छठ पूजा 2024: कठिन साधना और भाईचारे का प्रतीक है महापर्व छठ, रामायण और महाभारत से भी जुड़ी है इसकी पौराणिक मान्यता
- 5 से 8 नवंबर तक मनाया जाएगा छठ का पर्व
- रामायण-महाभारत से जुड़ी है मान्यता
- नहाय-खाय से होती है पूजा की शुरुआत
डिजिटल डेस्क, भोपाल। महापर्व छठ जिसे षष्ठी पूजा भी कहा जाता है एक ऐसा लोकप्रिय पर्व है, जिसे बड़े ही विधि-विधान और भक्ति भाव के साथ मनाया जाता है। इसे साल में दो बार मनाया जाता है। पहली बार चैत्र शुक्ल पक्ष षष्ठी पर जिसे "चैती छठ" कहा जाता है और दूसरी बार कार्तिक शुक्ल पक्ष षष्ठी पर जिसे "कार्तिकी छठ" कहा जाता है। भारत में इस पर्व को विशेषकर बिहार, झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश और नेपाल के पहाड़ी क्षेत्रों में मनाया जाता है। छठ पूजा का मुख्य उद्देश्य सूर्य देव को धन्यवाद देना, उनसे सुख-समृद्धि और स्वस्थ जीवन की कामना करना है। ये पर्व न केवल धार्मिक महत्व रखता है, बल्कि प्रकृति और पर्यावरण के प्रति आभार प्रकट करने का एक सुंदर तरीका भी है।
इस पर्व में चार दिनों तक कठोर उपवास, नदी या तालाब के पवित्र जल में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य देने, और पूरी श्रद्धा से पूजा करने की परंपरा है। इसे माताएं अपनी संतान की लंबी आयु,अच्छे स्वास्थ्य और उनके अच्छे भविष्य के लिए पूजा-अर्चना करती हैं। ये एकमात्र ऐसा अवसर है जहां उगते सूरज के साथ डूबते सूरज की भी पूजा की जाती है। ऐसा माना जाता है कि अगर सच्चे मन और श्रद्धा भाव से इस पूजा को किया जाए तो उसकी सभी मनोंकामनाए छठी मां जरूर पूरी करती हैं। इस साल छठ पर्व 5 नवंबर से शुरू होकर 8 नवंबर को समाप्त होगा। तो इस मौके पर आइए हम इस पर्व के बारे में थोड़ा और विस्तार से समझते हैं।
छठ पर्व से जुड़ी पौराणिक मान्यता
रामायण से जुड़ी कथा
छठ पूजा की एक प्राचीन कथा भगवान श्रीराम और माता सीता से जुड़ी है। ऐसा कहा जाता है कि, जब भगवान राम और माता सीता लंका पर विजय के बाद अयोध्या लौटे, तो उन्होंने सूर्य देव की पूजा कर उपवास किया था। माता सीता ने कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी को सूर्य देव को अर्घ्य अर्पित किया। इसी दिन से छठ पूजा की परंपरा शुरू हुई, जो सूर्य देव और छठी मईया की आराधना के रूप में मनाई जाती है।
महाभारत से जुड़ी कथा
महाभारत काल में भी छठ पूजा का जिक्र मिलता है। ऐसा कहा जाता है कि, जब पांडव अपना सारा राजपाट जुए में हार गए थे, तो द्रौपदी ने अपनी पूरी श्रद्धा और आस्था के साथ सूर्य देव की उपासना की। इस उपासना से सूर्य देव ने उनकी प्रार्थना को स्वीकार कर पांडवों को अपना राज्य वापस पाने में सहायता की। ये भी माना जाता है कि द्रौपदी की आस्था और सूर्य देव की कृपा के कारण पांडवों को सभी कठिनाइयों से मुक्ति मिली।
क्या-क्या होता है इन चार दिनों में?
छठी मईया की पूजा से ये विश्वास जुड़ा हुआ है कि, इस व्रत को करने से सभी इच्छाएं पूरी होती हैं और जीवन में सुख-समृद्धि आती है। ये पर्व कठिन साधना और संयम का प्रतीक है, जो बताता है कि भक्ति और आत्मसंयम से हर कठिनाई को पार किया जा सकता है। माना जाता है कि चार दिनों तक चलने वाला तप और श्रद्धा का ये पर्व पारिवारिक सुख-समृद्धी और मन चाहा फल प्राप्ति के लिए किया जाता है।
पहला दिन: नहाय-खाय
छठ पूजा की शुरुआत "नहाय-खाय" से होती है। इस दिन व्रत करने वाले श्रद्धालु (व्रती) पवित्र नदियों या तालाबों में स्नान करके अपने को शुद्ध करते हैं। इसके बाद घर को अच्छे से साफ-सुथरा किया जाता है। व्रती शुद्धता को ध्यान में रखते हुए सात्विक भोजन करते हैं, जिसे "नहाय-खाय" कहा जाता है। इस दिन आमतौर पर लौकी की सब्जी, चने की दाल और चावल का भोजन किया जाता है। इन सभी को मिट्टी के चूल्हे पर और शुद्ध घी में पकाया जाता है। इसमें शुद्धता और सात्विकता का विशेष ध्यान रखा जाता है।
दूसरा दिन: खरना
छठ पूजा के दूसरे दिन को "खरना" कहा जाता है। इस दिन व्रती पूरे दिन निर्जला उपवास रखते हैं और शाम को भोजन करते हैं। भोजन में विशेष रूप से गुड़ से बनी खीर, रोटी और केले का प्रसाद बनाया जाता है। ये प्रसाद मिट्टी के चूल्हे पर पकाया जाता है, जिसे पूरी पवित्रता के साथ तैयार किया जाता है। उसके बाद शाम को व्रती सूर्यास्त के बाद भगवान सूर्य और छठी मईया को ये प्रसाद अर्पित करते हैं। पूजा के बाद वे इसे ग्रहण करते हैं और फिर से निर्जला उपवास रखते हैं, जो अगले 36 घंटे तक चलता है। खरना के समय आसपास के लोग भी इस प्रसाद को ग्रहण करने के लिए आते हैं। ये पर्व सामाजिक एकता का भी प्रतीक माना जाता है।
तीसरा दिन: संध्या अर्घ्य
छठ पूजा के तीसरे दिन व्रती "संध्या अर्घ्य" देने की तैयारी करते हैं। दिनभर उपवास रखते हुए वे शाम के समय नदी या तालाब के किनारे पहुंचते हैं और डूबते (अस्त) हुए सूर्य को अर्घ्य देते हैं। इस दौरान गन्ना, नारियल, ठेकुआ (गेहूं के आटे और गुड़ से बना विशेष प्रसाद) और फलों से भरी बांस की टोकरी सूर्य देवता को अर्पित की जाती है। महिलाएं छठी मईया के गीत गाती हैं जिससे पूरा वातावरण भक्तिमय हो जाता है। ये दृश्य देखने में बहुत भव्य और पवित्र होता है। भक्तगण छठी मईया से सुख-समृद्धि और परिवार की खुशहाली की कामना करते हैं।
चौथा दिन: उषा अर्घ्य
छठ पूजा के अंतिम दिन "उषा अर्घ्य" दिया जाता है। व्रती सूर्योदय से पहले नदी या तालाब के किनारे पहुंचकर उगते सूर्य को अर्घ्य देते हैं। सूर्योदय से पहले व्रती हाथों में दीपक और पूजा सामग्री लेकर जल में खड़े होते हैं। साथ ही, उगते हुए सूर्य को जल और दूध से अर्घ्य दे छठी मईया की पूजा भी की जाती है। अर्घ्य देने के बाद व्रत का पारण किया जाता है यानी उपवास तोड़ा जाता है। उसके बाद परिवार के सभी सदस्य व्रती के चरण स्पर्श कर आशीर्वाद लेते हैं और प्रसाद ग्रहण करते हैं। ये प्रसाद पूरे समाज में बांटा जाता है जो एकता और भाईचारे का संदेश देता है। कहा जाता है कि इस दिन की पूजा जीवन में नए सवेरे की उम्मीद, आशा और शक्ति को दर्शाती है।
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