहां मां के दर्शन मात्र से पूरी होती है हर मनोकामना
नवरात्रि स्पेशल-2022 मध्यप्रदेश के देवास में स्थित है मां चामुंडा और मां तुलजा का मंदिर, यहां मां के दर्शन मात्र से पूरी होती है हर मनोकामना
- नवरात्रि में मां के दर्शन मात्र से पूरी होती है मनोकामना
डिजिटल डेस्क, भोपाल। मां की साधना का पर्व नवरात्रि का आज चौथा दिन है। इस दौरान भक्त मां को प्रसन्न करने के लिए उपवास रखते हैं और सुबह शाम पूजा-अर्चना करते हैं, तो वहीं कई लोग पैदल ही मां के दर पर पहुंच रहे हैं। आज हम आपको बताने जा रहे हैं, एक ऐसे प्रसिद्ध मंदिर के बारे में जिस को पौराणिक मान्यता के अनुसार शक्तिपीठ का दर्जा प्राप्त है। यह मंदिर मध्यप्रदेश के देवास जिले में स्थित है, माता का ये मंदिर पहाड़ी पर बना हुआ है, पहाड़ी पर दाे माताएं विराजमान है जिन्हें मां चामुडा और मां तुलजा के नाम जाना जाता है। मां के मंदिर में ऐसे तो साल भर ही भक्तों का आना-जाना लगा रहता है लेकिन नवरात्रि के मौके पर मंदिर में श्रद्धालुओं की भारी भीड़ होती है।
माना जाता है कि इस मंदिर में जो भी व्यक्ति सच्चे मन से कुछ मांगे तो माता रानी उसकी मनोकामना अवश्य पूर्ण करती हैं। देश के दूर- दराज वाले इलाकों से लोग मां के मंदिर पहुंचते है। पहाड़ी पर स्थित दोनों मंदिरों में विराजमान देवी मां को छोटी मां और बड़ी मां के नाम से जाना जाता है। चामुंडा माता को छोटी माता कहा जाता है, और तुलजा मां को बड़ी माता कहा जाता है। बताया जाता है कि दोनों माताओं के दर्शन के करना जरूरी है। साथ ही यहां विराजे भैरो बाबा के दर्शन करना भी अनिवार्य होता है तभी आपकी मनोकामना पूर्ण होगी।
माता के मंदिर को रक्त पीठ भी कहा जाता है
मान्यता है कि जैसे अन्य 52 जगहों पर माता सती के अंगों के गिरने के बाद उन्हें शक्तिपीठ माना जाता है। वैसे ही देवास की इस पहाड़ी पर भी माता का रूधिर यानी रक्त गिरा था, इसलिए यहां मां का प्राकट्य हुआ। बताया जाता है कि इंदौर के प्रचीन होलकर राजवंश की कुलदेवी तुलजा भवानी थीं। वहीं पवार राजवंश की कुलदेवी चामुंडा माता थीं। इसलिए इन दोनों ही मंदिरों में लोगों की प्राचीनकाल से ही आस्था बनी हुई है। इस मंदिर तक पहुंचने के लिए करीब 410 सीढ़िया चढ़नी पड़ती है। हालांकि, अब रोप-वे की मदद से भी आप मंदिर तक पहुंच सकते हैं।
राजा भर्तृहरि भी मां के दरबार में आ चुके हैं
नाथ संप्रदाय के साहित्य में ऐसा वर्णन मिलता है कि उज्जैन के राजा विक्रमादित्य के भाई भर्तृहरि को वैराग्य प्राप्त होने पर उन्होंने इसी पहाड़ी पर तप किया था। इसके अलावा यहां पर योगेंद्र शीलनाथ जी की धूनी भी है और महाकवि चंदबरदाई का भी पहाड़ी पर आने का उल्लेख मिलता है।
जानें मंदिर से जुड़ी पौराणिक कथा के बारे में
पौराणिक मान्यता के अनुसार, पहाड़ी पर विराजमान मां चामुंडा एवं मां तुलजा दोनों सगी बहनें थी। एक बार दोनों बहनों के बीच किसी बात को लेकर विवाद हो गया था। इस वजह से दोनों माताएं यह स्थान छोड़कर जाने लगीं। बड़ी मां पाताल की ओर और छोटी मां पहाड़ी की ओर जाने लगी थींं। तभी हनुमान जी और भैरो बाबा ने प्रार्थना कर उनको रूकने के लिए कहा। दोनों माताएं जिस स्थित में खड़ी थीं, वैसे ही पहाड़ी पर रूक गईं। बड़ी मां का आधा शरीर पाताल में समा चुका था, इसलिए वह उसी स्थित में रूक गईं। वहीं छोटी माता पहाड़ से उतर रही थीं, तो उनका मार्ग ठीक न होने की वजह से मां नाराज हो गईं। इस वजह से मां को वहां रूक गईं और आज भी दोनों माताएं इसी स्थित में विराजमान है।
ऐसे पहुंच सकते हैं मां के द्वार पर
हवाई मार्ग से- अगर आप हवाई मार्ग से मां के दरबार में पहुंचना चाहते तो आप इंदौर आ सकते है। यहां से मंदिर की दूरी 40 किलोमीटर है। यहां से आपको बस, टैक्सी वगैरह मंदिर तक जाने के लिए मिल जाएगी।
रेल मार्ग से- अगर आप ट्रैन से माता रानी के द्वार पर आना चाहते तो इंदौर या फिर देवास जंक्शन आ सकते हैं। अगर आप इंदौर रेल्वे स्टेशन आ जाते हैं ताे आपको 40 किलोमीटर सफर तय कर मां के मंदिर पहुंच सकते है। वहीं आप अगर सीधे देवास जंक्शन आ जाते तो करीब 2 किलोमीटर की दूरी तय कर मंदिर पहुंच सकते हैं।
सड़क मार्ग- अगर आप बाय रोड मां के मंदिर आना चाहते है, तो देवास शहर से ही पहाड़ी के नीचे से राष्ट्रीय राजमार्ग आगरा-मुबंई निकला हुआ है। और सड़क मार्ग से इंदौर लगा हुआ है, जो कि मात्र 40 किलोमीटर दूर है।
डिसक्लेमरः इस आलेख में दी गई जानकारी अलग अलग किताब और अध्ययन के आधार पर दी गई है। bhaskarhindi.com यह दावा नहीं करता कि ये जानकारी पूरी तरह सही है। पूरी और सही जानकारी के लिए संबंधित क्षेत्र के विशेषज्ञ (ज्योतिष/वास्तुशास्त्री/ डॉक्टर/ अन्य एक्सपर्ट) की सलाह जरूर लें।