पितृ पक्ष श्राद्ध: अपने सामर्थ्य अनुसार करें तर्पण, जानें आवश्यक सामग्री और विधि

पितृ पक्ष श्राद्ध: अपने सामर्थ्य अनुसार करें तर्पण, जानें आवश्यक सामग्री और विधि

Bhaskar Hindi
Update: 2019-09-12 06:09 GMT
पितृ पक्ष श्राद्ध: अपने सामर्थ्य अनुसार करें तर्पण, जानें आवश्यक सामग्री और विधि

डिजिटल डेस्क। पितृ पक्ष श्राद्ध की शुरुआत भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा यानी कि 13 सितंबर दिन शुक्रवार से होने जा रही है, जो कि 28 सितंबर दिन सोमवार तक है। ऐसी मान्यता है कि इन 16 दिन हमारे पितृ पितृलोक से पृथ्वीलोक पर आते हैं। इन दिनों में पितृों को पिण्ड दान तथा तिलांजलि कर उन्हें संतुष्ट करना चाहिए। श्राद्ध के सोलह दिनों में लोग अपने पितरों को जल देते हैं तथा उनकी मृत्युतिथि पर श्राद्ध करते हैं। पिता के लिए अष्टमी तो माता के लिए नवमी की तिथि श्राद्ध करने के लिए उपयुक्त मानी जाती है। तर्पण के लिए कौन सी सामग्री होती है आवश्यक और कैसे करें तर्पण आइए जानते हैं...

तर्पण के लिए सामग्री
श्राद्ध पक्ष में पितर अपने-अपने कुल में जाते हैं, तृप्त होते हैं और घर में उच्च कोटि की संतान आने का आशीर्वाद देते हैं, जो श्राद्ध नहीं करते उनके पितर अतृप्त रहते हैं। ऐसे में श्राद्ध में तर्पण करने के लिए तिल, जल, चावल, कुशा, गंगाजल आदि का इस्तेमाल जरूर करना चाहिए। वहीं केला, सफेद पुष्प, उड़द, गाय के दूध,  घी, खीर, स्वांक के चावल, जौ, मूंग, गन्ना से किए गए श्राद्ध से पितर प्रसन्न होते हैं। श्राद्ध के दौरान तुलसी, आम और पीपल के पेड़ पर जल चढ़ाएं और सूर्यदेवता को सूर्योदय के समय अर्ध्य देना न भूलें।

ऐसे मिलेगा पितृों का सुख
श्राद्ध करने की क्षमता, शक्ति, रुपया पैसा नहीं हैं तो दिन में 11:24 से 12:20 से बीच के समय में गाय को चारा खिलाते हुए निवेदन करें मेरे पिता, दादा आदि आपको तृप्त करने में मैं असमर्थ हूँ, आप समर्थ हैं, मेरे पास धन- दौलत, विधि-सामग्री नहीं है, घर में कोई करने-कराने वाला नहीं है लेकिन आपके लिए मेरी श्रद्धा हैं आप मेरी श्रद्धा से तृप्त हों। यह क्रिया करने से जो पुरखे पितृलोक में हैं तो श्राद्ध करने से वहां उन्हें सुकून मिलेगा, देवलोक में हैं तो वहां उन्हें सुख मिलेगा या जहां भी जिस योनी में हैं उन्हें वहां सुख मिल जाएगा।

श्राद्ध में कौओं का महत्त्व 
मान्यता है कि श्राद्ध ग्रहण करने के लिए हमारे पितर कौए का रूप धारण कर नियत तिथि पर दोपहर के समय हमारे घर आते हैं। यदि उन्हें श्राद्ध नहीं मिलता तो वह रुष्ट हो जाते हैं। इस कारण श्राद्ध का प्रथम अंश कौओं को दिया जाता है।

 

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