जानें देवोत्थान एकादशी पूजा की विधि और शुभ मुहूर्त

देव उठनी एकादशी जानें देवोत्थान एकादशी पूजा की विधि और शुभ मुहूर्त

Bhaskar Hindi
Update: 2022-11-02 17:15 GMT
जानें देवोत्थान एकादशी पूजा की विधि और शुभ मुहूर्त

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। हिंदू धर्म में एकादशी का बहुत अधिक महत्व होता है। वहीं कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवउठनी एकादशी के नाम से जाना जाता है। भगवान विष्णु के चार माह बाद जागने की वजह से इसे देवोत्थान एकादशी भी कहा जाता है। इस दिन तुलसी विवाह वैदिक विधि से किया जाता है। इसी दिन से सभी तरह के मांगलिक कार्य भी शुरू हो जाते हैं। इस वर्ष देवउठनी एकादशी 4 नवंबर 2022 दिन, शुक्रवार को पड़ रही है।  

ऐसा कहा जाता है हि, वृंदा की भक्ति व पतिव्रत धर्म से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने तुलसी के रूप में सदैव ही अपने साथ पूजे जाने का आशीर्वाद दिया था। जिसके बाद से प्रतिवर्ष तुलसी और भगवान विष्णु के पाषाण स्वरूप (शालिग्राम) की पूजा की जाती है। इस विवाह-पूजन को लेकर कई तरह की मान्यताएं हैं, फिलहाल जानते हैं देव उठनी एकादशी की तिथि, मुहूर्त, पूजा विधि महत्व और पारण समय के बारे में...

पूजा का मुहूर्त- 
एकादशी तिथि प्रारंभ: 03 नवम्बर 2022 शाम 07:30 बजे से
एकादशी तिथि समाप्त: 04 नवम्बर 2022 शाम 06:08 बजे तक 

इस​ विधि से करें पूजा
-तुलसी का मंडप गन्ने से ही सजाएं। 
-तुलसी को मंडप में ले जाने से पूर्व चुनरी ओढ़ाएं। 
-तुलसी शालिग्राम को एक पटे पर बिठाएं। 
-विवाह विधि शुरू करने से मंडप में भी तिलक करें।
-भगवान शालिग्राम को गमले या तुलसी के पौधे के पास रखें, उन्हें अक्षत की बजाए तिल चढ़ाएं। 
-तुलसी और भगवान शालिग्राम पर दूध चढ़ाएं, लेकिन स्मरण रहे कि ये दूध हल्दी में मिला हुआ हो। 
-विवाह के वक्त बोला जाने वाला मंगलाष्टक अवश्य बोलें।
-विवाह विधि और पूजा के बाद 11 बार तुलसी शालिग्राम की परिक्रमा करें। 
-तुलसी-शालिग्राम को सभी तरह की भाजियां अर्पित करें, इसमें मूली, चना भाजी सहित नयी सब्जियां भी शामिल हों।
-पूजा पूर्ण होने के बाद चारों ओर से श्रीहरि का पटा या पटिए को उठाकर भगवान विष्णु से जागने और पुनः सृष्टि का कार्यभार संभालने की प्रार्थना करें। 
-उन्हें जगाने के दौरान करें, "उठाे देव सांवरा खाओ भाजी बोर और आंवला, गन्ना की झोपड़ी में शंकर जी की यात्रा"। इसके बाद विष्णुदेव को पुनः घंटे, नगाड़े, शंख बजाकर उठने की प्रार्थना करें, ताकि भगवान शिव कैलाश की ओर यात्रा प्रारंभ कर सकें। 
-पूजा संपन्न होने के बाद भोग को भोजन के साथ ग्रहण करें। इससे पूर्व इसे प्रसाद के रूप में बांट दें। 

डिसक्लेमरः इस आलेख में दी गई जानकारी अलग अलग किताब और अध्ययन के आधार पर दी गई है। bhaskarhindi.com यह दावा नहीं करता कि ये जानकारी पूरी तरह सही है। पूरी और सही जानकारी के लिए संबंधित क्षेत्र के विशेषज्ञ (ज्योतिष/वास्तुशास्त्री/ अन्य एक्सपर्ट) की सलाह जरूर लें।

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