भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी लीलाओं से दुनिया को दिया संदेश,जिनका अनुसरण कर आप भी बदल सकते हैं अपना जीवन
जन्माष्टमी विशेष भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी लीलाओं से दुनिया को दिया संदेश,जिनका अनुसरण कर आप भी बदल सकते हैं अपना जीवन
डिजिटल डेस्क भोपाल, राजा वर्मा। दुनियाभर में जिनकों लीलाधर के नाम से जाना जाता है आज ही के दिन उनका जन्म हुआ था। भगवान भी कृष्ण का जन्म भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष में अष्टमी तिथि, रोहिणी नक्षत्र के दिन रात्री के12 बजे हुआ था । श्री कृष्ण का जन्मदिन जन्माष्टमी के नाम से भारत, नेपाल, अमेरिका सहित विश्वभर में मनाया जाता है। कृष्ण का जन्म मथुरा के कारागार में हुआ था। वे माता देवकी और पिता वसुदेव की 8 वीं संतान थे।
भगवान श्री कृष्ण ने अपने जीवन काल में कई लीलाएं की इसलिए उन्हें लीलाधर के नाम से जानते हैं। हालाकि भगवान श्री कृष्ण को कन्हैया, श्याम, गोपाल, केशव, द्वारकेश या द्वारकाधीश आदि नामों से भी जाना जाता है। श्री कृष्ण द्वारा द्वापरयुग में लीलाएं की गई और जो संदेश दिए गए वह आज भी प्रासंगिक हैं। भगवद्गीता में श्री कृष्ण और अर्जुन का संवाद आज भी पूरे विश्व में लोकप्रिय है। आइए जानते है उनके जीवन से मिले कुछ संदेश के बारे में जो आज भी हम सभी का मार्ग दर्शन करते हैं।
धैर्यवान बनने का संदेश
भगवान श्रीकृष्ण ने दुनिया के सामने अपने जीवन काल में कई संदेश दिए जिसमें प्रमुख संदेश था धैर्यवान होने का। जब युधिष्ठिर को युवराज घोषित किया जाना था तब राजसूय यज्ञ कराया गया। इस यज्ञ में रिश्तेदारों और प्रतापी राजाओं को भी बुलाया गया था। यहीं पर शिशुपाल का सामना भगवान श्री कृष्ण से होता है। युदिष्ठिर भागवान श्री कृष्ण का विषेश रूप से आदर सत्कार करते है। यह बात शिशुपाल को रास नहीं आती है और सभी अतिथियों के सामने खड़े होकर इसका विरोध करने लगता है और कहता है कि एक मामूली से ग्वाले को इतना सम्मान क्यों दिया जा रहा हैं। जिसे देखकर मौजूद अतिथि स्तब्ध हो जाते हैं। लेकिन भगवान श्री कृष्ण धैर्यता पूर्वक शांत मन से पूरे आयोजन को देखते हैं व शिशुपाल के द्वारा दी जाने वाली गालियों को सुन रहे होते हैं। भगवान श्री कृष्ण 100 गालियां सुनने के बाद शिशुपाल द्वारा 101 वां अपशब्द बोले जाने के बाद अपने सुदर्शन चक्र से शिशुपाल का वध कर देते हैं। हालांकि पुराणों में कहा गया है कि श्री कृष्ण अपनी बुआ को दिए हुए वचन से बंधे हुए थे इसलिए शिशुपाल का वध करने में इतने धैर्यवान बनें रहे।
इंसान कर्म से बनता है महान
भगवान श्री कृष्ण का जीवन बड़ा ही अतार-चढ़ाव भरा रहा है। उनका जन्म जेल में हुआ,महलों में बचपन बीता फिर जंगल से विदा हुए। उन्होंने अपने जीवन में कई ऐसे उदाहरणों से यह समझाने का प्रयास किया कि व्यकित जन्म से नहीं बल्कि कर्म से महान बनता है।
दोस्ती की मिशाल है श्री कृष्ण और सुदामा की जोड़ी
कृष्ण सुदामा और सुदामा की दोस्ती एक मिसाल है। जब कृष्ण बालपन में ऋषि संदीपन के यहां शिक्षा ग्रहण कर रहे थे तो उनकी मित्रता सुदामा से हुई थी। कृष्ण एक राजपरिवार में और सुदामा ब्राह्मण परिवार में पैदा हुए थे। लेकिन उनकी मित्रता लोगों में समानता का भाव जगाने का काम करती है। क्योंकि द्वारकाधीश भगवान श्रीकृष्ण को जब पता चलता है कि उनके बचपन का मित्र सुदामा उनसे मिलने आया है तो वह स्वंय बिना देर किए नंगे पांव ही सुदामा से मिलने के लिए दौड पड़ते हैं। वहां पर मौजूद लोग यह देखकर हैरान रह जाते हैं कि एक राजा और गरीब साधू की दोस्ती ऐसी भी होती है।
कहते है न एक सच्चा दोस्त बिना कुछ कहे अपने दोस्त की पीड़ा को समझ लेता है। ऐसा ही किया भगवान श्रीकृष्ण ने सुदामा के बगैर मांगे ही उन्हें वो सबकुछ दे दिया, जिसकी सुदामा को अभिलाषा थी। कहा जाता है कि कृष्ण ने सुदामा को अपने से भी ज्यादा धनवान बना दिया था। दोनों की मित्रता का गुणगान आज भी पूरी दुनिया करती है।
गीता संदेश
महाभारत काल में पांडवों एवं कौरवों के बीच युद्ध के दौरान भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गीता का संदेश दिया था जो आज के समय में भी प्रासंगिक है। श्रीकृष्ण ने अर्जुन को रिश्तों के मायाजाल से बाहर निकलकर और युद्ध करके अपने कर्तव्यों का पालन करने के लिए अनमोल वचनों से प्रोत्साहित किया था जिसे गीता का संदेश कहा जाता है।
परिवर्तन
भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी लीलाओं के माध्यम से हमें बताने का प्रयास किया है कि परिवर्तन ही संसार का नियम है, इस संसार में कुछ भी स्थिर नहीं है। आपका खराब या अच्छा समय स्थिर नहीं रहता है। इसलिए चिंतामुक्त होकर जीवन का आनंद लें।
वर्तमान में जिएं
श्रीकृष्ण के दिए गए गीता संदेश में कहा गया है कि जो होना है वह होकर रहेगा, उसे दुनिया की कोई भी ताकत रोक नहीं सकती। इसलिए भविष्य की चिंता ना करें और वर्तमान में जिएं।
कर्मों का फल मिलता है
महाभारत में स्पष्ठ रूप से भगवान केशव ने संदेश दिया है कि हर व्यक्ति को अपने कर्मों का फल यहीं पर भुगतना पड़ता है। इसलिए अपने अच्छे और बुरे कर्मों का हिसाब रखें और सोच विचारकर ही कोई कर्म करें।ऐसा कर्म न करें जिससे आपके पास बाद में पछतावा करने अलावा कुछ और न बचे।