शारदीय नवरात्रि का समापन: जानें हवन का शुभ मुहूर्त और जवारा पूजा
शारदीय नवरात्रि का समापन: जानें हवन का शुभ मुहूर्त और जवारा पूजा
डिजिटल डेस्क। दुर्गा माता की आराधना के लिए नवरात्रि के नौ दिन महत्वपूर्ण माने जाते हैं। वहीं पूरे नौ दिन मां की पूजा और आराधना के बाद दुर्गा पूजा उत्सव का समापन दुर्गा विर्सजन के साथ होता है। दुर्गा विसर्जन के बाद ही दशहरा का पर्व मनाया जाता है। दुर्गा विसर्जन का मुहूर्त प्रात:काल या अपराह्न काल में विजयादशमी तिथि लगने पर शुरू होता है।
ज्योतिषाचार्य के अनुसार आज सोमवार को नवमी तिथि 03:05 बजे तक है, नवमी तिथि के बाद से ही दशमी लग जाएगी। साथ ही इस दिन कन्या पूजन के साथ नवमी हवन और नवरात्रि पारणा किया जाएगा। इस दिन माता की पूजा में तिल और अनार का भोग जरूर लगाएं। नवमी के दिन हवन करना सबसे महत्वपूर्ण होता है। इसे चंडी होम भी कहते हैं।
नवमी हवन का शुभ मुहूर्त:
सुबह 06:22 से 12:37 तक
जवारों का विसर्जन
आपको बता दें कि नवमी तिथि को ही नवरात्रि के पहले दिन स्थापित किए गए जवारों का विधि-विधान से विसर्जन किया जाता है। जवारे विसर्जन के पूर्व दुर्गा माता तथा जवारों की विधि-विधान से पूजा की जाती है, उसके बाद जवारे का विसर्जन किया जाता है।
पूजा विधि इस प्रकार है
जवारे विसर्जन के पहले भगवती दुर्गा की पूजा गंध, चावल, फूल, आदि से करें और इस मंत्र से देवी की स्तुति आराधना करें-
मन्त्र
"रूपं देहि यशो देहि भाग्यं भगवति देहि मे।पुत्रान् देहि धनं देहि सर्वान् कामांश्च देहि मे।
महिषघ्नि महामाये चामुण्डे मुण्डमालिनी।आयुरारोग्यमैश्वर्यं देहि देवि नमोस्तु ते।।"
स्तुति करने के बाद हाथ में चावल और फूल लेकर जवारे का इस मंत्र के साथ विसर्जन करें-
"गच्छ गच्छ सुरश्रेष्ठे स्वस्थानं परमेश्वरि। पूजाराधनकाले च पुनरागमनाय च।।"
इस प्रकार विधिवत पूजा करने के बाद जवारे का विसर्जन कर दें लेकिन याद रहे जवारों को फेंके नहीं। जवारे को परिवार में बांटकर प्रसाद रूप में सेवन करना चाहिए। इससे नौ दिनों तक जवारों में व्याप्त शक्ति हमारे भीतर प्रवेश कर जाती है। जिस पात्र में भी जवारे बोए गए हों, उसे इन नौ दिनों में उपयोग की गई पूजन सामग्री के साथ श्रृद्धापूर्वक विसर्जन कर देना चाहिए।
माना जाता है कि जब सृष्टि का आरम्भ हुआ था तो पहली फसल जौ ही बोई गई थी, इसलिए इसे पूर्ण फसल कहा जाता है। यह हवन में देवी-देवताओं को चढ़ाई जाती है यही कारण है कि वसंत ऋतु की पहली फसल जौ ही होती है, जिसे हम देवी मां को अर्पित करते हैं।