मोक्षदा एकादशी आज, इस व्रत से मिटेंगे पाप
मोक्षदा एकादशी आज, इस व्रत से मिटेंगे पाप
डिजिटल डेस्क। मार्गशीर्ष (अगहन) मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को मोक्षदा एकादशी कहा जाता है। जो इस बार 8 दिसम्बर को है। मार्गशीर्ष (अगहन) मास की शुक्ल पक्ष की मोक्षदा एकादशी का जो व्रत करते हैं, उनके समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं। इसकी कथा को पढ़ने या सुनने से वायपेय यज्ञ करने के तुल्य फल मिलता है।
सात्विक भोजन
मोक्षदा एकादशी के दिन अन्य एकादशियों की तरह ही व्रत करने का विधान है। मोक्षदा एकादशी से एक दिन पहले यानि दशमी के दिन सात्विक भोजन करना चाहिए तथा सोने से पहले भगवान विष्णु का स्मरण करना चाहिए। मोक्षदा एकादशी के दिन सुबह स्नानादि से निवृत्त होकर पूरे घर में गंगाजल छिड़क कर घर को पवित्र करना चाहिए। इसके बाद भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिए। पूजा में तुलसी के पत्तों को अवश्य शामिल करना चाहिए।
भजन- कीर्तन
पूजा करने बाद विष्णु के अवतारों की कथा का पाठ करना चाहिए। मोक्षदा एकादशी की रात्रि को भगवान श्रीहरि का भजन- कीर्तन करना चाहिए। द्वादशी के दिन पुन: विष्णु की पूजा कर ब्राह्मणों को भोजन करा उन्हें दक्षिणा देकर विदा करना चाहिए। अंत: में परिवार के साथ बैठकर उपवास खोलना चाहिए। मोक्ष की प्राप्ति के इच्छुक जातकों के लिए हिन्दू धर्म में इस व्रत को सबसे अहम और पुण्यकारी माना जाता है। मान्यता है कि इस व्रत के पुण्य से मनुष्य के समस्त पाप धुल जाते हैं और उसे जीवन-मरण के चक्र से मुक्ति मिलती है।
एकदशी पराना
जो कोई भी इस दिन किसी योग्य व्यक्ति को भगवत गीता उपहार के स्वरुप में देता है, वह श्री कृष्ण द्वारा आशीर्वाद प्राप्त करता है। पराना का मतलब व्रत खोलना होता है। एकदशी पराना एकदशी व्रत के अगले दिन सूर्योदय के बाद किया जाता है। द्विद्वादशी तिथि के भीतर ही पराना करना आवश्यक है। द्विद्वादशी के भीतर पराना नहीं करना अपराध के समान है।
मोक्षदा एकादशी व्रत कथा
महाराज युधिष्ठिर ने कहा- हे भगवन! आप तीनों लोकों के स्वामी हैं, सबको सुख देने वाले और जगत के पति जगदीश हैं। मैं आपको अनंत कोटि नमस्कार करता हूँ। हे देवादि देव! आप सबके हितैषी हैं अत: मेरे संशय को दूर कर मुझे यह बताइए कि मार्गशीर्ष एकादशी क्या है और उसका क्या नाम है ?
उस दिन किस देवी-देवता का पूजन किया जाता है और उसकी क्या विधि है? कृपया मुझे बताएं। भक्तवत्सल भगवान श्रीकृष्ण कहने लगे कि धर्मराज युधिष्ठिर तुमने बड़ा ही अत्यंत उत्तम प्रश्न किया है। इस कथा को सुनने से तुम्हारा यश संसार में फैलेगा। मार्गशीर्ष (अगहन) मास शुक्ल पक्ष एकादशी अनेक पापों को नष्ट करने वाली होती है। इसका नाम मोक्षदा एकादशी है।
इस दिन दामोदर भगवान की धूप-दीप, नैवेद्य आदि से भक्तिपूर्वक पूजा करनी चाहिए। अब इस विषय में मैं एक पुराणों की कथा कहता हूं। गोकुल नाम के नगर में वैखानस नामक राजा राज्य करता था। उसके राज्य में चारों वेदों के ज्ञाता ब्राह्मण रहते थे। वह राजा अपनी प्रजा का पुत्रवत पालन करता था। एक बार रात्रि में राजा ने एक स्वप्न देखा कि उसके पिता नरक में हैं। तब उसे बड़ा ही आश्चर्य हुआ।
प्रात: काल ज्ञानी ब्राह्मणों के पास गया और अपना स्वप्न सुनाया उसने कहा- मैंने अपने पिता को नरक में कष्ट उठाते देखा है। उन्होंने मुझसे कहा कि हे पुत्र मैं नरक में पड़ा हूं। यहां से तुम मुझे मुक्त कराओ। जब से मैंने उनके वचन सुने हैं तब से मैं बहुत बेचैन हूं। चित्त में बड़ी ही अशांति हो रही है। मुझे इस राज्य, धन, पुत्र, स्त्री, हाथी, घोड़े आदि में कुछ भी सुख का अनुभव नहीं होता। कृपया कर बताएं क्या करूं ?
राजा ने कहा- हे ब्राह्मण देवताओ! इस दु:ख के कारण मेरी सारी देह जल रही है। अब आप कृपा करके कोई तप, दान, व्रत आदि ऐसा उपाय या युक्ति बताइए जिससे मेरे पिता को मुक्ति प्राप्त हो जाए। उस पुत्र का जीवन व्यर्थ है जो अपने माता-पिता का उद्धार न कर सके। एक उत्तम पुत्र जो अपने माता-पिता तथा पूर्वजों का उद्धार करता है, वह हजार मुर्ख पुत्रों से अच्छा है। जैसे एक चंद्रमा सारे जगत में प्रकाश कर देता है, किन्तु असंख्य तारे नहीं कर सकते। ब्राह्मणों ने कहा- हे राजन! यहां पास ही भूत, भविष्य, वर्तमान के ज्ञाता पर्वत ऋषि का आश्रम है। आपकी समस्या का हल वे जरूर करेंगे।
ऐसा सुनकर राजा मुनि के आश्रम पर गया। उस आश्रम में अनेक शांत चित्त योगी और मुनि तपस्या कर रहे थे। वहीं पर्वत मुनि बैठे थे। राजा ने मुनि को साष्टांग दंडवत प्रणाम किया। मुनि ने राजा से सांगोपांग कुशलता पूछी। राजा ने कहा कि महाराज आपकी कृपा से मेरे राज्य में सब कुशल हैं, लेकिन अकस्मात मेरे चित्त में अत्यंत अशांति होने लगी है। ऐसा सुनकर पर्वत मुनि ने आँखें बंद की और भूतकाल विचारने लगे। फिर बोले हे राजन! मैंने योग के बल से तुम्हारे पिता के कुकर्मों को जान लिया है। उन्होंने पूर्व जन्म में कामातुर होकर एक पत्नी को रति दी किंतु सौत के कहने पर दूसरे पत्नी को ऋतुदान मांगने पर भी नहीं दिया। उसीजि पापकर्म के कारण तुम्हारे पिता को नर्क में जाना पड़ा।
तब राजा ने कहा इसका कोई उपाय बताइए। मुनि बोले- हे राजन! आप मार्गशीर्ष एकादशी का उपवास करें और उस उपवास के पुण्य को अपने पिता को संकल्प कर दें। इसके प्रभाव से आपके पिता को अवश्य नर्क से मुक्ति होगी। मुनि के ये वचन सुनकर राजा महल में आया और मुनि के कहने अनुसार कुटुम्ब सहित मोक्षदा एकादशी का व्रत किया। इसके उपवास का पुण्य उसने पिता को अर्पण कर दिया। इसके प्रभाव से उसके पिता को मुक्ति मिल गई और स्वर्ग में जाते हुए वे पुत्र से कहने लगे- हे पुत्र तेरा कल्याण हो। यह कहकर स्वर्ग चले गए।
मार्गशीर्ष मास की शुक्ल पक्ष की मोक्षदा एकादशी का जो व्रत करते हैं, उनके समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं। इस व्रत से बढ़कर मोक्ष देने वाला और कोई व्रत नहीं है। इस कथा को पढ़ने या सुनने से वायपेय यज्ञ का फल मिलता है। यह व्रत मोक्ष देने वाला तथा चिंतामणि के समान सब कामनाएं पूर्ण करने वाला है।