पितृ पक्ष श्राद्ध: अपने सामर्थ्य अनुसार करें तर्पण, जानें आवश्यक सामग्री और विधि
पितृ पक्ष श्राद्ध: अपने सामर्थ्य अनुसार करें तर्पण, जानें आवश्यक सामग्री और विधि
डिजिटल डेस्क। पितृ पक्ष श्राद्ध की शुरुआत भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा यानी कि 13 सितंबर दिन शुक्रवार से होने जा रही है, जो कि 28 सितंबर दिन सोमवार तक है। ऐसी मान्यता है कि इन 16 दिन हमारे पितृ पितृलोक से पृथ्वीलोक पर आते हैं। इन दिनों में पितृों को पिण्ड दान तथा तिलांजलि कर उन्हें संतुष्ट करना चाहिए। श्राद्ध के सोलह दिनों में लोग अपने पितरों को जल देते हैं तथा उनकी मृत्युतिथि पर श्राद्ध करते हैं। पिता के लिए अष्टमी तो माता के लिए नवमी की तिथि श्राद्ध करने के लिए उपयुक्त मानी जाती है। तर्पण के लिए कौन सी सामग्री होती है आवश्यक और कैसे करें तर्पण आइए जानते हैं...
तर्पण के लिए सामग्री
श्राद्ध पक्ष में पितर अपने-अपने कुल में जाते हैं, तृप्त होते हैं और घर में उच्च कोटि की संतान आने का आशीर्वाद देते हैं, जो श्राद्ध नहीं करते उनके पितर अतृप्त रहते हैं। ऐसे में श्राद्ध में तर्पण करने के लिए तिल, जल, चावल, कुशा, गंगाजल आदि का इस्तेमाल जरूर करना चाहिए। वहीं केला, सफेद पुष्प, उड़द, गाय के दूध, घी, खीर, स्वांक के चावल, जौ, मूंग, गन्ना से किए गए श्राद्ध से पितर प्रसन्न होते हैं। श्राद्ध के दौरान तुलसी, आम और पीपल के पेड़ पर जल चढ़ाएं और सूर्यदेवता को सूर्योदय के समय अर्ध्य देना न भूलें।
ऐसे मिलेगा पितृों का सुख
श्राद्ध करने की क्षमता, शक्ति, रुपया पैसा नहीं हैं तो दिन में 11:24 से 12:20 से बीच के समय में गाय को चारा खिलाते हुए निवेदन करें मेरे पिता, दादा आदि आपको तृप्त करने में मैं असमर्थ हूँ, आप समर्थ हैं, मेरे पास धन- दौलत, विधि-सामग्री नहीं है, घर में कोई करने-कराने वाला नहीं है लेकिन आपके लिए मेरी श्रद्धा हैं आप मेरी श्रद्धा से तृप्त हों। यह क्रिया करने से जो पुरखे पितृलोक में हैं तो श्राद्ध करने से वहां उन्हें सुकून मिलेगा, देवलोक में हैं तो वहां उन्हें सुख मिलेगा या जहां भी जिस योनी में हैं उन्हें वहां सुख मिल जाएगा।
श्राद्ध में कौओं का महत्त्व
मान्यता है कि श्राद्ध ग्रहण करने के लिए हमारे पितर कौए का रूप धारण कर नियत तिथि पर दोपहर के समय हमारे घर आते हैं। यदि उन्हें श्राद्ध नहीं मिलता तो वह रुष्ट हो जाते हैं। इस कारण श्राद्ध का प्रथम अंश कौओं को दिया जाता है।
जिसका कोई पुत्र न हो, उसका श्राद्ध उसके दौहिक (पुत्री के पुत्र) कर सकते हैं। कोई भी न हो तो पत्नी ही अपने पति का बिना मंत्रोच्चारण के श्राद्ध कर सकती है।
अगर पंडित से श्राद्ध नहीं करा पाते तो सूर्य नारायण के आगे अपने बगल खुले करके (दोनों हाथ ऊपर करके) बोलें हे सूर्य नारायण देव मेरे पिता (नाम), अमुक (नाम) का बेटा, अमुक जाति (नाम), (अगर जाति, कुल, गोत्र नहीं याद तो ब्रह्म गोत्र बोल दें) को आप संतुष्ट एवं सुखी रखें। इस निमित में आपको अर्घ्य व भोग अर्पित करता हूं। प्रार्थना करके सूर्य भगवान को अर्घ्य दें और भोग लगाएं।
श्राद्ध पक्ष में 1 माला रोज द्वादश मंत्र 'ॐ नमो भगवते वासुदेवाय' की करनी चाहिए और उस माला का फल नित्य अपने पितृ को अर्पण करना चाहिए। उनसे मन ही मन प्रार्थना करें वो आपकी प्रार्थना स्वीकार कर आपको सर्व समृद्धि का आशीर्वाद देंगे।
- सोने-चांदी के पात्र में श्राद्ध की सामग्री या भोग खिलाने का सामर्थ्य नहीं है तो सोने-चांदी का मानसिक रूप से कल्पना करके भी कर सकते हैं, लोहे के बर्तन कभी न प्रयोग करें इससे बुद्धि का नाश होता है और पितृ पलायन कर जाते हैं। पूजा के समय गंध रहित धूप प्रयोग करें, बिल्व फल प्रयोग न करें और केवल घी का धुआं भी न करें।
- कुटुंब में बड़ा पुत्र श्राद्ध करे अगर पुत्र नहीं हैं तो पत्नी या कोई और कर सकता है, पत्नी नहीं है तो जमाई या बेटी का बेटा कर सकता है।
- सफेद पुष्प, गाय के गोबर से लीपा हुआ चोक उस पर गेहूं के आटे से बनाई हुई रंगोली सात्विक घर तथा दक्षिण दिशा नीची हो तो उपयुक्त मानी जाती है।
- श्राद्ध के समय भोजन की प्रशंसा ना करें और नाही निंदा करें मौन रहकर, सांकेतिक भाषा का उपयोग करें।
- श्राद्ध के दिन लोंग, इलायची या सुपारी न चबाएं। मंजन, मालिश, उपवास और स्त्री भोग भी न करें और यदि संभव हो तो औषध न लें। इस दिन किसी दूसरे का अन्न न खाएं।
- यदि श्राद्ध करने वाले का जन्म दिवस हो तो उस दिन वह श्राद्ध न करें। ब्राह्मण को एक दिन पहले न्योता दे दें ताकि वह संयमी रहे।
- श्राद्ध के दिन मृत आत्मा की शांति के लिए भगवदगीता के सातवें अध्याय का माहात्म्य पढ़कर फिर पूरे अध्याय का पाठ करना चाहिए एवं उसका फल मृत आत्मा को अर्पण करना चाहिए।
- श्राद्ध में एक विशेष मंत्र उच्चारण करने से, पितरों को संतुष्टि होती है और संतुष्ट पितर आप के कुल, कुनबा या खानदान को आशीर्वाद देते हैं।
ॐ सर्व पितृ देवताभ्यो नमः
ॐ पितृ नारायणाय नमः
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः