परशुराम जयंती 2020: धर्म की रक्षा के लिए भगवान विष्णु ने लिया था ये अवतार, जानें इनके बारे में
परशुराम जयंती 2020: धर्म की रक्षा के लिए भगवान विष्णु ने लिया था ये अवतार, जानें इनके बारे में
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। सनातन धर्म में वैशाख शुक्ल तृतीया तिथि को अक्षय तृतीया कहते हैं। इस दिन स्नान-दान व व्रत का विशेष महत्व होता है। तृतीया तिथि को भगवान विष्णु के छठे अवतार भगवान परशुराम की जयंती मनाई जाती है। पंचांग के अनुसार शुक्ल पक्ष का आरंभ हो चुका है और 25 अप्रैल से तृतीया तिथि का आरंभ होने चुका है। प्रदोष में तृतीया मिलने से कई स्थानों पर 25 अप्रैल को परशुराम जयंती मनाई जा रही है। वहीं उदया तिथि अनुसार अक्षय तृतीया का पर्व विधान 26 अप्रैल को मनाई जाएगी।
हालांकि इस बार लॉकडाउन होने की वजह से सार्वजनिक स्थलों पर होने वाले धार्मिक आयोजनों पर रोक लगी है। ऐसे में यह पर्व भी घरों में रहकर ही मनाया जाएगा। मत्स्य पुराण के अनुसार इस दिन जो कुछ दान किया जाता है वह अक्षय रहता है, वह कभी भी क्षय नहीं होता है। माना जाता है कि भगवान शिव के परमभक्त परशुराम न्याय के देवता हैं, जिन्होंने 21 बार इस धरती को क्षत्रिय विहीन किया था। भगवान परशुराम की जयंती पर आइए जानते हैं उनसे जुड़ी खास बातें...
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इसलिए रखा ये नाम
पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान परशुराम का जन्म भृगुश्रेष्ठ महर्षि जमदग्नि द्वारा सम्पन्न पुत्रेष्टि यज्ञ से हुआ। यज्ञ से प्रसन्न देवराज इन्द्र के वरदान स्वरूप पत्नी रेणुका के गर्भ से वैशाख शुक्ल तृतीया को एक बालक का जन्म हुआ था। वह भगवान विष्णु के अवतार माने जाते हैं। पितामह भृगु द्वारा सम्पन्न नामकरण संस्कार के अनन्तर राम, जमदग्नि का पुत्र होने के कारण जामदग्न्य और शिवजी द्वारा प्रदत्त परशु धारण करने के कारण वह परशुराम कहलाए।
इन पुराणों में उल्लेख
परशुरामजी का उल्लेख रामायण, महाभारत, भागवत पुराण और कल्कि पुराण इत्यादि अनेक ग्रन्थों में किया गया है। पुराणों के अनुसार भगवान राम के शौर्य, पराक्रम और धर्मनिष्ठा को देख कर भगवान परशुराम हिमालय चले गए थे। उन्होंने बुद्धिजीवियों और धर्मपुरुषों की रक्षा के लिए उठाया परशु त्याग दिया था।
पुराणों के अनुसार त्रेतायुग में भगवान राम ने जब शिव धनुष को तोड़ा तो परशुराम जी महेंद्र पर्वत पर तपस्या में लीन थे। लेकिन जैसे ही उन्हें धनुष टूटने का पता चला तो क्रोध में आ गए। वहीं जब उन्हें प्रभु श्रीराम के बारे में मालूम हुआ तो उन्होंने श्रीराम को प्रणाम किया। जिसके बाद श्रीराम ने परशुराम जी को अपना सुदर्शन चक्र भेंट किया और बोले द्वापर युग में जब उनका अवतार होगा तब उन्हें इसकी जरूरत होगी। इसके बाद जब भगवान श्रीकृष्ण ने द्वापर में अवतार लिया तब परशुरामजी ने धर्म की रक्षा के लिए भगवान श्रीकृष्ण को सुदर्शन चक्र वापिस कर दिया।
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परशुराम नाम का मतलब
परशुराम का नाम दो शब्दों से मिलकर बना है। परशु का मतलब है कुल्हाड़ी और राम, अर्थात कुल्हाड़ी के साथ राम। जैसे राम भगवान विष्णु के अवतार है, वैसे ही परशुराम भी भगवान विष्णु के अवतार हैं और उन्हीं की तरह ही शक्तिशाली भी हैं। परशुराम को अनेक नामों जैसे रामभद्र, भृगुपति, भृगुवंशी आदि से जाना जाता है। परशुराम महर्षि जमदग्नि और उनकी पत्नी रेणुका के पांचवे पुत्र थे।
संस्कृति का प्रचार-प्रसार
भगवान परशुराम धरती पर वैदिक संस्कृति का प्रचार-प्रसार करना चाहते थे। भारत के अधिकांश ग्राम उन्हीं के द्वारा बसाये गए। जिसमें कोंकण, गोवा एवं केरल का समावेश है। पौराणिक कथाओं के अनुसार उन्होंने तीर चला कर गुजरात से लेकर केरला तक समुद्र को पीछे धकेल देते हुए नई भूमि का निर्माण किया। इसी वजह से इन जगहों पर परशुमराम की पूजा की जाती है।