ऋषि पंचमी: श्रेष्ठ फलदायी है ये व्रत, जानें पूजा विधि और ​कथा

ऋषि पंचमी: श्रेष्ठ फलदायी है ये व्रत, जानें पूजा विधि और ​कथा

Bhaskar Hindi
Update: 2019-09-03 08:32 GMT
ऋषि पंचमी: श्रेष्ठ फलदायी है ये व्रत, जानें पूजा विधि और ​कथा

डिजिटल डेस्क। हिंदू धर्म में भादों माह त्यौहारों के लिए जाना जाता है, इस माह कृष्णजन्माष्टमी, हरतालिका तीज और गणेश चतुर्थी जैसे कई पर्व मनाए जाते हैं। इन्हीं में एक और महत्वूपर्ण पर्व है ऋषि पंचमी, जो कि भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि यानी कि आज 3 सिंतबर को मनाया जा रहा है। ऋषि पंचमी को भाई पंचमी के नाम से भी जाना जाता है। माहेश्वरी समाज में राखी इसी दिन बांधी जाती है और बहन भाई की दीर्घायु के लिए व्रत रखती है।

इसके अलावा महिलाएं इस दिन सप्त ऋषि का आशीर्वाद प्राप्त करने और सुख शांति एवं समृद्धि की कामना से यह व्रत रखती हैं। यह व्रत ऋषियों के प्रति श्रद्धा, समर्पण और सम्मान की भावना को प्रदर्शित करने का महत्वपूर्ण आधार बनता है। सप्त ऋषि की विधि विधान से पूजा की जाती है। ऋषि पंचमी व्रत की कथा सुनी और सुनाई जाती है। यह व्रत पापों का नाश करने वाला व श्रेष्ठ फलदायी माना जाता है। ऋषि पंचमी के इस व्रत को करने से रजस्वला दोष भी मिट जाता है। माहवारी समाप्त हो जाने पर ऋषि पंचमी के व्रत का उद्यापन किया जाता है।

रजस्वला दोष 
हिन्दू धर्म में किसी स्त्री के रजस्वला (माहवारी) होने पर रसोई में जाना, खाना बनाना, पानी भरना तथा धार्मिक कार्य में शामिल होना और इनसे सम्बंधित वस्तुओं को छूना वर्जित माना जाता है। यदि भूलवश इस अवस्था में इसका उल्लंघन होता है तो इससे रजस्वला दोष उत्पन्न हो जाता है। इस रजस्वला दोष को दूर करने के लिए ऋषि पंचमी का व्रत किया जाता है। कुछ स्त्रियां हरतालिका तीज से इस व्रत का पालन ऋषि पंचमी के दिन तक कराती हैं।

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