पार्श्वनाथ जयंती 2019: जानें जैनधर्म के 23वें तीर्थकर के बारे में
पार्श्वनाथ जयंती 2019: जानें जैनधर्म के 23वें तीर्थकर के बारे में
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। जैनधर्म के 23वें तीर्थकर भगवान पार्श्वनाथ जिन्होंने अज्ञान-अंधकार-आडम्बर एवं क्रियाकाण्ड के मध्य में क्रांति का बीज बन कर पृथ्वी पर जन्म लिया था। इनका जन्म एवं तप कल्याणक दिवस पार्श्वनाथ जयंती के रूप में मनाया जाता है। जो कि इस बार 21 दिसंबर दिन शनिवार यानी कि आज है। आइए जानते हैं पार्श्वनाथ जयंती से जुड़ी कुछ खास बातें...
जैन धर्म पुराणों के अनुसार भगवान पार्श्वनाथ को तीर्थंकर बनने के लिए पूरे नौ जन्म लेने पड़े थे। पूर्व जन्म के संचित पुण्यों और दसवें जन्म के तप के फलतः ही वे 23वें तीर्थंकर बने। जैन धर्मावलम्बियों के अनुसार, भगवान पार्श्वनाथ के गणधरों की कुल संख्या 10 थी, जिनमें आर्यदत्त स्वामी इनके प्रथम गणधर थे और इनके प्रथम आर्य का नाम पुष्पचुड़ा था।
84 दिन तक कठोर तप करने के बाद चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को वाराणसी में ही 'घातकी वृक्ष' के नीचे इन्होनें 'कैवल्य ज्ञान' को प्राप्त किया। भगवान पार्श्वनाथ का निर्वाण पारसनाथ पहाड़ पर हुआ था। पार्श्वनाथ ने अहिंसा का दर्शन दिया। अहिंसा सबके जीने का अधिकार है, उन्होंने इसे स्वीकृत किया।
भगवान पार्श्वनाथ ने पौष माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को वाराणसी नगरी में दीक्षा की प्राप्ति की थी और दीक्षा प्राप्ति के दो दिन बाद खीर से पहला पारणा किया। भगवान पार्श्वनाथ ने केवल 30 साल उम्र में ही सांसारिक सभी तरह की मोहमाया और गृह का त्याग कर संन्यास धारण कर लिया था।
भगवान पार्श्वनाथ का जन्म अरिष्टनेमि के एक हजार वर्ष बाद इक्ष्वाकु वंश में पौष माह के कृष्ण पक्ष की दशमी तिथि को विशाखा नक्षत्र में वाराणसी नगर में हुआ था। इनके शरीर का रंग नीला और चिन्ह सर्प माना जाता है। भगवान पार्श्वनाथ बचपन से ही चिंतनशील और दयालु स्वभाव के थे। वे सभी विद्याओं में ये प्रवीण थे।