अक्षय फल प्रदान करती है आवंला नवमी
धर्म अक्षय फल प्रदान करती है आवंला नवमी
- इस दिन आवंला वृक्ष की पूजा होती है
- इसी दिन से द्वापर युग की शुरूआत हुई
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। कार्तिक माह में बहुत सारे त्योहार मनाये जाते हैं। दिवाली के बाद आवंला नवमी का त्योहार मनाया जाता है। इसे अक्षय नवमी के नाम से भी जाना जाता है। आवंला नवमी शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को मनाई जाती है। इस बार आवंला नवमी 12 नवंबर 2021, शुक्रवार को है। इस दिन स्वस्थ रहने की मनोकामना के साथ आवंला वृक्ष की विशेष पूजा की जाती है। इस दिन दिया गया दान अक्षय फल प्रदान करता है।
आंवला नवमी शुभ शुभ मुहूर्त
- 12 नवंबर 2021, शुक्रवार सुबह 06 बजकर 50 मिनट से दोपहर 12 बजकर 10 मिनट तक
नवमी तिथि
- 12 नवंबर 2021, शुक्रवार सुबह 05 बजकर 51 मिनट से प्रारंभ
- 13 नवंबर, शनिवार को सुबह 05 बजकर 30 मिनट पर समाप्ति
अक्षय नवमी का भगवान श्रीकृष्ण से नाता है
कार्तिक महीने की शुक्ल पक्ष की तिथी को अक्षय नवमी पर्व मनाया जाता है। मान्यता है कि इसी दिन से द्वापर युग की शुरूआत हुई थी। द्वापर युग में भगवान विष्णु ने आठवां अवतार भगवान श्रीकृष्ण के रूप में लिया था। मान्यता यह भी है कि भगवान श्रीकृष्ण अक्षय नवमी के दिन वृंदावन-गोकुल को छोड़कर मथुरा चले गए थे। इसीलिए इस दिन वृंदावन परिक्रमा का भी शुभारंभ होता है।
आंवला नवमी को कैसे करें पूजा
अक्षय नवमी के दिन आवंला के पेड़ की पूजा-अर्चना की जाती है। आवंले के पेड़ को हल्दी, कुमकुम, अक्षत, फूल चढ़ाएं। इसके बाद जल और कच्चा दूध चढ़ाएं। फिर आंवले की परिक्रमा लगाते हुए कच्चा सूत या मौली को आठ बार लपेटा जाता है। पूजा के बाद कथा वाचन होता है। पूजा की समाप्ति पर परिवार आदि के साथ आवंला वृक्ष के नीचे भोजन किया जाता है।
अक्षय नवमी के दिन दान का होता है महत्व
आवंला नवमी के दिन दान करने का बहुत महत्व है। इस दिन दान करने से व्यक्ति को फल वर्तमान और अगले जन्म में भी मिलता है। इस दिन आंवले को भी प्रसाद के रूप में खाने का महत्व है। इस पर्व को बहुत ही श्रद्धा के साथ मनाया जाता है।
यह है आवंला नवमी की कथा
माना जाता है कि आंवला नवमी पर आंवले के वृक्ष के नीचे पूजा-अर्चना और भोजन करने की प्रथा माता लक्ष्मी ने शुरू की थी। कथा के अनुसार, एक बार मां लक्ष्मी पृथ्वी पर घूमने के लिए आईं। धरती पर आकर मां लक्ष्मी सोचने लगीं कि भगवान विष्णु और शिवजी की पूजा एक साथ कैसे की जा सकती है। तभी उन्हें याद आया कि तुलसी और बेल के गुण आंवले में पाए जाते हैं। तुलसी भगवान विष्णु को और बेल शिवजी को प्रिय है।
उसके बाद मां लक्ष्मी ने आंवले के पेड़ की पूजा करने का निश्चय किया। मां लक्ष्मी की भक्ति और पूजा से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु और शिवजी साक्षात प्रकट हुए। माता लक्ष्मी ने आंवले के पेड़ के नीचे भोजन तैयार करके भगवान विष्णु व शिवजी को भोजन कराया और उसके बाद उन्होंने खुद भी वहीं भोजन ग्रहण किया। मान्यताओं के अनुसार, आंवला नवमी के दिन अगर कोई महिला आंवले के पेड़ की पूजा कर उसके नीचे बैठकर भोजन ग्रहण करती है, तो भगवान विष्णु और शिवजी उसकी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं। इस दिन महिलाएं अपनी संतना की दीर्घायु तथा अच्छे स्वास्थ्य लेकर प्रार्थना करती हैं।