गंगा सप्तमी 2021: जानें इस दिन का महत्व और पूजा का शुभ मुहूर्त

गंगा सप्तमी 2021: जानें इस दिन का महत्व और पूजा का शुभ मुहूर्त

Bhaskar Hindi
Update: 2021-05-17 07:33 GMT
गंगा सप्तमी 2021: जानें इस दिन का महत्व और पूजा का शुभ मुहूर्त

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। वैशाख महीने के शुक्लपक्ष की सप्तमी तिथि को गंगा सप्तमी मनाई जाती है।इस बार यह तिथि 18 मई, मंगलवार को है। इसी दिन चित्रगुप्त का प्राकट्योत्सव भी मनाया जाता है। गंगा सप्तमी पर गंगा में स्नान करने का महत्व है। मान्यता है कि इस दिन गंगा नदी में स्नान करने से पुण्य की प्राप्ति होती है। गंगा पूजन से रिद्धि-सिद्धि, यश-सम्मान की प्राप्ति होती है और सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और भगवान उससे प्रसन्न होते हैं। इस दिन तप ध्यान और दान पुण्य करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है।

लेकिन इस बार कोरोना संक्रमण के चलते तीर्थस्थल जाकर स्नान कर पाना संभव नहीं होगा। ऐसे में आप घर पर ही नहाने के पानी में थोड़ा गंगाजल मिलाकर स्नान कर सकते हैं। ज्योतिषशास्त्र के अनुसार इस उपाय से भी पवित्र नदी में स्नान करने के बराबर ही फल की प्राप्ति होती है। आइए जानते हैं गंगा सप्तमी का महत्व, शुभ मुहूर्त और पूजा विधि के बारे में...

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शुभ मुहूर्त
गंगा सप्तमी तिथि आरंभ: 18 मई 2021 को दोपहर 12 बजकर 32 मिनट से
गंगा सप्तमी तिथि समापन: 19 मई 2021 को दोपहर 12 बजकर 50 मिनट तक

पूजा- विधि
इस दिन गंगा नदी में स्नान करें, ऐसा संंभव नहीं हो तो नहाने के पानी में गंगा जल मिलाकर स्नान करें। इस दौरान मां गंगा का ध्यान करें। स्नान करने के बाद घर के मंदिर में दीप प्रज्वलि करें। इसके बाद सभी देवी- देवताओं का गंगा जल से अभिषेक करें। मां का ध्यान करते हुए पुष्प अर्पित करें। साथ ही घर के मंदिर में ही मां गंगा को सात्विक चीजों भोग लगाएं और मां गंगा की आरती करें। पूजा के दौरान "ॐ नमो गंगायै विश्वरूपिण्यै नारायण्यै नमो नमः" मंत्र का जप करें।

गंगा का दूसरा नाम भागीरथी
कहा जाता है कि इस दिन परमपिता ब्रह्मा के कमंडल से पहली बार गंगा अवतरित हुई थी और ऋषि भागीरथ की कठोर तपस्या से खुश होकर धरती पर आईं थीं। जबकि पौराणिक कथाओं के अनुसार मां गंगा का जन्म भगवान विष्णु के पैर में पैदा हुई पसीने की बूंदों से हुआ था। जिसका पृथ्वी पर अवतरण भगीरथ के प्रयास से कपिल मुनि के शाप द्वारा भस्मीकृत हुए राजा सगर के 60,000 पुत्रों की अस्थियों का उद्धार करने के लिए हुआ था। 

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अपने पुत्रों के उद्धार के लिए राजा सगर के वंशज भगीरथ ने घोर तपस्या कर माता गंगा को प्रसन्न किया। तपस्या से खुश होकर मां गंगा पृथ्वी पर आईं लेकिन गंगा के आने की बात सुनकर धरती भय महसूस करने लगी। इस पर भागीरथ ने भगवान शंकर से निवेदन किया कि कृपया गंगा की धारा को कम करें जिससे धरती की कोई हानि न हो। तब गंगा भगवान शंकर की जटा में समाईं और उसकी धार कम हुई। इसके बाद गंगा धरती पर प्रकट हुई।

मां गंगा जिस दिन धरती पर प्रकट हुई वह दिन सप्तमी का था इसलिए गंगा सप्तमी मनाई जाती है। वहीं गंगा के स्पर्श से ही सगर के पुत्रों का उद्धार संभव हो सका, इसी कारण गंगा का दूसरा नाम भागीरथी पड़ा।
 

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