पौष पुत्रदा एकादशी: करें भगवान विष्णु की पूजा, मिलेगा ये फल
पौष पुत्रदा एकादशी: करें भगवान विष्णु की पूजा, मिलेगा ये फल
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। हिंदू धर्म में एकादशी तिथि का काफी महत्व माना जाता है। क्योंकि इस दिन सृष्टि के पालनकर्ता भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। वैसे तो हर माह में पड़ने वाली एकादशी तिथि का महत्व होता है लेकिन जब बात पौष पुत्रदा एकादशी की हो तो इसका महत्व और भी अधिक बढ़ जाता है। इस बार पौष पुत्रदा एकादशी व्रत 6 जनवरी यानी कि आज है। मान्यता है कि इस व्रत को करने से संतान की प्राप्ति होती है।
जिन व्यक्तियों को संतान होने में बाधाएं आती हैं या जिन्हें पुत्र प्राप्ति की कामना हो उन्हें पुत्रदा एकादशी का व्रत अवश्य करना चाहिए। ये व्रत बहुत ही शुभ फलदायक होता है, इसलिए संतान प्राप्ति के इच्छुक या संतान है तो उसे सुमार्ग पर लाने के लिए ये व्रत अवश्य रखना चाहिए, जिससे कि उन्हें मनोवांछित फल की प्राप्ति हो सके। आइए जानते हैं इस व्रत से जुड़ी खास बातें...
एकादशी तिथि प्रारम्भ : 6 जनवरी दोपहर 03:06 बजे से
एकादशी तिथि समाप्त : 7 जनवरी शाम 04:01 बजे पर
पारण (व्रत तोड़ने का) समय : 7 जनवरी दोपहर 01:37 से 03:34 बजे तक
पारण तिथि के दिन हरि वासर समाप्त होने का समय : 10:05 पर
क्या करें पुत्रदा एकादशी के दिन?
. जातक को एकादशी के एक दिन पहले ही अर्थात दशमी तिथि की रात्रि से ही व्रत के नियमों का पूर्ण रूप से पालन करना चाहिए।
. दशमी के दिन शाम के समय सूर्यास्त के बाद भोजन ग्रहण नहीं करना चाहिए और रात्रि में भगवान विष्णु का ध्यान करते हुए सोना चाहिए।
. प्रातः काल सूर्योदय से पहले उठकर नित्य क्रिया से निवृत्त होकर स्नान कर शुद्ध और स्वच्छ धुले हुए वस्त्र धारण कर श्रीहरि विष्णु का ध्यान करना चाहिए।
. शुद्धजल में गंगा जल डालकर स्नान करें और श्रीहरि विष्णु की फोटो के सामने दीप जलाकर व्रत का संकल्प लेने के बाद कलश की स्थापना करें।
. कलश को लाल वस्त्र से बांधकर उसकी पूजा करें।
. भगवान श्रीहरि विष्णु की प्रतिमा रखकर उसे स्नानादि से शुद्ध कर नए वस्त्र पहनाएं।
. धूप-दीप आदि से विधिवत भगवान श्रीहरि विष्णु की पूजा-अर्चना तथा आरती करें और नैवेद्य फलों का लगाकर प्रसाद वितरण करें।
. श्रीहरि विष्णु को अपने सामर्थ्य के अनुसार फल-फूल, नारियल, पान, सुपारी, लौंग, बेर, आंवला आदि अर्पित किए जाते हैं।
. एकादशी की रात में भगवान का भजन-कीर्तन करें।
. दिनभर निराहार रहकर संध्या समय में कथा आदि सुनने के पश्चात फलाहार करें।
. दूसरे दिन ब्राह्मणों या संत पुरुष को भोजन तथा दान-दक्षिणा अवश्य दें, उसके बाद भोजन करना चाहिए।
. इस दिन दीपदान करने का बहुत महत्व है। इस व्रत के पुण्य से मनुष्य तपस्वी, विद्वान, पुत्रवान और लक्ष्मीवान होता है।