देवशयनी एकादशी: सभी व्रतोंं में सबसे उत्तम है ये व्रत, पापों का करता है नाश

देवशयनी एकादशी: सभी व्रतोंं में सबसे उत्तम है ये व्रत, पापों का करता है नाश

Bhaskar Hindi
Update: 2019-07-10 08:57 GMT

डिजिटल डेस्क। आषाढ़ माह की शुक्ल पक्ष की एकादशी को ही देवशयनी एकादशी कहा जाता है। इस वर्ष देवशयनी एकादशी व्रत 12 जुलाई को मनाई गई। हिंदू धर्म में बताए गए सभी व्रतों में देवशयनी एकादशी का व्रत को सबसे उत्तम माना जाता है। मान्यता है कि इस व्रत को करने से भक्तों की समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और उनके सभी पापों का नाश होता है।  

देवशयनी एकादशी को हरिशयनी एकादशी, पद्मनाभा तथा प्रबोधनी के नाम से भी जाना जाता है। देवशयनी एकादशी पर भगवान विष्णु की विशेष पूजा अर्चना करने का विशेष महत्व होता है। मान्यता के अनुसार इसी रात्रि से भगवान का शयन काल आरंभ हो जाता है जिसे चातुर्मास या चौमासा का प्रारंभ भी कहते है।

पूजा का शुभ मुहूर्त 
इस वर्ष देवशयनी एकादशी 11 जुलाई को रात 3:08 से 12 जुलाई रात 1:55 मिनट तक रहेगी। वहीं प्रदोष काल शाम साढ़े पांच से साढे सात बजे तक रहेगा। मान्यता है कि इस दौरान की गई आरती, दान पुण्य का विशेष लाभ भक्तों को मिलता है। देवशयनी एकादशी के दिन भगवान को नए वस्त्र पहनाकर, नए बिस्तर पर सुलाएं क्योंकि इस दिन के बाद भगवान सोने के लिए चले जाते हैं।
 
पौराणिक महत्व  
देवशयनी या हरिशयनी एकादशी के विषय में पुराणों में विस्तारपूर्वक वर्णन मिलता है जिनके अनुसार कहा जाता है कि इस दिन से भगवान श्री विष्णु चार मास की अवधि तक पाताल लोक में निवास करते हैं। कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी से श्री विष्णु उस लोक के लिए गमन करते हैं और इसके बाद चार माह के अंतराल के बाद सूर्य के तुला राशि में प्रवेश करने पर विष्णु भगवान का शयन समाप्त होता है तथा इस दिन को देवउठनी एकादशी कहा जाता है। इन चार माहों में भगवान श्री विष्णु क्षीर सागर की अनंत शैय्या पर शयन करते हैं इसलिए इन माह अवधियों में कोई भी मांगलिक कार्य नहीं किया जाता।

पूजा विधि 
देवशयनी एकादशी व्रत का आरंभ दशमी तिथि की रात्रि से ही हो जाता है। 
दशमी तिथि की रात्रि के भोजन में नमक का प्रयोग नहीं करना चाहिए।  
अगले दिन प्रात: काल उठकर दैनिक कार्यों से निवृत होकर व्रत का संकल्प करें।  
भगवान विष्णु की प्रतिमा को आसन पर आसीन कर उनका षोडशोपचार सहित पूजन करना करें।  
पंचामृत से स्नान करवाकर भगवान की धूप, दीप, पुष्प आदि से पूजा करनी करें।  
भगवान को ताम्बूल, पुंगीफल अर्पित करने के बाद मन्त्र द्वारा स्तुति करना चाहिए।

प्रचलित कथा
देवशयन के संदर्भ में कई कथाएं प्रचलित हैं। भविष्यपुराण में उल्लेख है कि एक बार युधिष्ठिर ने भगवान श्रीकृष्ण से पूछा- महाराज यह देवशयन क्या है? जब देवता ही सो जाते हैं, तब संसार कैसे चलता है? देव क्यों सोते हैं? श्रीकृष्ण ने कहा, राजन्! एक समय योगनिद्रा ने प्रार्थना की- भगवन् आप मुझे भी अपने अंगों में स्थान दीजिए। तब भगवान ने योगनिद्रा को नेत्रों में स्थान देते हुए कहा-तुम वर्ष में चार मास मेरे आश्रित रहोगी। ऐसा सुनकर योगनिद्रा ने मेरे नेत्रों में वास किया।

भागवत महापुराण के अनुसार, श्रीविष्णु ने एकादशी के दिन विकट आततायी शंखासुर का वध किया, अत: युद्ध में परिश्रम से थक कर वे क्षीर सागर में सो गए। उनके सोने पर सभी देवता भी सो गए, इसलिए यह तिथि देवशयनी एकादशी कहलाई। 

 

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