स्कंद षष्ठी: इस व्रत को करने से खत्म होती है नकारात्मक ऊर्जा
स्कंद षष्ठी: इस व्रत को करने से खत्म होती है नकारात्मक ऊर्जा
डिजिटल डेस्क। स्कंद षष्ठी का दिन खास होता है, इस दिन व्रत रखने से संतान के कष्ट कम होने के साथ अपने आस- पास की नकारत्मक ऊर्जा समाप्त होती है। दक्षिण भारत में स्कंद षष्ठी का बहुत महत्व है। इस बार ये व्रत 07 जुलाई 2019 को रखा गया। दक्षिण भारत में लोग इस तिथि को एक उत्सव के रूप में बहुत ही श्रध्दा भाव से मनाते हैं। इस दिन भगवान शिव के पुत्रए कार्तिकेय की पूजा की जाती है।
कहते हैं इस दिन संसार में हो रहे कुकर्मों को समाप्त करने के लिए कार्तिकेय का जन्म हुआ था। स्कन्द, मुरुगन, सुब्रमण्यम यह सभी नाम भगवान कार्तिकेय के हैं। बताया जाता है कि स्कंद षष्ठी की उपासना से च्यवन ऋषि को आंखों की ज्योति प्राप्त हुई थी। इस दिन यह भी बताया गया है कि स्कंद षष्ठी की कृपा से प्रियव्रत के मृत शिशु के प्राण लौट आए थे।
महत्व
यह व्रत भगवान शिव और माता पार्वती के पुत्र स्कंद को समर्पित होने के कारण स्कंद षष्ठी के नाम से जाना जाता है। जैसे गणेश जी के लिए महीने की चतुर्थी के दिन पूजा- अर्चना की जाती है उसी प्रकार उनके बड़े भाई कार्तिकेय या स्कंद के लिए महीने की षष्ठी के लिए उपवास किया जाता है। उत्तर भारत में कार्तिकेय को गणेश का बड़ा भाई माना जाता है लेकिन दक्षिण भारत में कार्तिकेय गणेश जी के छोटे भाई माने जाते हैं। इसलिए हर महीने की षष्ठी को स्कंद षष्ठी मनाई जाती है। षष्ठी तिथि कार्तिकेय जी की होने के कारण इसे कौमारिकी भी कहा जाता है।
क्या करें, क्या ना करें
इस दिन दान आदि कार्य करने से विशेष लाभ मिलता है। स्कंद देव की स्थापना करके अखंड दीपक जलाए जाते हैं। कार्तिक भगवान को स्नान करवाकर, नए वस्त्र पहनाकर, पूजा की जाती है। इस दिन भगवान को भोग लगाया जाता है। स्कंद षष्ठी पूजन में तामसिक भोजन मांस, शराब, प्याज, लहसुन का त्याग करना चाहिए और ब्रह्मचर्य आवश्यक होता है। इस दिन भगवान कार्तिकेय पर दही में सिंदूर मिलाकर चढ़ाने से व्यवसाय पर आ रहे व्यावसायिक कष्ट समाप्त हो जाते हैं और आर्थिक स्थिति अच्छी होती है। इस दिन पूरे मन से भगवान कार्तिकेय का पूजन करने से जीवन के अनेक प्रकार के कष्ट दूर होते हैं।
तिथि से जुड़ी प्रसिद्ध कथा
राक्षस ताड़कासुर का अत्याचार हर जगह फैल गया था जिसके कारण सभी देवताओं को हार का सामना करना पड़ रहा था। एक दिन सभी देवता मिलकर ब्रह्म देव के पास पहुंचे और उनसे अपनी रक्षा के लिए प्रार्थना करने लगे। ब्रह्म देव ने उन्हें बताया की ताड़कासुर का वध भगवान शिव के पुत्र के अलावा कोई नहीं कर सकता लेकिन माता सती के अंत के बाद शिवजी साधना में लीन हो गए थे। सभी देवता भगवान शिव के पास गुहार लेकर गए और शिवजी ने उनकी बात सुनकर पार्वती से विवाह किया। शुभ मुहूर्त में विवाह होने के बाद कार्तिकेय का जन्म हुआ और उन्होंने ताड़कासुर का वध किया।