भौम प्रदोष व्रत कल: इस व्रत को रखने से स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याएं होंगी दूर, जानें पूजा विधि
भौम प्रदोष व्रत कल: इस व्रत को रखने से स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याएं होंगी दूर, जानें पूजा विधि
डिजिटल डेस्कए नई दिल्ली। सनातन धर्म में व्रतों का बहुत महत्व है। इनमें कई सारे व्रत उत्तम स्वास्थ्य के लिए रखे जाते हैं। इन्हीं में से एक है भौम प्रदोष व्रत जो कि 26 जनवरी मंगलवार को है। माना जाता है कि इस व्रत को रखने से भक्तों की स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याएं दूर होती हैं और उनके शारीरिक स्वास्थ्य में सुधार आता है। भौम प्रदोष व्रत जीवन में समृद्धि लाता है। यह व्रत हर प्रकार के कर्ज से मुक्ति देता है।
ज्योतिषशास्त्र के अनुसार, जब मंगलवार के दिन प्रदोष तिथि का योग बनता है, तब यह व्रत रखा जाता है। मंगल ग्रह का ही एक अन्य नाम भौम है और प्रदोष व्रत को मंगल प्रदोष या भौम प्रदोष कहते हैं।
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महत्व
भौम भूमि के पुत्र हैं। इस दिन के स्वामी हनुमानजी हैं जो रुद्र के ग्यारहवें अवतार माने जाते हैं। प्रदोष व्रत में भगवान शिव की पूजा होती है। लेकिन भौम प्रदोष में शिवजी के साथ हनुमान जी की पूजा भी की जाती है। इसलिए इस दिन का अपना विशेष महत्व हैं।
व्रत विधि
- भौम मंगल प्रदोष व्रत के दिन व्रती को सुबह उठकर नित्य क्रम से निवृत हो स्नान कर शिव जी का पूजन करना चाहिए।
- पूरा दिन मन ही मन ऊँ नमः शिवाय का जप करें।
- पूरे दिन निराहार रहें। त्रयोदशी के दिन प्रदोष काल में यानी सुर्यास्त से तीन घड़ी पूर्व, शिव जी का पूजन करें।
- भौम प्रदोष व्रत की पूजा शाम 4ः30 बजे से लेकर शाम 7ः00 बजे के बीच की जाती है।
- जातक संध्या काल को दुबारा स्नान कर स्वच्छ श्वेत वस्त्र धारण कर लें।
- पूजा स्थल अथवा पूजा गृह को शुद्ध कर लें और यदि व्रती चाहे तो शिव मंदिर में भी जा कर पूजा कर सकते हैं।
- पांच रंगों से रंगोली बनाकर मंडप तैयार करें। पूजन की सभी सामग्री एकत्रित कर लें।
- कलश अथवा लोटे में शुद्ध जल भर लें। कुश के आसन पर बैठ कर शिव जी की पूजा विधि विधान से करें।
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- ऊँ नमः शिवाय मन्त्र का जप करते हुए शिव जी को जल अर्पित करें।
- इसके बाद दोनों हाथ जोड़कर शिव जी का ध्यान करें।
- ध्यान के बाद भौम प्रदोष व्रत की कथा सुने अथवा सुनाएं कथा समाप्ति के बाद हवन सामग्री मिलाकर 11 या 21 या 108 बार ऊँ ह्रीं क्लीं नमः - शिवाय स्वाहा मंत्र से आहुति कर दें।
- इसके बाद शिव जी की आरती करें।
- उपस्थित सभी जनों को आरती दें। सभी को प्रसाद वितरित करें।
- इसके बाद भोजन करें। भोजन में केवल मीठी सामग्रियों का ही उपयोग करें।