Holi 2020: अहंकार पर आनंद की विजय का पर्व है होली, जानें क्या है इसकी शास्त्रीय मान्यता
Holi 2020: अहंकार पर आनंद की विजय का पर्व है होली, जानें क्या है इसकी शास्त्रीय मान्यता
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। हर वर्ष की तरह इस वर्ष भी फाल्गुन शुक्ल की पूर्णिमा को होलिका दहन किया जाएगा। जो कि अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार 09 मार्च 2020 को है। इस पर्व का हिन्दू धर्म में काफी महत्व है, बता दें कि भारत में सालभर में कितने ही पर्व मनाए जाते हैं और हर पर्व के साथ कुछ कथा आख्यान जुड़े होते हैं। इनमें एक संदेश, एक सीख निहित होती है। होली का त्योहार भी इससे अछूता नहीं है, होली यों तो रंगो का पर्व माना जाता है, लेकिन होलिका दहन की शास्त्रीय मान्यता है।
होलिका दहन से संबंधित मुख्य रूप से 2 कथाएं प्रचलित हैं एक जिसमें राजा रघु और ढुंढा राक्षसी की कथा और दूसरी हिरण्यकशिपु की बहन होलिका और भक्त प्रह्लाद की कथा है। होलिका और प्रह्लाद की कथा की मान्यता अधिक है, चूंकि इस कथा तो कई बार सुनी और पढ़ी होगी, परंतु इसके पीछे के आध्यात्मिक रहस्य को कम ही लोग समझ पाते हैं, आइए जानते हैं इनके बारे में...
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हिरण्याक्ष का अर्थ
पुराणों के अनुसार हिरण्याक्ष और हिरण्यकशिपु ये दो भाई थे, हिरण्याक्ष लोभ का प्रतीक माना जाता है। हिरण्य का अर्थ सोना या पैसा और अक्ष यानि आंखे, जो चौबीसों घंटे बस धन पर ही आंख जमाये रखे वह हिरण्याक्ष होता है, हिरण्याक्ष रूपी लोभ को वराह भगवान ने एक ही बार में समाप्त कर दिया।
हिरण्यकशिपु का अर्थ
हिरण्याक्ष की मृत्यु का बदला लेने के लिये उसके भाई हिरण्यकशिपु ने ब्रम्हाजी को प्रसन्न किया और उनसे अनेकों वरदान प्राप्त कर स्वयं को अमर समझ लिया। हिरण्यकशिपु अहंकार का प्रतीक है। हिरण्य यानि धन या पैसा और कशिपु का अर्थ हैं तकिया। जिसे अपने धन पर अपनी संपत्ती पर अंहकार हो वह हिरण्यकशिपु होता है।
प्रह्लाद का अर्थ
प्रल्हाद हिरण्यकशिपु का पुत्र था, जो भगवान विष्णु का भक्त बना। प्रह्लाद दो शब्द से मिलकर बना है प्र और आल्हाद, यहां आल्हाद का अर्थ है आनंद यदि इसमें प्र जोड़ दिया जाए तो विशेष आनंद होता है। जिसने सत् चित् और आनंद को पहचान लिया और परमात्मा के किर्तन में, प्रभु की भक्ति में जिसे विशेष आनंद आता हो वह प्रह्लाद है।
प्रह्लाद का जन्म ही भक्त और भगवान में एकीभाव करने के लिए हुआ था और उसमें सबसे बड़ा अवरोध, बाधक होता है अंहकार। भक्त किसी से द्वेश नहीं करता, वह तो भक्ति में मस्त है परंतु यदि कोई उसे पीड़ा पहुंचाने का कार्य करता है तो परमात्मा अवतरित होकर भक्त द्रोही का नाश करते हैं। ऐसा भक्त प्रह्लाद की कथा में मिलता है।
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प्रह्लाद को मारने के विविध प्रयास-
विष्णु पुराण की कथा के अनुसार हिरण्यकशिपु ने प्रल्हाद को कितने ही कष्ट दिए। उसे पहाड़ से फेंका, धन दौलत मान प्रतिष्ठा पद आदि से उसे वंचित किया। हाथी से घसीटा गया। इसके बाद उसे होलिका के साथ आग में बैठाया। कथा के अनुसार हिरण्याक्ष ने अपनी बहन होलिका को प्रह्लाद को नष्ट करने की आज्ञा दी। होलिका ये कुमति यानि अज्ञान का प्रतीक है, कुमति होलिका आग रूपी सत्य में आनंद रूपी प्रह्लाद को नष्ट करने के लिए बैठी तब कुमति यानि अज्ञान नष्ट हो जाता है और आनंद यानि सच्च ज्ञान बच जाता है। क्योंकि सत्य के सामने अज्ञान टिक नहीं पाता।
चूंकि होलिका को आग में नहीं जलने का वरदान था अर्थात् अज्ञान को यह भ्रम रहता है कि उसका नाश कभी नहीं होगा। परंतु जब अज्ञान जब सच्चे ज्ञान को ढंक कर सत्य के सामने आता है तो स्वयं नष्ट हो जाता है और ज्ञान सुरक्षित रह जाता है। इतना हो जाने के बावजूद अहंकार की आंखे नहीं खुलतीं वह आनंद को नष्ट करने की प्रवृत्ति से बाज नहीं आता। गुरूकुल में भेज कर सच्चे ज्ञान को परावर्तित करने की चेष्ठा करता है परंतु ज्ञान तो सदा सत्य ही है।
नरसिंह का प्राकट्य
हिरण्यकशिपु ने जब जान लिया कि प्रह्लाद किसी दूसरे से नहीं नष्ट हो रहा है, तब वह स्वयं तलवार हाथ में लेकर उससे प्रश्न पूछने लगा कि बता तेरा भगवान कहं है। प्रह्लाद ने कहा वो तो सब जगह हैं, आनंद सभी जगह होता है केवल पहचानने की देर होती है। जब हिरण्यकशिपु ने पूछा कि क्या इस खंबे में भी तुझे भगवान दिखाई दे रहा हैं, इस पर प्रह्लाद ने कहा हां मुझे दिखाई दे रहा है। इसका अर्थ है कि भक्ति में, ज्ञान में इतनी ढृढता रहनी चाहिए कि कोई कितना भी विचलित करें हम अपनी एकाग्रता नहीं छोड़नी चाहिए। खंभे पर तलवार से वार किया कि नरसिंह भगवान प्रकट हो गए।
नरसिंह का अर्थ
नरसिंह का अर्थ आधा मनुष्य आधा पशु, मानव में भी नर और सिंह दोनों गुण विद्यमान होते हैं। जब मनुष्य में मोह अहंकार ईष्या आदि दुगुर्ण बढ़ते हैं तब वह पशु बन जाता है और जब मानव के भीतर सत्गुणों की वृद्धि होती है तब वह नर से नारायण तक का रास्ता बना लेता है।
खंभे से ही नरसिंह प्रकट होते हैं और अहंकार का उनसे साक्षात्कार हुआ और अहंकार के सारे प्रपंचो को चूर चूर कर उसका नाश किया। अहंकार रूपी हिरण्याक्ष के मरते ही ब्रम्ह का साक्षात्कार होता है और ईश्वर की प्राप्ती हो जाती है। होली इसी ईश्वर की प्राप्ती के उपलक्ष्य में मनाया जाना वाला त्योहार है, जिसमें मनुष्य अपने आनंद की अभिव्यक्ति एक दूसरे पर रंग गुलाल उड़ा कर करता है, कि सप्तरंगी संसार के समस्त रंग उसी परमात्मा का ही रूप है। हर एक में उसी परमात्मा का ही दर्शन करें। इस प्रकार प्रह्लाद की कथा के अध्यात्म को जानकर हम हमारे जीवन में भक्ति के रंग को और मजबूत करें।
साभार: - पंडित सुदर्शन शर्मा शास्त्री, अकोला