जानें कौन थे निषादराज, इस दिन मनाई जाती है इनकी जयंती 

जानें कौन थे निषादराज, इस दिन मनाई जाती है इनकी जयंती 

Bhaskar Hindi
Update: 2019-04-08 11:11 GMT
जानें कौन थे निषादराज, इस दिन मनाई जाती है इनकी जयंती 

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। निषादराज निषादों के राजा का उपनाम है। वे ऋंगवेरपुर (वर्तमान-प्रयागराज) के महाराजा थे, उनका नाम महाराज गुहराज निषादराज था। वे निषाद समाज के थे और उन्होंने ही वनवासकाल में राम, सीता तथा लक्ष्मण को अपने सेवकों के द्वारा गंगा पार करवाया था। गुरु निषादराज की जयंती चैत्र शुक्ल पक्ष की पंचमी को आती है जो इस बार अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार 10 अप्रैल 2019 को आ रही है। निषाद समाज आज भी इनकी पूजा करते है। निषाद समाज को ही कहार, भोई या मछुआरा कहा जाता है। निषादराज के काल में ही केवट ने प्रभु श्रीराम को गंगा पार करावाया। वनवास के बाद श्रीराम ने अपनी पहली रात अपने मित्र निषादराज के यहां बिताई थी ।

निषादों का अतीत :-
इतिहास की यत्नपूर्वक रक्षा करनी चाहिए धन तो आता है और चला जाता है, धन से हीन होने पर कुछ नष्ट नही होता किंतु इतिहास और अपना प्राचीनतम गौरव नष्ट होने पर उस समाज का विनाश निश्चित है।।" निषादो की वर्तमान दशा एवं स्थिती इसका परिणाम है।

निषाद व सिन्धुघाटी की सभ्यता विश्व में सबसे प्रमुख तीन सभ्यताओं को माना जाता है। मेसोपोटामिया की सभ्यता, मिश्र की सभ्यता तथा सिन्धुघाटी की सभ्यता का सर्वप्रथम 1921 ई. में दायाराम साहनी के द्वारा हड़प्पा एव मोहनजोदड़ो की खुदाई के उपरान्त संसार को पता चला। इस सभ्यता का काल 2500 ई. से 1500 ई. पू. के लगभग माना जाता है।  

गुरु निषादराज की कथा :-
गुरु निषाद राज और श्री राम जी की प्रथम भेंट का दृश्य संत लोग बहुत सुंदर बताते हैं। निषाद राज के पिता से और चक्रवर्ती महराज से मित्रता थी। वे समय समय पर अयोध्या आया करते थे। जिस समय दशरथ जी के यहां प्रभू श्रीराम का प्रादुर्भाव हुआ। उस समय वे अत्यन्त बृद्ध हो चुके थे, किन्तु लाला की बधाई लेकर वे स्वयं अयोध्या आये थे। अवध के लाला का दर्शन कर गुरु निषादराज को परम आनन्द की अनुभूति हुई थी।

जब बृद्ध गुरु निषादराज अयोध्या से लोट आए तो छोटे निषाद और परिवार मे लाला की सुंदरता का वर्णन करते रहे। यह सब सुनकर छोटे से निषाद को रामलला को देखने का बड़ी उत्कंठा हुई। छोटा निषाद जब पांच वर्ष का हो गया तब पिता और वृद्ध हो गये तो एक दिन बूढ़े पिता ने आज्ञा दे ही दी कि जावो रामलला का दर्शन कर आवो। साथ में सहायक भी भेज दिए।

बूढ़े पिता ने सुंदर मीठे फल तथा रुरु नामक मृग के चर्म की बनी हुईं छोटी छोटी पनहिंयां भेंट स्वरूप देकर बिदा किया। फल वगैरह तो छोटे निषाद ने साथियों को ले चलने के लिए दे दिया। लेकिन उन चारों पनहियों को अपना काँख मे दबाये दबाये छोटे निषाद ने पूरा रास्ता तय किया। एक बार वन विहार सो लौटने पर प्रभु राम द्वारा निषाद की बड़ी प्रसन्शा की गई, उसी समय राजा दशरथ ने निषाद को अपने सीने से लगा लिया और अपने हाथ का कंगन पहनाते हुए शृंगवेर पुर का राजा होने की घोषणा कर दी। 

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