13 साल बाद बन रहा ये खास संयोग, जानें पूजा का शुभ मुहूर्त और विधि

करवा चौथ आज 13 साल बाद बन रहा ये खास संयोग, जानें पूजा का शुभ मुहूर्त और विधि

Bhaskar Hindi
Update: 2022-10-09 07:09 GMT
13 साल बाद बन रहा ये खास संयोग, जानें पूजा का शुभ मुहूर्त और विधि

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। हिन्दू पंचाग के अनुसार, कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को करवा चौथ का व्रत रखा जाता है। अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार इस साल यह व्रत 13 अक्टूबर, गुरुवार को है। हिंदु धर्म में इस व्रत का अत्यधिक महत्व है।  इस दिन शादीशुदा महिलाएं अपने पति के अच्छी सेहत और लंबी उम्र के लिए निर्जला और निराहार उपवास रखती हैं। 

इस व्रत को काफी कठिन माना जाता हैए क्यों कि बिना अन्न-जल ग्रहण किए बिना आपको पूरे दिन निर्जला रहना पड़ता है। रात समय चांद को देखने के बाद अपने पति के हाथों से पानी पीकर समापन किया जाता है। 

बन रहा ये खास योग
इस बार करवा चौथ पर 13 साल बाद खास योग बन रहा है। ज्योतिषाचार्य के अनुसार, करवा चौथ पर गुरू देव, बृहस्पति, बुध और शनि सभी अपनी राशियों में विराजमान हैं। सूर्य व बुध भी साथ में होंगे और इन दोनों ग्रहों पर गुरू का प्रभाव रहेगा। शुक्र व बृहस्पति का संबंध होगा। मीन राशि का वृहस्पति करवा चौथ को और शुभ बनाएंगे। इस करवा चौथ पर सारे ग्रहों का ऐसा शुभ योग विवाहित जीवन को सुख से भर देगा।

कब रखें व्रत
तिथि आरंभः 13 अक्टूबर रात 1 बजकर 59 मिनट से
तिथि समापनः 14 अक्टूबर रात 3 बजकर 8 मिनट तक 
उदया तिथि होने के कारण व्रत 13 अक्टूबर को ही रखा जाएगा

पूजा का शुभ मुहूर्त
अमृत कालः शाम 4 बजकर 8 मिनट से 5 बजकर 50 मिनट तक
अभिजीत मुहूर्तः 11 बजकर 44 मिनट से 12 बजकर 30 मिनट तक
चंद्रोदय का समयः रात 8 बजरक 9 मिनट पर 

पूजा विधि

  • इस दिन सुबह उठकर कई महिलाएं सरगी करती हैं, यह रिवाज कई घरों में नहीं भी होता। है। 
  • सुबह उठकर तुलसी में जल चढ़ा कर व्रत का संकल्प लिया जाता है, उसके बाद करवा चौथ व्रत की कथा सुनी जाती है। 
  • पूरे दिन बिना अन्न-जल ग्रहण किए  दिनभर उपवास रखाना  होता है। 
  • रात के समय चांद निकलने पर पूजा की थाली सजाई जाती है जिसमें रोली, फूल, धूप-दीप, मिठाई, चावल के दाने आदि रखे जाते हैं। 
  • चांद दिखते ही देवी-देवताओं की पूजा की जाती है और इसके बाद भोग लगाकर चांद को अर्घ्य दिया जाता है।
  • पहले छलनी से चांद को देखा जाता है फिर पति का भी छलनी से दर्शन किया जाता है।
  • इसके बाद पति के हाथों से जल पीकर बड़ों का आशीर्वाद लेकर उपवास का समापन होता है। 

डिसक्लेमरः इस आलेख में दी गई जानकारी अलग अलग किताब और अध्ययन के आधार पर दी गई है। bhaskarhindi.com यह दावा नहीं करता कि ये जानकारी पूरी तरह सही है। पूरी और सही जानकारी के लिए संबंधित क्षेत्र के विशेषज्ञ (ज्योतिष/वास्तुशास्त्री/ अन्य एक्सपर्ट) की सलाह जरूर लें।

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