जगदम्बे मां को इसलिए कहा जाता है दुर्गा, जानिए इसके पीछे का कारण
जगदम्बे मां को इसलिए कहा जाता है दुर्गा, जानिए इसके पीछे का कारण
डिजिटल डेस्क। देशभर में इन दिनों शारदीय नवरात्र की धूम है, भक्त माता की आराधना में लीन हैं। पूरे नौ दिनों तक माता के विभिन्न स्वरूपों की पूजा की जाती है, यों तो मां के हजारों नाम हैं, लेकिन सबसे प्रचलित नाम है दुर्गा। यहां तक की नवरात्र के मां के नौ स्वरूपों को भी नवदुर्गा के नाम से जाना जाता है। लेकिन क्या आप जानते हैं माता जगत जननी का दुर्गा नामकरण कैसे हुआ, आइए जानते हैं...
मां दुर्गा का प्राकट्य शारदीय नवरात्री में हुआ था। मां जगदंबा जगत के जीवों को धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष रूप चारों फल प्रदान करने वाली हैं। भगवती की इतनी महिमा है कि परमात्मा की भी सर्वशक्तिदायिनी तथा मोक्षदायीनी शक्ति हैं। ऐसी दुर्गा देवी का स्मरण करने मात्र से जटिल से जटिल कठिनाईयों का मूल से नाश हो जाता है।
कथा
पुराणों के अनुसार सनातन काल में हिरण्यकशिपु के वंश में दुर्गम नाम का एक असुर था उसने ब्रम्हाजी की कठिन तपस्या की। प्रसन्न होने पर ब्रम्हाजी से वर पाकर चारों वेदों को अपने अधिकार में लेकर लुप्त कर दिया। वैदिक कर्म बंद करवा दिए, जिससे वर्षा बंद हो गई। सर्वत्र घोर अकाल पड़ गया, पेड़ पौधे झुलस गए, नदी नाले सूख गए। देवों से यह पीड़ा देखी नहीं गई, वे मिलकर आद्यशक्ति की शरण में गए।
सभी देवताओं ने जगदम्बा की स्तुति की, कहते हैं ‘श्रृधा तृष्णा जननि स्मरति ’अर्थात जब बालक को भूख, प्यास तथा कष्ट हो तो वह सर्वप्रथम अपनी मां का स्मरण करता है। उनका बिलखना जगदम्बा से देखा नहीं गया, वे प्रकट हुईं। मां का ह्रदय द्रवित हो उठा, आंखें छलछला गईं। देखते ही देखते मां की देह से सैकड़ों नेत्र प्रकट हो गए, जिससे वे देवी शताक्षी बन गयी। सैकडों आंखों से अपने बालकों की व्यथा पर लगातार अश्रुधारा बहने लगी, यह धारा सतत नौ दिनों तक बहती रही।
शिवपुराण में वर्णन
शिवपुराण में महर्षि वेदव्यास ने माता के रूदन का वर्णन किया है। लोक व्यवहार में भी हम देखते हैं कि बच्चा पिता की अपेक्षा माता के अधिक चाहता है, क्योंकि माता स्वभावतः सहृदय और वात्सल्यमयी होती है। अपने बच्चे की आवश्यकताओं का पूरा पूरा ध्यान रखती है। यदि साधारण मां की यह स्थिती होती है तो वह तो जगत की मां जगदंबा थीं।
अंत में माता ने घोर संग्राम किया एवं दुर्गम दैत्य का संहार किया। तभी से वे दुर्गा के रूप में विख्यात हुई। इसी घटना को स्मरण करने के लिए और उस शक्तिशालिनी माता की ममता एवं करूणा का प्रसाद हमें भी प्राप्त हो इसी भाव और कामना से हम मां दुर्गा की उपासना एवं आराधना नौ दिनों तक करतें हैं।
साभार: पंडित सुदर्शन शर्मा शास्त्री अकोला