शंकराचार्य जयंती: सारे वेद और उपनिषद का ज्ञान सिर्फ 2 वर्ष की आयु में किया था प्राप्त, जानें उनके जीवन की खास बातें

शंकराचार्य जयंती: सारे वेद और उपनिषद का ज्ञान सिर्फ 2 वर्ष की आयु में किया था प्राप्त, जानें उनके जीवन की खास बातें

Bhaskar Hindi
Update: 2020-04-25 11:04 GMT
शंकराचार्य जयंती: सारे वेद और उपनिषद का ज्ञान सिर्फ 2 वर्ष की आयु में किया था प्राप्त, जानें उनके जीवन की खास बातें

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। वैशाख शुक्ल की पंचमी को जगद्गुरु आदि शंकराचार्य के जन्मदिन को जयंती के रूप में मनाया जाता है। इस वर्ष 28 अप्रैल यानी कि आज शंकराचार्य जयंती मनाई जा रही है। आद्य शंकराचार्य को भगवान शिव अवतार के रूप में माना जाता है। 7 वर्ष की आयु में सन्यास लेने वाले शंकराचार्य ने मात्र 2 वर्ष की आयु में सारे वेदों, उपनिषद, रामायण, महाभारत को कंठस्थ कर लिया था।

शंकराचार्य केरल के रहने वाले थे, पर इनका कार्यक्षेत्र उत्तर भारत रहा। शंकराचार्य ऐसे सन्यासी थे जिन्होंने गृहस्थ जीवन त्याग ने के बाद भी अपनी मां का अंतिम संस्कार किया। उनकी जयंती पर आइए जानते हैं आदिगुरू के जीवन से जुड़ी खास बातें...

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जन्म के बाद दिखे थे ये संकेत
आदिगुरु शंकराचार्य का जन्‍म केरल के कालड़ी गांव में ब्राह्मण दंपत्ति शिवगुरु नामपुद्रि और विशिष्‍टा देवी के घर में हुआ था। उनकी शिशुअवस्था में ही उनके माता-पिता को यह संकेत दिखाई देने लगे थे कि यह बालक तेजस्वी है, सामान्य बालकों की तरह नहीं है। हालांकि शिशुकाल में ही उनके पिता का साया सर से उठ गया। ऐसा कहा जाता है कि, आदिगुरू शंकराचार्य ने मात्र 2 वर्ष की उम्र में ही वेद और उपनिषद का ज्ञान प्राप्त कर लिया था। 

बालक शंकर ने भी माता से आज्ञा लेकर वैराग्य का रास्ता अपनाया और सत्य की खोज में निकल गए। 7 वर्ष की उम्र में उन्होंने सन्यासी बनने का निश्चय कर लिया था।  इस आयु में उन्हें वेदों का संपूर्ण ज्ञान हो गया था। कई वर्षों बाद जन्में शंकराचार्य को उनकी मां ने न केवल शिक्षा दी बल्कि जगद्गुरु बनने का मार्ग भी प्रशस्त किया।

बारह वर्ष की आयु तक आते-आते वे शास्त्रों के ज्ञाता हो चुके थे। सोलह वर्ष की अवस्था में वे ब्रह्मसूत्र भाष्य सहित सौ से भी अधिक ग्रंथों की रचना कर चुके थे। इसी के साथ वे शिष्यों को भी शिक्षित करने लगे थे। इसी कारण उन्हें आदि गुरु शंकाराचार्य के रूप में भी प्रसिद्धि मिली। 

अद्वैत वेदांत के दर्शन
गुरु शंकराचार्य भारतीय गुरु और दार्शनिक थे, उनका जन्म केरल के कालपी नामक स्थान पर हुआ था। आदि गुरु शंकराचार्य ने अद्वैत वेदांत के दर्शन का विस्तार किया। उन्होंने उपनिषदों, भगवद गीता और ब्रह्मसूत्रों के प्राथमिक सिद्धांतों जैसे हिंदू धर्मग्रंथों की व्याख्या एवं पुनर्व्याख्या की।

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चार मठों की स्थापना
आदिगुरू ने हिंदू धर्म को पुनर्जीवित करने के लिए भारत के चारों कोनों में चार मठों की स्थापना की। जो आज भी हिंदू धर्म के सबसे पवित्र एवं प्रामाणिक संस्थान माने जाते हैं, जिनका नाम क्रमशः ज्योतिर्मठ, बद्रीनाथ, वेदान्त ज्ञानमठ अथवा श्रृंगेरी पीठ, शारदा मठ, द्वारिका, गोवर्धन मठ और जगन्नाथ धाम हैं।

माता से अटूट प्रेम
शंकराचार्य अपनी माता से बहुत प्रेम करते थे उनके इस प्रेम को देखकर एक नदी ने भी अपना रुख मोड़ लिया था। इतना ही नहीं शंकराचार्य ने एक संन्यासी होते हुए भी अपनी माता का अंतिम संस्कार करके अपने मातृ ऋृण को चुकाया। 

कहा जाता है ​कि शंकराचार्य ने अपनी माता को वचन दिया था कि वह अंतिम समया में उनके साथ ही रहेंगे। जब शंकराचार्य को उनकी मां के अंतिम समय का आभास हुआ, तब वह अपने गांव पहुंच गए। शंकराचार्य को देखकर उनकी मां ने अंतिम सांस ली। इस बीच जब उनकी माता का दाह संस्कार का समय आया तो सब ने शंकराचार्य का यह कहकर विरोध किया कि वह तो एक संन्यासी हैं। 

इस दौरान सभी के विरोध करने पर भी शंकराचार्य ने अपनी माता का अंतिम संस्कार किया। लेकिन किसी ने उनका साथ नहीं दिया। शंकराचार्य ने अपने घर के सामने ही अपनी मां की चिता सजाई और अंतिम क्रिया की। जिसके बाद से ही केरल के कालड़ी में घर के सामने चिता जलाने की परंपरा शुरु हो गई।

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