साल के आखिरी प्रदोष पर बन रहा सर्वार्थ सिद्धि योग, जानें पूजा की विधि और मुहूर्त

व्रत साल के आखिरी प्रदोष पर बन रहा सर्वार्थ सिद्धि योग, जानें पूजा की विधि और मुहूर्त

Bhaskar Hindi
Update: 2021-12-30 08:59 GMT
साल के आखिरी प्रदोष पर बन रहा सर्वार्थ सिद्धि योग, जानें पूजा की विधि और मुहूर्त

डिजिटल डेस्क, भोपाल। साल 2021 का आखिरी प्रदोष व्रत पौष माह के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि यानी कि 31 दिसंबर, शुक्रवार को है। शुक्र प्रदोष के दिन देवों के देव महादेव भगवान शिव की पूजा किए जाने का विधान है। हिन्दू धर्म के मुताबिक यह व्रत कलियुग में भगवान शिव की कृपा प्रदान करने वाला और अत्यधिक मंगलकारी माना गया है। माना जाता है कि, जो जातक सच्चे मन से प्रदोष व्रत करते हुए महादेव की पूजा- अर्चना करते हैं भोलेशंकर उस भक्त की मनोकामनाएं पूरी करते हैं और उस पर कृपा करते हैं।

ज्योतिषाचार्य के अनुसार, साल के आखिरी प्रदोष व्रत के दिन सर्वार्थ सिद्धि योग बन रहा है। त्योदशी तिथि 31 दिसंबर सुबह 10:39 बजे से लग रही है, यह 01 जनवरी 2022 को प्रात: 07:17 तक है। वहीं प्रदोष व्रत के दिन सर्वार्थ सिद्धि योग प्रात: 07 बजकर 14 मिनट से लग रहा है और यह रात 10 बजकर 04 मिनट तक रहेगा। आइए जानते हैं इस व्रत की पूजा विधि...

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करें ये काम
- पूजन की तैयारियां करके उत्तर पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठना चाहिए।
- इसके बाद भगवान शंकर की पूजा करना चाहिए। 
- पूजन में भगवान शिव के मंत्र ऊँ नम: शिवाय: का जाप करना चाहिए।
- रुद्राष्टक पढ़ते हुए शिव को जल चढ़ाना चाहिए। 
- ऊँ नमः शिवाय: मंत्र का एक माला यानी 108 बार जाप करते हुए हवन करना चाहिए।
- हवन में आहूति के लिए खीर का प्रयोग किया जाता है।
- हवन समाप्त होने के बाद भगवान शिव की आरती करें और शान्ति पाठ करें।
- अंत में दो ब्रह्माणों को भोजन या अपने सामर्थ्य अनुसार दान दक्षिणा दें।

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प्रदोष व्रत की विधि
- प्रदोष व्रत करने के लिए मनुष्य को त्रयोदशी के दिन प्रातरू सूर्य उदय से पूर्व उठना चाहिए।
- नित्यकर्मों से निवृत्त होकरए भगवान श्री भोलेनाथ का स्मरण करें। 
- पूरे दिन उपावस रखने के बाद सूर्यास्त से एक घंटा पहलेए स्नान आदि कर श्वेत वस्त्र धारण किए जाते हैं। 
- पूजा स्थल को गंगाजल या स्वच्छ जल से शुद्ध करने के बादए गाय के गोबर से लीपकरए मंडप तैयार किया जाता है।  
- अब इस मंडप में पांच रंगों का उपयोग करते हुए रंगोली बनाई जाती है। 
- प्रदोष व्रत कि आराधना करने के लिए कुशा के आसन का प्रयोग किया जाता है।

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