परशुराम द्वादशी: पूजा करते समय रखें इन बातों का ध्यान, जानें इस तिथि का महत्व
परशुराम द्वादशी: पूजा करते समय रखें इन बातों का ध्यान, जानें इस तिथि का महत्व
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। हिन्दू पंचांग के अनुसार वैशाख माह में शुक्ल पक्ष की द्वादशी को परशुराम द्वादशी मनाई जाती है। इस वर्ष 4 मई 2020 को परशुराम द्वादशी मनाई जा रही है। इस दिन पूरे देश में परशुराम जी की पूजा-अर्चना की जाती है। भगवान परशुराम जी शास्त्र एवम शस्त्र विद्या के पंडित थे तथा प्राणी मात्र का हित करना ही उनका परम लक्ष्य रहा है। इस व्रत को करने से धार्मिक और बुद्धिजीवी पुत्र की प्राप्ति होती है। वहीं उनकी उपासना से दुखियों, शोषितों तथा पीड़ितों को हर प्रकार से मुक्ति मिलती है और अंत में स्वर्ग की प्राप्ति होती है।
परशुराम द्वादशी को लेकर धार्मिक मान्यता है कि, इस दिन भगवान विष्णु ने माता धरती के आग्रह पर धरती पर फैले अधर्म का नाश करने के लिए परशुराम के रूप में अवतार लिया और क्रूर और अधर्मी क्षत्रिय राजा सहस्त्रबाहु के संहार के साथ ही 21 बार क्षत्रिय राजाओं का वध किया और बाद में उन्होंने महेंद्रगिरी पर्वत पर जाकर कई वर्षो तक तपस्या की। उन्हें स्वयं भगवान शिव ने शास्त्र शिक्षा दी थी और शास्त्रों (धर्म) का भी बहुत बड़ा ज्ञाता माना जाता है।
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पूजा विधि
- इस दिन व्रत करने के लिए, स्नान ध्यान से निवृत होकर व्रत का संकल्प लें।
- इसके बाद भगवान परशुराम की मूर्ति स्थापित करें।
- भगवान परशुराम की पूरी भक्ति भावना से पूजा-अर्चना करें।
- इस दौरान मन में लाभ, क्रोध, ईर्ष्या जैसे विकारों को नहीं लाना चाहिए।
- इस दिन व्रत करने वाले को निराहार रहना चाहिए।
- शाम को आरती अर्चना करने के बाद फलाहार ग्रहण करें।
- इसके बाद अगले दिन फिर से पूजा करने के उपरांत भोजन ग्रहण करें।
- यह व्रत द्वादशी की प्रातः से शुरु होता है और दूसरे दिन त्रयोदशी तक चलता है।
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ऐसे लिया था अवतार
हिन्दू धार्मिक पुराणों के अनुसार प्राचीन काल में महिष्मती नगर में हैयतवंशी क्षत्रिय राजा सहस्त्रबाहु का शासन था, जो काफी क्रूर प्रवृत्ति का राजा था। सहस्त्रबाहु के अत्याचारों से जनता काफी त्रस्त थी। राजा का अत्याचार जब हद से बढ़ गया तो पृथ्वी उसके पापों के बोझ से कराहने लगी। ऐसे में भक्तों ने भगवान विष्णु से उस राजा के अन्याय से रक्षा करने की विनती की। वहीं पृथ्वी ने भी इस अन्याय से रक्षा का आग्रह किया, जिसके फलस्वरूप भगवान विष्णु जी ने पृथ्वी को आश्वासन दिया कि वो जल्द ही उनकी रक्षा के लिए आएंगे।
पुराणों के अनुसार शुक्ल पक्ष की द्वादशी को भगवान विष्णु ने परशुराम अवतार लिया और सहस्त्रबाहु सहित इक्कीस बार क्षत्रियों वध किया। इस दिन पूरे देश में परशुराम की पूजा की जाती है। परशुराम जी के क्रोध को शांत करने के लिए महर्षि ऋचीक ने उनसे दान में पृथ्वी मांग ली जिसे देकर वे स्वंय महेंद्र पर्वत पर निवास करने चले गए।