बुध प्रदोष: क्या हैं इस व्रत के लाभ और कैसे करें पूजा, यहां जानें

बुध प्रदोष: क्या हैं इस व्रत के लाभ और कैसे करें पूजा, यहां जानें

Bhaskar Hindi
Update: 2021-07-06 05:26 GMT
बुध प्रदोष: क्या हैं इस व्रत के लाभ और कैसे करें पूजा, यहां जानें

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। हिन्दू पंचाग के ​अनुसार प्रत्येक माह में प्रदोष व्रत दो बार आता है,एक शुक्ल पक्ष और दूसरा कृष्ण पक्ष में। इसे दिन के नाम के अनुसार अलग अलग नामों से जाना जाता है। जैसे सोमवार को आने पर सोम प्रदोष, फिलहाल जुलाई माह का पहला प्रदोष बुधवार को है। 07 जुलाई को आने वाले इस व्रत को बुधप्रदोष कहा गया है। इस दिन देवों के देव महादेव यानी कि भगवान शिव की पूजा की जाती है। 

माना जाता है कि प्रदोष व्रत करने से व्यक्ति को संतान, सुख और समृद्धि की प्राप्ति होती है। साथ ही मनुष्य के सभी पाप धुल जाते हैं और उन्हें शिव धाम की प्राप्ति होती है। इस व्रत को करने से सुहागन नारियों का सुहाग सदा अटल रहता है। इस व्रत को जो भी स्त्री, पुरुष जिस कामना को लेकर इस व्रत को करते हैं, उनकी सभी कामनाएं महादेव पूरी करते हैं। आइए जानते हैं इसकी पूजा विधि और मुहूर्त के बारे में...

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प्रदोष व्रत मुहूर्त
तिथि आरंभ: 07 जुलाई, बुधवार रात 01:02 बजे से
तिथि समाप्त: 08 जुलाई, गुरुवार तड़के 03:20 बजे तक

बुध प्रदोष व्रत की विधि
इस दिन सूर्योदय से पूर्व उठें, स्नादि के बाद व्रत का संकल्प लें।
घर के मंदिर की सफाई करें और शिव जी की पूजा करें।
संभव हो सके तो इस दिन शिवालय जाकर पूजन करें।
पूरे दिन अंतरमन में “ऊँ नम: शिवाय” का जप करें। 
शाम को पुन: स्नान कर स्वच्छ श्वेत वस्त्र धारण करें।  
पूजा स्थल अथवा पूजा गृह को शुद्ध कर लें। 
प्रदोष व्रत की पूजा शाम 4:30 बजे से लेकर शाम 7:00 बजे के बीच करें।  

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पूजन विधि
- एक कलश अथवा लोटे में शुद्ध जल भर लें और शिवलिंग को चढ़ाएं।
- “ऊँ नम: शिवाय” का स्मरण करते हुए शिव जी को जल अर्पित करें।  
- कुश के आसन पर बैठकर शिव जी की पूजा विधि-विधान से करें। 
- इसके बाद दोनों हाथ जो‌ड़कर शिव जी का ध्यान करें। 
- ध्यान के बाद, बुध प्रदोष की कथा सुनें और सुनायें। 
- पूजन में धूप, दीप, घी, सफेद पुष्प, सफेद फूलों की माला, आंकड़े का फूल, सफेद मिठाइयां, सफेद चंदन, सफेद वस्त्र, कर्पुर, बेल-पत्र, धतुरा, भांग, हवन सामग्री, आम की लकड़ी आदि शामिल करें।
- हवन सामग्री मिलाकर 11, 21 या 108 बार “ऊँ ह्रीं क्लीं नम: शिवाय स्वाहा” मंत्र से आहुति दें। 
- इसके बाद शिव जी की आरती करें, उपस्थित जनों को आरती दें। 
- सभी को प्रसादि वितरित कर बाद में भोजन करें। भोजन में केवल मीठी सामग्रियों का ही उपयोग करें।

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