आज भी पृथ्वी पर धड़कता है भगवान कृष्ण का दिल! सुनकर हैरान हो जाएंगे ये हजारों साल पुराना रहस्य

भगवान कृष्ण का दिल आज भी पृथ्वी पर धड़कता है भगवान कृष्ण का दिल! सुनकर हैरान हो जाएंगे ये हजारों साल पुराना रहस्य

Bhaskar Hindi
Update: 2021-08-30 12:39 GMT
आज भी पृथ्वी पर धड़कता है भगवान कृष्ण का दिल! सुनकर हैरान हो जाएंगे ये हजारों साल पुराना रहस्य

डिजिटल डेस्क, द्वारका। भारत में लोगों का भगवान पर अटूट विश्वास है। ऐसे में एक रहस्य सामने आया है, कि धरती पर आज भी भगवान श्री कृष्ण का दिल धड़क रहा है। आप सब को पता ही होगा कि महाभारत युद्ध समाप्त होने के बाद कौरवों का अंत तो हुआ था साथ ही भगवान श्री कृष्ण का अंत भी प्रारंभ हुआ था। श्रीमद् भगवद गीता के अनुसार जब महाभारत युद्ध में धृतराष्ट्र और गांधारी के सौ पुत्रों की मृत्यु हो गई थी जिसके बाद गांधारी ने भगवान श्री कृष्ण को श्राप दिया था अब तुम्हारा भी विनाश होगा। 


महाभारत युद्ध के बाद जब एक दिन भगवान वन में एक पेड़ के नीचे योग समाधि में लीन थे, तब जरा नामक शिकारी भगवान के पैर को हिरण समझ उन पर तीर चला देता है। जिसके बाद शिकारी भगवान से अपनी गलती के लिए क्षमा मांगने लगता है। तब भगवान ने उन्हें समझाया कि इसमें उनका कोई दोष नहीं है उनकी मृत्यु तो पहले से ही तय थी। 

 साथ ही भगवान ने उन्हें त्रेता युग की बात बताई की मैं त्रेता युग में राम अवतार में जब मृत्यु लोक आया था और तब तुम सुग्रीव के बड़े भाई बाली थे और मैंने तुम्हारा छिपकर वध किया था। यह मेरे पिछले जन्म के कर्म का फल है जो मुझे इस जन्म में मिला है। इतना कह कर भगवान श्री कृष्ण अपने शरीर का त्याग कर दिया था।  

इसके बाद जब अर्जुन द्वारका आए तब कृष्ण और बलराम दोनों की मृत्यु हो चुकी थी। जिसके बाद अर्जुन ने दोनों भाईयों का अंतिम संस्कार किया। कहा जाता है कि श्री कृष्ण और बलराम दोनों का शरीर जलकर राख हो गई थी लेकिन श्री कृष्ण का हृदय राख नहीं हुआ था। कुछ समय बाद समस्त द्वारका नगरी समुद्र में समा गई थी। जिसके अवशेष आज भी समुद्र में मौजुद हैं। भगवान का हृदय लोहे के मुलायम पिंड में परिवर्तित हो गया था। 

अवंतिकापुरी के राजा इंद्रद्युम्न भगवान विष्णु के बहुत बड़े भक्त थे और उनके दर्शन के अभिलाषी थे, एक रात उन्हें भगवान नारायण का सपना आया कि भगवान उन्हें नीले माधव के रूप में दर्शन देंगे। जिसके बाद राजा भगवान नीले माधव के खोज में निकल गए। राजा को बहुत दिनों की खोज के बाद नीले माधव मिले तब उन्हें अपने साथ लाकर जगन्नाथ मंदिर में उनकी स्थापना कर दिया।

एक बार नदी में स्नान करते समय  इंद्रद्युम्न को पानी में लोहे का पिंड तैरता हुआ दिखा जिसे देख राजा आश्चर्य में पड़ गए और उस पिंड़ को अपने हाथ में उठा लिया । पिंड के स्पर्श करने के बाद राजा के कान में भगवान विष्णु की अवाज सुनाई दी भगवान ने राजा से कहा यह मेरा हृदय है जो इस लोहे के पिंड के रूप में धरती में हमेशा धड़कता रहेगा। 

राजा ने उस पिंड को भगवान जगन्नाथ के मंदिर में स्थापित कर दिया और सभी को सावधान करते हुए, उस पिंड को छूने और देखने के लिए सख्त मना किया। कहा जाता है कि आज तक राजा इंद्रद्युम्न के अलावा भगवान श्री कृष्ण के ह्रदय को किसी ने भी न देखा है और न स्पर्स किया है। इसलिए जब भी नवकलेवर के अवसर पर भगवान की मूर्ति को बदला जाता है तब मूर्ति बदलने वाले पंडित के आंखों में पट्टी बांधी जाती है ताकि कोई भी पिंड को न देख सके। 

 


  

 
 

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