व्रत: मंगल प्रदोष व्रत में संतानहीन दंपत्ती करें ये काम, मिलेगा शुभ फल

व्रत: मंगल प्रदोष व्रत में संतानहीन दंपत्ती करें ये काम, मिलेगा शुभ फल

Bhaskar Hindi
Update: 2020-09-28 06:08 GMT
व्रत: मंगल प्रदोष व्रत में संतानहीन दंपत्ती करें ये काम, मिलेगा शुभ फल

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। हिन्दू धर्म में प्रदोष व्रत बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है। हिन्दू कैलेंडर के अनुसार प्रदोष व्रत त्रयोदशी के दिन रखा जाता है। इस दिन भगवान शिव एवं माता पार्वती की पूजा की जाती है। इस बार यह तिथि 29 सितंबर, मंगलवार को है। प्रत्येक महीने में दो प्रदोष व्रत होते हैं और दिन के हिसाब से इसे जाना जाता है। चूंकि कल मंगलवार है इसलिए इस व्रत को मंगल प्रदोष व्रत कहा जाता है। इस दिन व्रत रखने से भक्तों के अन्दर सकारात्मक विचार आते हैं और वह अपने जीवन में सफलता प्राप्त करते हैं।

माना जाता है कि, संतानहीन दंपत्तियों के लिए इस व्रत पर घर में मिष्ठान या फल इत्यादि गाय को खिलाने से शीघ्र शुभ फलादी की प्राप्ति होती है। संतान की कामना हेतु प्रदोष व्रत करने का विधान हैं, एवं संतान बाधा में प्रदोष व्रत सबसे उत्तम मना गया है।

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करें ये उपाय
संतान की कामना हेतु प्रदोष व्रत के दिन पति-पत्नी दोनों प्रातः स्नान इत्यादि नित्य कर्म से निवृत होकर शिव, पार्वती और गणेश जी की एक साथ में आराधना कर किसी भी शिव मंदिर में जाकर शिवलिंग पर जलाभिषेक, पीपल की जड़ में जल चढ़ाकर सारे दिन निर्जल रहने का विधान हैं। प्रदोष काल में स्नान करके मौन रहना चाहिए, क्योंकि शिवकर्म सदैव मौन रहकर ही पूर्णता को प्राप्त करता है। इसमें भगवान सदाशिव का पंचामृतों से संध्या के समय अभिषेक किया जाता है।

ज्योतिष की दृष्टि से जो व्यक्ति चंद्रमा के कारण पीड़ित हो उसे वर्षभर उपवास रखना, लोहा, तिल, काली उड़द, शकरकंद, मूली, कंबल, जूता और कोयला आदि दान करने से शनि का प्रकोप भी शांत हो जाता है, जिससे व्यक्ति के रोग, व्याधि, दरिद्रता, घर की शांति, नौकरी या व्यापार में परेशानी आदि का स्वतः निवारण हो जाएगा।

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प्रदोष व्रत की विधि
- प्रदोष व्रत करने के लिए मनुष्य को त्रयोदशी के दिन प्रात: सूर्य उदय से पूर्व उठना चाहिए।
- नित्यकर्मों से निवृत्त होकर, भगवान श्री भोलेनाथ का स्मरण करें। 
- पूरे दिन उपावस रखने के बाद सूर्यास्त से एक घंटा पहले, स्नान आदि कर श्वेत वस्त्र धारण करें।
- पूजा स्थल को गंगाजल या स्वच्छ जल से शुद्ध करने के बाद, गाय के गोबर से लीपकर, मंडप तैयार करें।
- अब इस मंडप में पांच रंगों का उपयोग करते हुए रंगोली बनाएं।
- प्रदोष व्रत की आराधना करने के लिए कुशा के आसन का प्रयोग करें।
- पूजन की तैयारियां करके उत्तर-पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठें।
- अब भगवान शंकर की पूजा करें, पूजन में भगवान शिव के मंत्र "ऊँ नम: शिवाय" का जाप या रुद्राष्टक पड़ते हुए शिव को जल चढ़ाएं।
- ऊँ नमःशिवाय" मंत्र का एक माला यानी 108 बार जाप करते हुए हवन करें।
- हवन में आहूति के लिए खीर का प्रयोग करें।
- हवन समाप्त होने के बाद भगवान भोलेनाथ की आरती करें और शान्ति पाठ करें। 
- अंत में दो ब्रह्माणों को भोजन या अपने सामर्थ्य अनुसार दान दक्षिणा देकर आशीर्वाद प्राप्त करें।

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