सदी का सबसे लंबा आंशिक चंद्र ग्रहण, 580 साल बाद दिखाई देगा ऐसा नजारा, आखिर क्यों है इतना खास? जानें वजह
चंद्र ग्रहण 2021 सदी का सबसे लंबा आंशिक चंद्र ग्रहण, 580 साल बाद दिखाई देगा ऐसा नजारा, आखिर क्यों है इतना खास? जानें वजह
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। साल का आखिरी और सदी का सबसे लंबा आंशिक चंद्र ग्रहण 19 नवंबर यानी कि शुक्रवार के दिन लगने जा रहा है। यह ग्रहण भारत के उत्तर-पूर्वी राज्यों में दिखाई देगा। जानकारों के अनुसार, ऐसा 580 साल बाद होगा जब इतना लंबा आंशिक चंद्र ग्रहण देखा जाएगा। आंशिक ग्रहण चरण 3 घंटे, 28 मिनट और 24 सेकंड तक चलेगा और पूर्ण ग्रहण 6 घंटे और 1 मिनट तक चलेगा। इससे पहले इतना लंबा चंद्रग्रहण 18 फरवरी 1440 में पड़ा था।
नासा के अनुसार, जब चंद्रमा का 97 प्रतिशत हिस्सा पृथ्वी की छाया के सबसे गहरे हिस्से से ढका होगा, जो शायद गहरे लाल रंग में बदल जाएगा। इस ग्रहण को कहां देखा जा सकता है और क्या है इसका समय, आइए जानते हैं...
जीवन की सीख देते हैं देवी-देवताओं के वाहन
चंद्र ग्रहण की तिथि और समय
19 नवंबर शुक्रवार के दिन लगने वाला चंद्र ग्रहण भारतीय समय के अनुसार सुबह 11 बजकर 34 मिनट से शुरू होगा और शाम 5 बजकर 33 मिनट पर खत्म होगा। खण्डग्रास ग्रहण की कुल अवधि 03 घण्टे 26 मिनट की होगी। वहीं उपच्छाया चंद्र ग्रहण की कुल अवधि 05 घण्टे 59 मिनट की होगी।
हालांकि भारत में आंशिक चंद्र ग्रहण नहीं होगा यहां उपच्छाया चंद्र ग्रहण दिखाई देगा। इसे नग्न आंखों से नहीं देखा जा सकता। इसे देखने के लिए विशेष तरह के उपकरणों की जरूरत पड़ती है। ये साल का आखिरी चंद्र ग्रहण होगा। इसके बाद चंद्र ग्रहण का नजारा 8 दिसंबर 2022 में देखने को मिलेगा।
कहां दिखाई देगा ग्रहण
खगोलविदों के अनुसार, आंशिक चंद्र ग्रहण पूर्वी अफ्रीका, पश्चिमी यूरोप, उत्तरी अमेरिका, दक्षिणी अमेरिका, एशिया, ऑस्ट्रेलिया, अटलांटिक महासागर और प्रशांत महासागर जैसे कुछ चुनिंदा हिस्सों से देखा जा सकेगा।
करें भगवान शिव के 11 रुद्र रुपों की पूजा, सभी बाधाओं से होंगे मुक्त
चंद्र ग्रहण और उपच्छाया चंद्र ग्रहण में अंतर
जब सूरज और चंद्रमा के बीच पृथ्वी घूमते हुए आती है तो चन्द्रग्रहण होता है। लेकिन जब यह तीनों एक सीधी लाइन में नहीं होते तो उपछाया कहलाती है। इस स्थिति में चांद की छोटी सी सतह पर अंब्र नहीं पड़ती है। पृथ्वी के बीच से पड़ने वाली छाया को अंब्र कहा जाता है। चांद के शेष हिस्से में पृथ्वी के बाहरी हिस्से की छाया पड़ती है। जिसे उपछाया कहा जाता है।